'जम्मू-कश्मीर प्रशासन धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए सभी प्रयास कर रहा है': हाईकोर्ट ने कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति की जनहित याचिका का निपटारा किया

Brij Nandan

22 July 2022 4:19 AM GMT

  • Consider The Establishment Of The State Commission For Protection Of Child Rights In The UT Of J&K

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट (Jammu-Kashmir & Haryana High Court) ने कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (KPSS) द्वारा दायर जनहित याचिका का निपटारा किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि घाटी में धार्मिक अल्पसंख्यकों को आतंकवादियों से सीधे खतरा है और उन्हें बाहर सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए।

    जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस जावेद इकबाल वानी की खंडपीठ ने कहा कि प्रशासन जम्मू-कश्मीर में धार्मिक अल्पसंख्यकों को सुरक्षा और सुरक्षा प्रदान करने के लिए सभी प्रयास कर रहा है और हत्याओं से बचने और हत्याओं की घटनाओं की जांच के लिए एक मजबूत तंत्र तैनात किया जा रहा है।

    पीठ ने आगे कहा कि एडवोकेट जनरल ने विशेष डीजी, सीआईडी, जम्मू-कश्मीर के एक नोट को सीलबंद लिफाफे में रखा है ताकि यह तर्क दिया जा सके कि उपरोक्त सभी मुद्दों को हल करने के लिए हर संभव देखभाल की जाती है।

    KPSS कश्मीर के 272 गांवों में रहने वाले 808 परिवारों का एक समूह है, जिन्होंने 1990 के दशक में उग्रवाद के बावजूद कश्मीर घाटी नहीं छोड़ी थी। इसकी अध्यक्षता एक कश्मीरी पंडित कार्यकर्ता संजय टिक्कू कर रहे हैं।

    केपीएसएस ने अपनी याचिका में उनके समुदाय के खिलाफ हिंसा बढ़ने के बावजूद उन्हें घाटी छोड़ने की अनुमति नहीं देने में सरकार की कथित असंवेदनशीलता की निंदा की थी।

    याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन और केंद्र सरकार कश्मीर घाटी में रह रहे धार्मिक अल्पसंख्यकों के जीवन को सुरक्षित करने में विफल रही है।

    हाईकोर्ट के अनुग्रह की मांग करते हुए समिति ने कश्मीर घाटी से उनके स्थानांतरण की मांग की थी और प्रशासन के संबंधित अधिकारियों को समुदाय की सुरक्षा के लिए अपनाई जा रही नीति और तंत्र की व्याख्या करने के लिए बुलाया गया था।

    याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में प्रतिवादी प्रशासन को 08.06.2020 से हुई सभी लक्षित हत्याओं की जांच करने, इसमें शामिल सभी अधिकारियों की भूमिका की जांच करने और उनकी ओर से लापरवाही के लिए बिना किसी देरी के उन्हें निलंबित करने के निर्देश देने की भी मांग की थी।

    याचिका का निपटारा करते हुए पीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता समिति को व्यापक तरीके से सचिव, गृह, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के समक्ष अपनी शिकायतों को उजागर करते हुए एक नया प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता है। एक बार ऐसा ज्ञापन/प्रतिवेदन प्रस्तुत किए जाने के बाद, सचिव, गृह, समिति के अध्यक्ष या इस प्रकार अधिकृत समिति के किसी अन्य नामित व्यक्ति के साथ बैठेंगे और याचिकाकर्ता की शिकायतों पर विचार करेंगे और सुझाव प्राप्त करने के बाद, यदि आवश्यक हो, उचित उपचारात्मक कदम उठा सकते हैं जो केंद्र शासित प्रदेश और अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के समग्र हित में आवश्यक हों।

    केस टाइटल: कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर।

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