जयपुर ब्लास्ट केस- राजस्थान हाईकोर्ट ने 12 साल कस्टडी में रहने और 8 अन्य समान मामलों में बरी होने वाले आरोपी को रिहाई के तुरंत बाद फिर से गिरफ्तार करने पर आश्चर्य व्यक्त किया

LiveLaw News Network

28 Feb 2021 12:15 PM GMT

  • जयपुर ब्लास्ट केस- राजस्थान हाईकोर्ट ने 12 साल कस्टडी में रहने और 8 अन्य समान मामलों में बरी होने वाले आरोपी को रिहाई के तुरंत बाद फिर से गिरफ्तार करने पर आश्चर्य व्यक्त किया

    वर्ष 2008 के जयपुर धमाकों से जुड़े मामलों में बरी होने के बावजूद जेल से रिहाई से वंचित रहे शाहबाज अहमद का मामला हमारे संविधान के तहत मिली व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी के मौलिक अधिकार का मखौल बना रहा है।

    हाल ही में, राजस्थान हाईकोर्ट यह जानकर हैरान रह गया कि शाहबाज अहमद (48), जो 2008 से हिरासत में है, को जयपुर धमाकों से जुड़े एक मामले में फिर से गिरफ्तार किया गया था। जबकि उसे धमाकों से जुड़े 8 अन्य ऐसे ही मामलों में निर्दोष पाया गया था।

    18 दिसंबर 2019 को जयपुर ब्लास्ट मामलों की सुनवाई के लिए जयपुर में गठित एक विशेष अदालत ने यह कहते हुए अहमद को आठ मामलों में बरी कर दिया था कि अभियोजन पक्ष उसके खिलाफ आरोपों को साबित करने में ''पूरी तरह से विफल'' रहा है। विशेष अदालत ने चार अन्य आरोपी व्यक्तियों को 2008 के विस्फोटों के लिए दोषी पाते हुए मौत की सजा सुनाई थी। इन ब्लास्ट में 71 लोग मारे गए थे और 200 से अधिक व्यक्ति घायल हो गए थे।

    अभियोजन पक्ष ने मूल रूप से लखनऊ निवासी अहमद को यह कहते हुए इन धमाकों से जोड़ा था कि उसने इंडियन मुजाहिदीन की ओर से एक साइबर कैफे से घटना के बारे में टीवी चैनलों को ईमेल भेजा था। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने अहमद के खिलाफ अभियोजन के मामले को खारिज कर दिया और कहा कि उसका अन्य आरोपियों के साथ कोई संबंध नहीं हैं और उसके द्वारा भेजे गए ई-मेल को साबित नहीं किया गया है।

    बरी किए गए आदेशों के ठीक एक हफ्ते बाद 25 दिसंबर 2019 को राजस्थान पुलिस ने 2008 में धमाकों के सिलसिले में दर्ज एक अन्य प्राथमिकी में अहमद को गिरफ्तार कर लिया- उसे चार्जशीट दाखिल किए बिना ही डाॅर्मन्ट रखा गया था।

    जून 2020 में, पुलिस ने इस एफआईआर में आरोप पत्र प्रस्तुत किया। अहमद ने आर्टिकल 20 (2), सीआरपीसी की धारा 300 और आईपीसी 71 के तहत 'दोहरे खतरे' के आधार पर मुकदमे से आरोपमुक्त करने के लिए ट्रायल कोर्ट में एक अर्जी दायर की, जिसमें कहा गया कि आरोप अन्य मामलों के समान हैं,जबकि उन मामलों में उसे बरी किया जा चुका है।

    जब यह आवेदन लंबित था, उसने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 439 के तहत नियमित जमानत मांगी। सत्र न्यायालय ने उसकी जमानत खारिज कर दी। इसके बाद उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    हाई कोर्ट ने आश्चर्य जताया

    हाईकोर्ट ने इस तथ्य पर आश्चर्य व्यक्त किया कि अहमद को इस मामले में 12 साल तक गिरफ्तार नहीं किया गया, जबकि वह उस समय हिरासत में था।

    न्यायमूर्ति पंकज भंडारी की एकल पीठ ने इस इस मामले में जमानत देते हुए कहा कि,

    ''यह वास्तव में आश्चर्यजनक है कि जब याचिकाकर्ता जेल में बंद था (मैं ''लैंगग्विशिंग'' शब्द का उपयोग कर रहा हूं क्योंकि याचिकाकर्ता बारह साल तक हिरासत में रहा और अंततः इन सभी मामलों में दोषी नहीं पाया गया) तो याचिकाकर्ता को इस मामले में गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया जबकि वह बारह साल तक हिरासत में रहा है?''

