क्या एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के तहत वर्जित वस्तुओं की तलाशी/ वसूली मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में ही हो सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले को बड़ी बेंच के हवाले किया

LiveLaw News Network

21 Jun 2020 8:08 AM GMT

  • क्या एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के तहत वर्जित वस्तुओं की तलाशी/ वसूली मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में ही हो सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले को बड़ी बेंच के हवाले किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक आरोपी से नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के तहत वर्जित वस्‍‌तुओं की वसूली की प्रक्रिया से संबंधित मुद्दे को बड़ी बेंच को सौंप दिया है।

    यह मुद्दा तलाशी/वसूली के दरमियान मजिस्ट्रेट की अनिवार्य उपस्थिति से संबंधित है।

    एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 (1) में कहा गया है कि धारा 42 के तहत विधिवत प्राधिकृत अधिकारी, जब धारा 41, धारा 42 या धारा 43 के प्रावधानों के तहत किसी भी व्यक्ति की तलाशी लेने वाला हो, वह, यदि ऐसा व्यक्ति चाहता है तो उसे बिनी किसी देरी के निकटतम मजिस्ट्रेट या धारा में उल्लिखित किसी भी विभाग के निकटतम राजपत्रित अधिकारी के समक्ष पेश कर सकता है।

    जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने इस मुद्दे पर दो हाईकोर्ट की दो एकल-पीठों की ओर से दिए विरोधाभासी फैसलों पर गौर करने के बाद विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजा दिया।

    इन्नोसेंट उजोमा बनाम राज्य के मामले में, जस्टिस विभू बाखरू ने कहा था कि मजिस्ट्रेट की उपस्थिति अभियुक्त की इच्छा पर निर्भर है।

    फैसले में कहा गया था,

    "सामान्य तौर पर, इस संबंध में, जिसकी तलाशी ली जानी है, और उसे उसके अधिकारों के बारे में सूच‌ित कर दिया गया है और यदि उस व्यक्ति की इच्छा नहीं है तो मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में तलाशी की कोई आवश्यकता नहीं है। एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 (1) में उपयोग किए गए शब्दों "यदि उस व्यक्ति की इच्छा नहीं है" से यह स्पष्ट है कि उस व्यक्ति को, जिसकी तलाशी की जानी है को मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी के समक्ष केवल तभी ले जाया जाएगा, जब उसकी आवश्यकता होगी।"

    वैभव गुप्ता बनाम राज्य के मामले में, हाईकोर्ट ने कहा था कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 का अनुपालन अनिवार्य है और भले ही आरोपी ने इनकार कर दिया हो, फिर भी मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में तलाशी होनी चाहिए।

    हाईकोर्ट ने आरिफ खान @ आगा खान बनाम उत्तराखंड राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया था, जिसके तहत यह कहा गया-

    "संदिग्ध के पास से वर्जित वस्तुओं की तलाशी और वसूली करने के लिए, तलाशी और वसूली एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 की आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिए। इसलिए, अभियोजन के लिए यह अनिवार्य है कि यह साबित करें कि मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में अपीलकर्ता से तलाशी और वसूली की गई थी।"

    मौजूदा मामले में, एक आरोपी ने एनडीपीएस एक्ट के तहत जमानत याचिका दायर की थी, जिसके तहत अदालत के समक्ष सवाल उठा था कि चूंकि वसूली मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी की अनुपस्थिति में कह गई थी, इसलिए क्या तलाशी की प्रक्रिया का विधिवत पालन किया गया था।

    कानून में विसंगति को देखते हुए, जस्टिस कैत ने कहा-

    "माननीय श्री जस्ट‌िस विभू बाखरू की ओर से इन्‍नोसेंट उजोमा (सुप्रा) के मामले में पारित दिनांक 14 जनवरी 2020 का आदेश और दिनांक 20 सितंबर 2019 इस अदालत की ओर से एक जमानत याचिका No.2014/2019 में पारित किया गया आदेश एक दूसरे का विरोधाभासी है और इनके अलावा, याचिकाकर्ता के वकील और एपीपी के लिए वकील की ओर से संदर्भित किया गया निर्णय एक ही मुद्दे पर अलग-अलग राय रखते हैं। इसलिए, न्याय के हित में, मैं माननीय मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध करता हूं कि वह इस मुद्दे को तय करने के लिए एक पीठ का गठन करें।"

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