ट्रायल कोर्ट ने तर्क और साक्ष्य की सराहना में अनियमितताएं की: कर्नाटक हाईकोर्ट ने पोक्सो मामले में 62 वर्षीय व्यक्ति की मौत की सजा को खारिज किया
LiveLaw News Network
29 Sept 2021 5:08 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने 2018 में नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी 62 वर्षीय व्यक्ति की मौत की सजा रद्द कर दी है।
जस्टिस जी नरेंदर और जस्टिस एमआई अरुण की खंडपीठ ने आरोपी वेंकटेशप्पा की अपील को आंशिक रूप से अनुमति देते हुए दोषसिद्धी और सजा के फैसले को रद्द कर दिया। साथ ही मामले को आंशिक री-ट्रायल के लिए वापस भेज दिया।
पीठ ने कहा,
"मृत्युदंड देने के लिए ट्रायल कोर्ट की ओर से दिए गए तर्क पर, हम अपनी टिप्पणियों को यह कहते हुए सीमित कर रहे हैं कि इसने हमारे न्यायिक विवेक को झकझोर दिया है और फैसले के लेखक में न्यायिक स्वभाव की कमी को भी दर्शाता है।"
कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को छह माह के भीतर आंशिक री-ट्रायल समाप्त करने का आदेश दिया है, जिसमें विफल रहने पर आरोपी जमानत का हकदार होगा।
मामले के तथ्य
मामले में पीड़िता की मां ने शिकायतकर्ता पर आरोप लगाया था कि जब वह काम से लौटी तो उसने पीड़िता को अपने घर के बाथरूम में बंद पाया। उसे तोड़ने पर उसने पाया कि आरोपी अपने कपड़े बदल रहा है।
शिकायतकर्ता ने तुरंत पीड़िता के कपड़ों का निरीक्षण किया और पाया कि उसकी पैंट और अंडरगारमेंट को हटा दिया गया था। पूछताछ करने पर पता चला कि आरोपी पीड़िता के ऊपर सोया था और वह जिस जगह से पेशाब करती है, वहां कुछ किया गया था।
जिसके बाद, पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376, और पोक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 4 और 6 के तहत मामला दर्ज किया। आरोपी को 02.05.2018 को गिरफ्तार कर लिया गया और वह गिरफ्तारी की तारीख से हिरासत में है।
अभियोजन पक्ष ने 19 गवाहों की जांच की। 17 जनवरी 2020 को दिए आदेश में अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराया। उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दंडनीय अपराध के लिए मृत्युदंड दिया गया। पोक्सों अधिनियम की धारा 4 और धारा 6 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए भी दोषी ठहराया गया था।
अभियुक्त की प्रस्तुति
अभियुक्त की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि ट्रायल कोर्ट का फैसला गलत है, क्योंकि Ex.P.12 - डीएनए रिपोर्ट की जांच के आवेदन को अस्वीकृति कर दिया गया था।
साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 45 के तहत एक अन्य आवेदन, जिसमें अदालत से अनुरोध किया गया था कि आरोपी डीएनए जांच के लिए रक्त और वीर्य के नए नमूने देगा, क्योंकि उसे Ex.P.12 की रिपोर्ट पर संदेह था, को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि डीएनए रिपोर्ट देने वाले विशेषज्ञ को बुलाने की जरूरत नहीं है। पोक्सो अधिनियम के तहत अपराधों के मुकदमे के संबंध में, गवाहों से लंबी जिरह की कोई गुंजाइश नहीं है।
विशेष लोक अभियोजक ने स्वीकार किया कि ट्रायल कोर्ट के तर्क कानूनी जांच के समक्ष ठहर नहीं पाएंगे। ट्रायल कोर्ट को आरोपी को पूरा मौका देना चाहिए था और इस तरह निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करनी चाहिए थी।
परिणाम
अदालत ने कहा, "अर्जियों को खारिज करने के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा तय तर्क को पढ़ने से यह दृढ़ता से अनुमान लगाया जा सकता है कि ट्रायल कोर्ट ने उन सबूतों को प्री-जज किया, जिन्हें गवाह द्वारा दिया गया था, जिन्हें समन किए जाने के लिए प्रस्तावित किया गया था यानी Ex.P12 का लेखक।"
कोर्ट ने नोट किया,
"भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 45, 'विशेषज्ञों की राय' से संबंधित है। यदि इसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 60 के साथ में पढ़ा जाता है, जो 'मौखिक साक्ष्य' से संबंधित है, विशेष रूप से, प्रावधान, हमारी राय में, दस्तावेज के लेखक को जिरह के लिए उपलब्ध कराए बिना Ex.P12 पर निर्भरता, एक निष्पक्ष परीक्षण से इनकार करने के बराबर है और अपराध की खोज और अपीलकर्ता के परिणामी दोषसिद्धि को नष्ट करती है।"
कोर्ट ने कहा, "डीएनए परीक्षण के लिए अभियुक्त की निजता का भी गंभीर उल्लंघन हुआ है।"
सबूतों पर गौर करने के बाद कोर्ट ने कहा, "प्रथम दृष्टया, सबूतों का मूल्यांकन हमें किसी यौन उत्पीड़न के बारे में आश्वस्त नहीं करता है। इसके अलावा, यह दावा किया गया है कि बच्चा 12 साल का है। धारा 9 (एम) पॉक्सो अधिनियम 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे पर यौन हमले को संदर्भित करता है। ट्रायल कोर्ट द्वारा इस महत्वपूर्ण पहलू की भी उचित सराहना नहीं की गई है।"
अदालत ने निष्कर्ष में कहा, "हम इस तथ्य के मद्देनजर अपराध या अपराध के संबंध में कोई राय बनाने से इनकार करते हैं कि इस अदालत ने मामले को वापस भेजने का फैसला किया है।"
तदनुसार, कोर्ट ने आदेश दिया, "डीएनए वशेषज्ञ को समन जारी करने के लिए सीआरपीसी की धारा 293 के तहत दायर आवेदन की अनुमति दी जानी चाहिए और तदनुसार अनुमति दी जाती है। आरोपी Ex.P12 के लेखक को समन करने का हकदार है। नतीजतन, ट्रायल कोर्ट Ex.P12 के लेखक की मुख्य परीक्षा लेने के लिए उचित कदम उठाएगा और आरोपी द्वारा या उसकी ओर से उसकी जिरह की अनुमति देगा। इसके अलावा, सीआरपीसी की धारा 311 के तहत आवेदन के तहत प्रार्थना के अनुसार पीडब्ल्यू 1 से 3 की जिरह केवल अनुमेय सीमा तक और Ex.P12 की सामग्री और निष्कर्ष तक सीमित होगा।"
केस शीर्षक: वेंकटेशप्पा बनाम कर्नाटक राज्य
केस नंबर: आपराधिक अपील संख्या 227/2020
आदेश की तिथि: 3 सितंबर, 2021।
प्रतिनिधित्व: अपीलकर्ता के लिए एडवोकेट वीरन जी तिगड़ी; प्रतिवादी के लिए विशेष लोक अभियोजक वी एम शीलवंत, एडवोकेट विजया कुमार मेजे।