    जमानत के आदेश में रिकॉर्ड किया गया है कि जब पीठ ने राज्य से पूछा कि अहमद 12 साल तक अन्य मामलों के संबंध में हिरासत में था तो तब उसे इस एफआईआर के संबंध में गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया, तो अतिरिक्त महाधिवक्ता इस बारे में ''अनभिज्ञ'' थे?

    हाईकोर्ट ने आदेश में कहा कि ''अतिरिक्त एडवोकेट जनरल अदालत को यह बताने की स्थिति में नहीं थे कि याचिकाकर्ता को वर्तमान एफआईआर के संबंध में क्यों गिरफ्तार किया गया है,जबकि उसे इसी तरह के आठ अन्य मामलों में दोषी नहीं पाया गया है।''

    अहमद के वकील एडवोकेट मुजाहिद अहमद और निशांत व्यास ने तर्क दिया कि गिरफ्तारी का कोई वैध कारण नहीं था और सिर्फ उसकी हिरासत को लम्बा करने के लिए ऐसा किया गया था।

    जज ने कहा कि,

    ''याचिकाकर्ता के लिए वकील द्वारा दी गई दलीलों और इस तथ्य पर ध्यान देते हुए कि वर्तमान प्राथमिकी भी अन्य आठ प्राथमिकी के समान है, जिनमें याचिकाकर्ता को दोषी नहीं पाया गया है, मैं जमानत आवेदन की अनुमति देना उचित समझता हूं।''

    हाईकोर्ट ने उसे एक लाख रुपये के निजी मुचलके व दो जमानतदार पेश करने की शर्त पर जमानत दी है। इस प्रकार, अदालत ने अहमद को अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहने करने का मार्ग प्रशस्त किया है, जिनसे उसे राज्य ने 12 साल तक बिना कोई अपराध साबित किए ही दूर रखा था।

    सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

    कहानी की पूरी तस्वीर प्राप्त करने के लिए, 2019 में अहमद के खिलाफ दर्ज एक अन्य एफआईआर के संबंध में पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए हस्तक्षेप का उल्लेख करना आवश्यक है।

    उस प्राथमिकी में यह आरोप लगाया गया था कि अहमद ने जेल अधिकारियों पर उनके द्वारा ली जा रही तलाशी में बाधा डालने के लिए हमला किया था। हालांकि, अहमद ने दावा किया कि वह जेल में यातना का शिकार हुआ था।

    27 जनवरी, 2020 को राजस्थान हाईकोर्ट ने उसे जमानत देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने पाया था कि तात्कालिक मामले के अजीबोगरीब तथ्य और परिस्थितियाँ, विशेषकर यह तथ्य कि याचिकाकर्ता को हिरासत में 11 चोट आई थी, उसे जमानत देने को उचित साबित करते हैं।

    इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह राज्य कैडर के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को शिकायतकर्ता/याचिकाकर्ता को जेल में यातना देने की शिकायत पर जांच करने और जेल/पुलिस अधिकारी/इस तरह की जांच में दोषी पाए गए अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का निर्देश दे।

    हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने अर्णब मनोरंजन गोस्वामी बनाम यूनियन आॅफ इंडिया के मामले में कहा था कि ''एक दिन के लिए भी स्वतंत्रता से वंचित करना बहुत अधिक है'' और ''आपराधिक कानून नागरिकों के उत्पीड़न का हथियार नहीं बनना चाहिए।''

    हालांकि, शाहबाज अहमद जैसे मामले बताते हैं कि एक सामान्य नागरिक को व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बुनियादी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए लंबी और कड़ी कानूनी लड़ाई लड़नी होगी।

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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