जेजे एक्ट| बच्चे से स्वीकारोक्ति निकालना असंवैधानिक, प्रारंभिक मूल्यांकन रिपोर्ट के दायरे से परे: दिल्ली हाईकोर्ट
Avanish Pathak
23 Sept 2022 12:59 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अपराध के तरीके के बारे में एक बच्चे से स्वीकारोक्ति निकालना असंवैधानिक है और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत तैयार की जाने वाली प्रारंभिक मूल्यांकन रिपोर्ट के दायरे से बाहर है।
अधिनियम की धारा 15(1) के अनुसार, एक किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) को अपराध करने के लिए किशोर की मानसिक और शारीरिक क्षमता और इसके परिणामों को समझने की क्षमता के साथ-साथ उन परिस्थितियों के बारे में प्रारंभिक मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है, जिनमें कथित तौर पर अपराध किया गया।
हालांकि, इस बारे में कोई दिशानिर्देश नहीं हैं कि बोर्ड इस तरह का प्रारंभिक मूल्यांकन कैसे करेगा।
जस्टिस मुक्ता गुप्ता और जस्टिस अनीश दयाल की खंडपीठ ने यह टिप्पणी किशोर न्याय बोर्डों द्वारा एक किशोर पर एक वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने के लिए प्रारंभिक मूल्यांकन करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने के संबंध में एक आपराधिक संदर्भ का निस्तारण करते हुए की।
19 सितंबर को सुनवाई के दरमियान अदालत ने एक मनोवैज्ञानिक द्वारा तैयार की गई प्रारंभिक मूल्यांकन रिपोर्ट की एक प्रति का अवलोकन किया। प्रतिलिपि एक हस्तक्षेपकर्ता एनजीओ 'एचक्यू सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स' द्वारा प्रदान की गई थी।
पीठ ने कहा,
"उक्त रिपोर्ट के खंड 3 में यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि अपराध करने के तरीके और उसके कारणों के बारे में बच्चे से एक स्वीकारोक्ति की मांग की गई है। बच्चे से स्वीकारोक्ति मांगने का यह तरीका असंवैधानिक है और जेजे अधिनियम की धारा 15 के तहत तैयार किए जाने वाले प्रारंभिक मूल्यांकन की एक रिपोर्ट के दायरे से परे है।"
कोर्ट ने जेजे एक्ट के फॉर्म 6 पर भी ध्यान दिया, जो कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों के लिए सामाजिक जांच रिपोर्ट (एसआईआर) तैयार करने का प्रारूप प्रदान करता है, जिन्होंने कथित रूप से अपराध किया है।
कोर्ट ने कहा कि बच्चे की कथित भूमिका और अपराध करने के कारण के बारे में दो प्रश्न गलत थे क्योंकि पूर्व-परीक्षण चरण में ही अनुमान लगाया जाता है कि बच्चे ने अपराध किया है।
न्याय मित्र सीनियर एडवाकेट दयान कृष्णन ने प्रस्तुत किया कि हालांकि अधिनियम की धारा 15 के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती नहीं दी गई है, जुलाई 2022 के इसके फैसले में मूल्यांकन के संचालन के तरीके के बारे में पर्याप्त मार्गदर्शन प्रदान किया गया है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने अदालत को बताया कि एनसीपीसीआर और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को सुझाव देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुपालन में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए तीन महीने की अवधि की आवश्यकता होगी। इसी तरह, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए आठ सप्ताह का समय मांगा।
मामले को अब 7 दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
केस टाइटल: Court on its own motion v. State