'यह वकील का काम कि वह अदालत को कम से कम शब्दों में केस समझाए', पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने दूसरी नियमित अपील दाखिल करने के लिए जारी किए निर्देश
LiveLaw News Network
24 Feb 2020 10:22 AM IST
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में केस के तथ्यों की आसान समझ के लिए नियमित सेकेंड अपील दायर करने के लिए नियम निर्धारित किए हैं। कोर्ट ने अपील में सिनोप्सिस, क्रोनोलॉजी, उद्धरण इत्यादि के लिए निर्देश जारी करते हुए कहा कि, यह वकील का काम है कि वह कोर्ट को कम से कम शब्दों में केस समझाए।
अदालत के निर्देशों के अनुसार, 16 मार्च, 2020 से फाइलिंग काउंसिल के लिए आवश्यक होगाः
-प्रमुख तिथियों और घटनाओं की सूची के साथ मामले का सारांश रिकॉर्ड पर रखें;
-सेवा में लागू नियमों को रिकॉर्ड पर रखें; सेवा में शामिल विशिष्ट नियमों का उल्लेख करे, अगर मामले को समझने के लिए आवश्यक हो तो उक्त नियमों की फोटोकॉपी भी संलग्न की जा सकती है,
-संबंधित आदेश/आदेशों की प्रति संलग्न करें( यदि मूल आदेश क्षेत्रीय भाषाओं में हो तो अंग्रेजी अनुवाद संलग्न करें)
-उन मूल दस्तावेजों की प्रतियां संलग्न करें, जिन्हें संदर्भित किया जाना है (अनुवाद के साथ)
-निर्धारण में शामिल कानूनी बिंदु/ बिंदुओं के अनुलग्नक शामिल करें
-उन निर्णयों के अनुलग्नक्र शामिल करें, जिन पर भरोसा किया जाना है (या कम से कम प्रत्याशित दस्तावेज, प्रतिकूल आदेश, पहली सुनवाई में अदालत में पेश करने योग्य पूर्ववर्ती उदाहरण को शामिल करें)
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि रजिस्ट्री में आरएसए को शामिल किया जाना चाहिए, हालांकि उपरोक्त निर्देशों के अनुपालन तक उन्हीं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं करना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी माना कि सिविल कोर्ट में सेवा कानून के विवादों को हल करने के लिए उच्च न्यायालय के नियमों और आदेशों (सीपीसी) में आवश्यक और परिणामी संशोधनों पर विचार किया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने ये निर्देश एक रेगुलर सेकंड अपील, सरजीवन रानी बनाम पंजाब राज्य व अन्य पर जारी किए, जिसके तहत जस्टिस राजीव नारायण रैना ने कहा कि ये निर्देश न्यायालय को दूसरी अपील के निर्धारण में उचित और समय पर सहायता के उद्देश्य से जारी किए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि ऊपरी अदालतों से यह अपेक्षा नहीं की जानीय चाहिए कि वे निचली अदालतों के फैसले, गवाहियों और हजारों पन्नों का अध्ययन करें।
"यह वकील का काम है कि वह अदालत को कम से कम शब्दों में मामले को समझाए, जिसके लिए उसे पैसे दिए जाते हैं। दूसरी अपील के अब तक के फॉर्मेट में अपील के महत्वपूर्ण मुद्दों को समझ पाना बहुत मुश्किल है।"
एक व्यापक आदेश में जस्टिस रैना ने कहा कि उक्त निर्देश केवल सेवा कानून विवादों के लिए जारी किए जा रहे हैं। उन्होंने सेवा कानून मामलों के त्वरित निस्तारण के लिए कई संस्तुतियां दीं।
जस्टिस रैना ने कहा कि सिविल, व्यक्तिगत और निजी कानून विवादों में जहां मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य दोनों की आवश्यकता होती है, सेवा कानून विवाद केवल दस्तावेजी सबूतों पर आधारित होते हैं। चूंकि ये दस्तावेज सरकारी कार्यालयों और विभागों के पास होते हैं, इसलिए अदालत उनका नोटिस ले सकती है।
"गवाहों की पेशी, विवरण सार्वजनिक/दस्तावेजी साक्ष्यों और नियम आधारित अधिनिर्णयों के समक्ष अप्रासंगिक हैं। ट्रायल कोर्ट को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सभी पक्षों द्वारा पेश मूल दस्तावेजों की अधिकृत प्रतियों को रिकॉर्ड पर लाया जाए, ताकि न्यायालय द्वारा मूल प्रतियों के साथ उचित तुलना के बाद मुद्दे या कानून के बिंदु का फैसला हो।"
सेवा मामलों में दस्तावेजों की पुष्टि के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि जिला अटार्नी और अन्य कानून अधिकारियों वादी/वादियों द्वारा पेश संबंधित दस्तावेजों को प्रतिवाद में शामिल संबंधित विभागों द्वारा प्रमाणित करवाया जाए।
जस्टिस रैना ने कहा कि कोर्ट का समय अक्सर ही रिकॉर्ड पेश करने के लिए सरकारी अधिकारियों के आने का इंतजार करने में बर्बाद हो जाता है। इसलिए, ट्रायल कोर्ट को दस्तावेजों की पेशी में लगने वाले समय और सरकारी खजाने की होने वाली भारी बर्बादी के बारे में जागरूक किए जाने और उन्हें इन प्रक्रियाओं में लगे समय को तर्कसंगत बनाने के व्यावहारिक तरीके खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाने का निर्देश दिया जाता है।
जस्टिस रैना ने बचाव पक्ष को पेश करने के अवसर को खत्म करने की प्रथा की भी आलोचना की, उनका मानना है कि इससे मामले में और देरी होती है।
अदालत ने कहा कि वरिष्ठता, नियुक्तियों, पदोन्नति, प्रत्यावर्तन, अनुशासनात्मक कार्रवाई, दंड, बर्खास्तगी, सेवा समाप्ति, सेवा के नियमितीकरण आदि मामलो में शामिल सेवा कानूनों अक्सर तीसरे पक्ष पर व्यापक प्रभाव पड़ता है, जो एक से अधिक जिलों से संबंधित हो सकता है या नहीं भी हो सकता है।
अदालत ने कहा कि जहां ट्रायल कोर्ट के फैसले का व्यापक प्रभाव हो, वहां उन्हें जिला अटॉर्नी से संबंधित विभाग के प्रमुख के परामर्श से तैयार एक रिपोर्ट मांगनी चाहिए। यदि रिपोर्ट सकारात्मक हो तो ट्रायल कोर्ट को इस आधार पर कार्यवाही समाप्त कर देना चाहिए कि, फैसले का तीसरे पक्ष के अधिकारों पर अंतर-जनपदीय प्रभाव है।
जस्टिस रैना ने कहा कि उपरोक्त सुझाव रचनात्मक प्रकृति के हैं, जिनमें सिविल कोर्ट को सेवा कानून के मामलों में कैसे आगे बढ़ना चाहिए, का उल्लेख है। उन्होंने कहा, " सिविल कोर्ट बचे हुए समय का उपयोग सिविल विवादों के समाधान में कर सकता है।"
मामले का विवरण:
केस टाइटल: सरजीवन रानी बनाम पंजाब राज्य व अन्य।
केस नं: RSA 501/2020
कोरम: जस्टिस राजीव नारायण रैना
अधिवक्ता: एडवोकेट प्रिंस गोयल (अपीलकर्ता के लिए)
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