श्रीनगर कोर्ट ने अवैध रूप से तीन तलाक कहने पर पति को पत्नी को मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया
Amir Ahmad
25 July 2025 12:01 PM IST

श्रीनगर कोर्ट ने एक व्यक्ति को उसकी पत्नी और उसके आश्रित बच्चे को 7,000 मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। अदालत ने पाया कि महिला तत्काल तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की शिकार है, जो मुस्लिम महिला (विवाह अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 के तहत गैरकानूनी है।
यह आदेश श्रीनगर के प्रथम अतिरिक्त मुंसिफ/प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट जिरगाम हामिद ने पारित किया जिन्होंने माना कि महिला (आवेदक संख्या 1) अवैध रूप से तलाकशुदा है और इसलिए वह 2019 अधिनियम की धारा 5 के तहत गुजारा भत्ता पाने की हकदार है।
यह देखा गया कि धारा 5 में प्रयुक्त करेगा शब्द इस न्यायालय के लिए निर्वाह भत्ता प्रदान करना अनिवार्य बनाता है और आगे कहा गया कि यह कानून एक सामाजिक और सुरक्षात्मक कानून है, जो महिलाओं को अचानक वैवाहिक विच्छेद के परिणामस्वरूप होने वाली आर्थिक तंगी से बचाने के लिए बनाया गया।
अदालत 2019 अधिनियम की धारा 5 के तहत महिला और उसके बच्चे (आवेदक नंबर 1 और 2) द्वारा दायर आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पति द्वारा तीन तलाक के माध्यम से त्याग दिए जाने के बाद निर्वाह भत्ता मांगा गया।
तलाक नोटिस का शीर्षक तलाक-ए-अहसन था अदालत ने कहा कि नोटिस की सामग्री एक तात्कालिक और अपरिवर्तनीय इरादे को दर्शाती है, जिससे यह तलाक-ए-बिद्दत के निषिद्ध रूप में आता है।
मजिस्ट्रेट ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 173(4) के तहत दर्ज FIR का हवाला दिया जिस पर अदालत ने पहले भी उन्हीं आरोपों पर आदेश दिया था।
अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अधिनियम की धारा 5 के तहत राहत CrPC की धारा 125 या घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत नियमित भरण-पोषण भत्ते से अलग है। भरण-पोषण समानता और अधिकारों का मामला है। निर्वाह जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है केवल जीवनयापन के लिए है।
आवेदक पहले से ही श्रीनगर के जज (लघु वाद) के समक्ष अलग कार्यवाही के तहत अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 10,000 प्रति माह प्राप्त कर रहे थे। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसा अंतरिम भरण-पोषण किसी महिला को मुस्लिम महिला अधिनियम 2019 के तहत निर्वाह भत्ते का दावा करने से नहीं रोकता है।
निर्वाह भत्ते की राशि निर्धारित करने के लिए अधिनियम में विशिष्ट दिशानिर्देशों के अभाव में अदालत ने CrPC की धारा 125 और घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण की कार्यवाही से संकेत लिए। महिला जो एक गृहिणी है, ने संपत्ति और देनदारियों का एक हलफनामा प्रस्तुत किया, जिसमें बताया गया कि उसके पति लगभग 3.68 लाख प्रति माह (16,000 सऊदी रियाल के बराबर) कमाते हैं।
बच्चा (आवेदक नंबर 2) भी एक ऐसी चिकित्सीय स्थिति से पीड़ित बताया गया है जिसके लिए नियमित उपचार की आवश्यकता है।
इन कारकों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने माना कि महिला और उसके आश्रित बच्चे के जीवनयापन के लिए 7,000 प्रति माह की राशि न्यायसंगत उचित और उचित होगी।
केस टाइटल: तोइबा फारूक एवं अन्य बनाम नदीम बशीर पराचा, 2025

