आईटी रूल्स, 2021 सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर गैरकानूनी, फर्जी सामग्री को हटाने के लिए चेक और बैलेंस प्रदान करते हैं; प्री-सेंसरशिप की वकालत नहीं करते: दिल्ली हाईकोर्ट को दिए हलफनामे में केंद्र ने कहा

LiveLaw News Network

17 Nov 2021 10:06 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट से कहा है कि नए आईटी नियम, 2021 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध फर्जी खबरों (फेक न्यूज) सहित गैरकानूनी सामग्री को हटाने के लिए चेक-एंड-बैलेंस प्रदान करते हैं और नियम प्री-सेंसरशिप की वकालत नहीं करते हैं।

    केंद्र सरकार ने एक हलफनामा दायकर कर नियमों की वैधता का बचाव करते हुए यह भी कहा है कि फर्जी खबरों में "सामुदायिक ताने-बाने को कुछ ही समय में तोड़ने की क्षमता होती है और अक्सर इनसे सार्वजनिक व्यवस्था की गंभीर समस्याएं होती पैदा होती हैं।" केंद्र सरकार नए संशोधन के जरिए फर्जी खबरों के प्रकाशन और प्रसारण के पीछे मूल अपराधियों का विवरण मांगेगी।

    केंद्र सरकार की और से एडवोकेट उदय बेदी ने हलफनामा दायर किया। जिस याचिका पर हलफनामा दायर किया गया, उसमें आईटी नियमों के नियम 3 और 4 को चुनौती दी गई है क्योंकि वे सोशल मीडिया मध्यस्थों को निजी व्यक्तियों, ‌जिन्हें वे उचित समझे, से प्राप्त शिकायतों के आधार पर स्वेच्छा से जानकारी तक पहुंच को हटाने के लिए व्यापक अधिकार प्रदान करते हैं।

    केंद्र ने हलफनामे में कहा है,

    "ऑनलाइन प्लेटफॉर्म गतिशील प्रकृति के हैं। गैरकानूनी सामग्री एक प्लेटफॉर्म से दूसरे प्लेटफॉर्म पर तेजी से फैलती है। इसलिए मध्यस्‍थों को व्यक्तियों या राज्य को नुकसान से बचाने और नुकसान को रोकने के लिए अनुपालन कार्रवाई (सामग्री को हटाने) को तेजी से सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है। यदि तत्काल कार्रवाई नहीं है तब अवैध सामग्री अन्य प्लेटफार्मों में फैल सकती है या नए रूप (संशोधित सामग्री) ग्रहण कर सकती है और इस तरह की गैरकानूनी सामग्री को कई प्लेटफार्मों पर सामग्री के कई रूपों में पहुंचने के बाद इसे हटाना मुश्किल है।"

    इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया है कि नियमों के संचालन और प्रवर्तन पर रोक लगाने वाला कोई भी अंतरिम आदेश सोशल मीडिया मध्यस्थों के कानूनी अनुपालन को प्रभावित करेगा और एक स्वच्छ, सुरक्षित, भरोसेमंद और जवाबदेह ऑनलाइन पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के उद्देश्य को समाप्त कर देगा।

    यह कहते हुए कि नियम संवैधानिक रूप से मान्य हैं, केंद्र ने आगे कहा है कि नियमों का स्पष्ट ध्यान महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा बढ़ाने पर है। इसके अलावा, यह कहा गया है कि केवल नियमों को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि उपयोगकर्ताओं को मध्यस्थ कंप्यूटर संसाधनपर उपलब्ध किसी भी जानकारी को होस्ट करने, प्रदर्शित करने, अपलोड करने, संशोधित करने, प्रकाशित करने, संचारित करने, स्टोर करने, अपडेट करने या साझा करने के लिए प्रतिबंधित नहीं किया गया है।

    केंद्र ने कहा है, "केवल ऐसी जानकारी, उदाहरण के लिए, जो मानहानिकारक, अवमाननापूर्ण, अश्लील, पीडोफिलिक, किसी अन्य की गोपनीयता के लिए आक्रामक, शारीरिक गोपनीयता आदि से संबंधित है, उन्हें उपयोगकर्ता द्वारा साझा नहीं करने के लिए सहमति दी जाएगी। उपरोक्त बिंदु किसी भी तरह से भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ठंडा प्रभाव नहीं डालता है।"

    याचिका में कहा गया था कि नियमों के लिए महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थ की आवश्यकता होती है ताकि वह संदेश के पहले प्रवर्तक का पता लगा सके जिससे निजता के अधिकार का उल्लंघन होता है।

    इसे सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के निजता के अधिकार पर आश्यर्चजन‌क, अनुपातहीन और व्यापक अतिक्रमण बताते हुए याचिका में कहा गया है, "आक्षेपित नियम लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के विरोधी हैं, जो संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है, जहां राज्य एजेंसियां ​​​​पारदर्शी होने के लिए उत्तरदायी हैं और नागरिकों को विभिन्न अधिकारों और स्वतंत्रता की अनुमति देती हैं।"

    हाल ही में, नियम 4 (2) के तहत ट्रेसबिलिटी प्रावधान की वैधता का बचाव करते हुए केंद्र ने कहा था कि वह उम्मीद करता है कि प्लेटफॉर्म एक ऐसे तंत्र का उपयोग करें जो एन्क्रिप्शन की रक्षा करता है और उपयोगकर्ता की गोपनीयता की रक्षा करता है।

    इसने यह भी कहा कि भारतीय कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र विकसित करना और अपने मौजूदा ढांचे को संशोधित करना प्लेटफार्मों का कर्तव्य है।

    शीर्षक: उदय बेदी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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