"आम चाहत को ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से पूरा करना क्या लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है?": वक़ील ने विकास दुबे मामले में पुलिस के ख़िलाफ़ FIR दर्ज करने के लिए CJI को पत्र लिखा
LiveLaw News Network
12 July 2020 11:00 AM IST
मुंबई के एक वक़ील अटल बिहारी दुबे ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश के उन पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने का आदेश देने की मांग की है जिन्होंने मध्य प्रदेश में गिरफ़्तार हुए कुख्यात बदमाश विकास दुबे को शुक्रवार को फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मार दिया।
दुबे को 3 जुलाई को गिरफ़्तार करने गए आठ पुलिस वालों को मार देने के बाद यह बदमाश ग़ायब हो गया था। बाद में उसे उज्जैन के महाकाल मंदिर से गिरफ़्तार किया गया था।
अटल बिहारी दुबे ने अपने पत्र में लिखा है कि विकास दुबे ख़ुद ही महाकाल मंदिर में सुरक्षाकर्मियों के पास गया और उन्हें पुलिस को बुलाने को कहा और वहां वह बहुत ही सहज था और भागने की कोई कोशिश नहीं की थी। विकास दुबे ने मीडियावालों से भी संपर्क किया था ताकि उसे फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मार नहीं दिया जाए और इसीलिए मीडिया की मौजूदगी में उसने जोर से कहा था कि वह कानपुर का विकास दुबे है।
पुलिस के मुताबिक़ जिस वाहन में विकास दुबे को ले जाया जा रहा था वह पलट गया। दुबे ने भागने की कोशिश की और इस क्रम में एक पुलिसवाले की पिस्टल छीन ली। जब पुलिस ने उसे सरेंडर करने को कहा तो उसने उन पर गोलियां चला दी और इस तरह दोनों ओर से चली गोलियों में वह मारा गया।
पत्र में लिखा है कि
"विकास दुबे और अन्य आरोपियों ने जो अपराध किए हैं मैं उसके ख़िलाफ़ हूँ। हम लोगों को यह आशंका थी कि उत्तर प्रदेश पुलिस विकास दुबे को मार देगी क्योंकि उन्होंने कानपुर पुलिस हत्याकांड के दूसरे आरोपियों के साथ भी यही किया है। दुर्भाग्य से पुलिस ने वही किया विकास दुबे को मार दिया और पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र राज्य में इस अदालत के दिशानिर्देशों को नहीं माना।"
इस पत्र में इस मुठभेड़ के बारे में सवाल उठाए गए हैं, जैसे पुलिस दल का पीछा करने वाले मीडिया के दल को फ़र्ज़ी मुठभेड़ के पहले दूर रोक दिया गया था और उन्हें दुबे के पीछे नहीं आने दिया गया। फिर, पुलिस ने उसे छाती में गोली क्यों मारी, उसकी टांगों में क्यों नहीं।
इसे नियोजित हत्या का मामला बताते हुए एडवोकेट दुबे ने अपने पत्र में कहा,
"सामूहिक चाहत को पूरा करने के लिए इस तरह के ढिठाई, ग़ैरक़ानूनी और प्राणघाती तरीक़े से पूरा करना क्या लोकतंत्र के लिए स्वस्थकर है? संविधान जिसकी गारंटी देता है क़ानून के उस शासन का यह उल्लंघन है।"
इस तरह एडवोकेट दुबे ने अदालत से आग्रह किया कि वह सीबीआई को इस फ़र्ज़ी मुठभेड़ में शामिल पुलिस वालों के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 302 के तहत मामला दायर करने का निर्देश दे।
इसी तरह का एक पत्र उसने याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भी भेजकर उनसे इस फ़र्ज़ी मुठभेड़ की सीबीआई/एसआईटी से स्वतंत्र जांच कराने का आग्रह किया है।
इसके अलावा कल सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा गया था कि विकास दुबे को हिरासत में लेने के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस उसकी हत्या कर सकती है।
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