'पर्यावरण और हाथी की आबादी का अपूरणीय क्षति होगी': उत्तराखंड हाईकोर्ट ने शिवालिक एलीफेंट रिजर्व को डी-नोटिफाई करने के आदेश पर रोक लगाई

LiveLaw News Network

23 Feb 2021 9:33 AM GMT

  • पर्यावरण और हाथी की आबादी का अपूरणीय क्षति होगी: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने शिवालिक एलीफेंट रिजर्व को डी-नोटिफाई करने के आदेश पर रोक लगाई

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर देहरादून के जॉली ग्रांट हवाई अड्डे के विस्तार के लिए शिवालिक हाथी रिजर्व के प्रस्तावित क्षेत्र को बदल दिया जाता है, तो पर्यावरणीय नुकसान होगा और इसके साथ ही हाथी की आबादी पर भी इसका अनुचित प्रभाव पड़ेगा।

    चीफ जस्टिस राघवेन्द्र सिंह चौहान और जस्टिस मनोज कुमार तिवारी की डिवीजन बेंच ने प्रथम दृष्टया (Prima Facie को रिकॉर्ड करते हुए शिवालिक एलीफेंट रिजर्व के प्रस्तावित क्षेत्र में बदलाव (डी-नोटिफाई) करने के आदेश पर रोक लगा दी।

    खंडपीठ ने यह भी कहा कि वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 2 के उल्लंघन में सरकार द्वारा आदेश पारित किया गया था, जो किसी भी आरक्षित क्षेत्र को हटाने से पहले राज्य को केंद्र सरकार से अनुमति लेने के लिए बाध्य करता है।

    कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि,

    "चूंकि यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि केंद्र सरकार ने आरक्षित क्षेत्र, को बदलने के लिए अपनी सहमति दी है और दिनांक 08.01.2021 की अधिसूचना वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 2 का उल्लंघन करती है। इस प्रकार, याचिकाकर्ता के पक्ष में एक मजबूत प्रथम दृष्टया मामला है।

    यदि, अधिसूचना को संचालित करने की अनुमति दी गई थी, और यदि हवाई अड्डे के विस्तार के उद्देश्य से एलीफेंट रिर्जव के प्रस्तावित क्षेत्र को बदल दिया जाता है, तो पर्यावरण और हाथी आबादी दोनों के लिए एक अपूरणीय क्षति होगी।"

    पृष्ठभूमि

    24 नवंबर, 2020 को उत्तराखंड राज्य वन्यजीव बोर्ड ने सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में एक बैठक में जॉली ग्रांट हवाई अड्डे के विस्तार के लिए शिवालिक रिजर्व के प्रस्तावित क्षेत्र को बदलने (डी- नोटिफाई) करने की सिफारिश की थी। इस साल जनवरी में, उच्च न्यायालय ने मामले में स्वत: संज्ञान लिया था।

    तत्पश्चात, 8 जनवरी 2021 को अदालत ने दिए गए आदेश पर चार सप्ताह के लिए (सुनवाई की अगली तारीख तक) निरस्त करने की सिफारिश पर रोक लगा दी।

    हालांकि, उसी दिन सरकार ने शिवालिक हाथी रिजर्व को पुन: आरक्षित करने की अधिसूचित जारी कर दी।

    याचिकाकर्ता ने इस प्रकार निम्नलिखित आधार पर सरकार के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी:

    1. वन संरक्षण अधिनियम, 1980 की धारा 2 के अनुसार, किसी भी राज्य सरकार को केंद्र सरकार की अनुमति के बिना किसी भी आरक्षित क्षेत्र को पुन: आरक्षित करने की अनुमति नहीं है। हालांकि, वर्तमान मामले में, ऐसी कोई अनुमति नहीं मांगी गई थी और केंद्र सरकार द्वारा ऐसी कोई अनुमति नहीं दी गई है।

    2. राज्य सरकार द्वारा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की मंजूरी के लिए प्रस्ताव भेजा गया था। हालांकि, केंद्रीय मंत्रालय ने कुछ चिंताओं को उठाया था और उक्त प्रस्ताव पर निर्णय लेने से पहले कुछ स्पष्टीकरण मांगे थे। इस प्रकार, अब तक वन संरक्षण अधिनियम की धारा 2 का जनादेश पूरा नहीं हुआ है।

    3. यदि अधिसूचना दिनांक 08.01.2021 पर तुरंत रोक नहीं लगाई जाती है, तो इससे पारिस्थितिकी, पर्यावरण, और जंगल में रगने वाले हाथियों के जीवन की अपूरणीय क्षति हो सकती है, जो शिवालिक हाथी रिजर्व के संरक्षण और रिजर्व का आनंद ले रहे हैं।

    अपने आदेश में, न्यायालय ने कहा कि सुविधा का संतुलन याचिकाकर्ता के पक्ष में है। आगे कहा कि,

    "याचिकाकर्ता ने एक तर्कपूर्ण मामला उठाया है, जो 24.12.2020 की सिफारिश और 08.01.2021 की अधिसूचना की वैधता से संबंधित है। एक अन्य मुद्दा भारत के संविधान के अनुच्छेद 48-ए से संबंधित है, जहां वन्य जीवन के संरक्षण से संबंधित होगा। इसके अलावा, मुद्दा यह होगा कि राज्य के सतत विकास को कैसे सुनिश्चित किया जाए, जहां पारिस्थितिकी के संरक्षण और हमारे वन्यजीवों के संरक्षण के लिए राज्य के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए राज्य का आवश्यक विकास करना है।"

    अदालत ने केंद्रीय मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित डायवर्जन के संबंध में उठाए गए चिंताओं पर भी ध्यान दिया, जो 'उच्च संरक्षण मूल्य क्षेत्र (High Conservation value Area)' के अंतर्गत आता है। मंत्रालय के अनुसार, इस तरह के प्रस्तावित आरक्षित क्षेत्र में बदलाव करने से विखंडन होगा और हाथियों के लिए क्षेत्र कम हो जाएगा।

    पीठ ने कहा कि,

    "केंद्रीय मंत्रालय ने खुद सुझाव दिया है कि जॉली ग्रांट हवाई अड्डे के विस्तार के लिए अन्य विकल्पों का पता लगाया जाए।"

    कोर्ट ने सरकार के आदेश पर सुनवाई की अगली तारीख यानी 3 मार्च, 2021 तक के लिए रोक लगाई।

    केस का शीर्षक: रीना पॉल बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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