सह-अभियुक्त को बचाने का प्रयास करने और नाबालिग बलात्कार पीड़िता की उम्र से छेड़छाड़ करने के मामले मेंं राजस्थान हाईकोर्ट ने जांच अधिकारी को निलंबित करने और विभागीय जांच शुरू का निर्देश दिया

LiveLaw News Network

16 Sep 2020 3:47 PM GMT

  • राजस्थान हाईकोर्ट

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    राजस्थान हाईकोर्ट ने पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया है कि वह नाबालिग से बलात्कार करने के मामले की ठीक से जांच न करने वाले संबंधित जांच अधिकारी को तुरंत निलंबित करें। साथ ही इस अधिकारी को कड़ा दंड देने के लिए उसके खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू की जाए।

    न्यायमूर्ति संजीव प्रकाश शर्मा ने इस मामले में दायर जमानत याचिका पर विचार करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया यह पाया गया है कि जांच अधिकारी ने गंभीर अपराध किया है, इसलिए उसके मामले से विभागीय रूप से निपटा जाना चाहिए।

    याचिकाकर्ता ने इस मामले में दूसरी बार जमानत याचिका दायर की थी। उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 366 और 376 के तहत किए गए अपराधों के मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

    याचिकाकर्ता की मुख्य दलील सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता द्वारा दर्ज करवाए गए बयान पर आधारित थी, जिसमें विशेष रूप से वर्तमान याचिकाकर्ता और अन्य व्यक्ति तौफिक के खिलाफ आरोप लगाया गया था। याचिकाकर्ता की तरफ से दलील दी गई थी कि पुलिस ने मामले की ठीक से जांच नहीं की है और केवल वर्तमान याचिकाकर्ता को ही इस मामले में आरोपी बनाया गया है।

    इसके बाद कोर्ट ने उस जांच अधिकारी को बुलाने का निर्देश दिया था, जिसने इस मामले की जांच की थी, ताकि यह पता चल सके कि मामले की जांच किस तरीके से की गई है। चूंकि मामले में दूसरे व्यक्ति का नाम एफआईआर में दर्ज किया गया था, परंतु तौफिक नामक इस व्यक्ति को जांच के दौरान छोड़ दिया गया और उसके खिलाफ आरोप पत्र दायर नहीं किया गया था।

    जांच अधिकारी ने कोर्ट को बताया कि जांच के दौरान तौफिक को आरोपी नहीं बनाया गया था, क्योंकि उसके मोबाइल फोन की लोकेशन हरियाणा में अलग-अलग जगह पर पाई गई थी, इसलिए यह अनुमान लगाया गया था कि तौफिक पीड़िता को जबरन अपने साथ ले जाने व उससे बलात्कार करने के मामले में याचिकाकर्ता के साथ शामिल नहीं था।

    न्यायालय ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता द्वारा दिए गए बयान को ध्यान में रखते कोर्ट जांच अधिकारी के स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं है। चूंकि पीड़िता ने अपने बयान में साफ तौर पर कहा है कि तौफिक ने उससे बलात्कार किया था।

    न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि यह एक ऐसा मामला है,जहाँ जांच अधिकारी ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता द्वारा दिए गए बयान पर संदेह करते हुए सह-अभियुक्त तौफिक को बचाने का प्रयास किया है।

    खंडपीठ ने कहा कि यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों, विशेष रूप से भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 ए के विपरीत था। यह धारा 'कुछ अभियोग में सहमति के अभाव का अनुमान लगाने' के बारे में बताती है। इसलिए ,जांच अधिकारी रिकाॅर्ड पर आए बयान से अन्यथा कुछ अनुमान नहीं लगा सकता था।

    न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि,''इससे सह-अभियुक्त के खिलाफ मामला भी कमजोर होगा।''

    न्यायालय ने कहा कि पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराया था और उसने अपनी उम्र 14 साल बताई थी।

    हालाँकि, जांच अधिकारी ने रेडियोलॉजिस्ट से प्राप्त कुछ रिपोर्ट के आधार पर पीड़िता की आयु 19 से 21 वर्ष के बीच मानी है। जो कि संभव नहीं हो सकती है क्योंकि प्राथमिकी में पीड़िता के माता-पिता ने उसकी उम्र 13 वर्ष बताई थी और सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज कराए गए बयान में उसने अपनी उम्र 14 साल बताई थी। जबकि जांच अधिकारी ने उसकी उम्र को बदलकर 19 वर्ष कर दिया है।

    न्यायाधीश ने निष्कर्ष निकाला कि जांच अधिकारी ने आरोपी व्यक्तियों को बचाने की कोशिश की है जो एक गंभीर अपराध है।

    दूसरी जमानत याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस शर्मा ने कहा कि पीड़िता का बयान दर्ज होने के बाद आरोपी-याचिकाकर्ता फिर से अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र होगा।

    न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट को भी निर्देश दिया है कि वह इस मामले में जल्द से जल्द पीड़िता का बयान दर्ज करे।

    आदेश की काॅपी डाउनलोड करें।



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