एक महिला के लिए 1500 रुपए प्रति माह में खुद का भरण-पोषण करना बेहद मुश्किल: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

18 Jan 2022 8:59 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट


    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यह कल्पना करना बेहद मुश्किल है कि एक महिला 1500 रुपये प्रति माह की राशि के साथ खुद का भरण-पोषण करने की स्थिति में होगी।

    कोर्ट ने आगे कहा कि पति का कर्तव्य और जिम्मेदारी है कि वह अपनी पत्नी की पूरी गरिमा के साथ देखभाल करे।

    न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की खंडपीठ ने आगे टिप्पणी की कि अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 1500 रुपए की राशि न केवल एक अल्प राशि है, बल्कि पत्नी के लिए खुद की देखभाल करने के लिए भी अपर्याप्त है।

    पूरा मामला

    याचिकाकर्ता (पति) का विवाह वर्ष फरवरी 2014 में प्रतिवादी संख्या 2 (पत्नी) के साथ अनुष्ठापित किया गया था, लेकिन पति ने उनके बीच वैवाहिक विवाद के कारण जून 2015 में उसे उसके माता-पिता के घर छोड़ दिया।

    इसके बाद, पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 Cr.P.C के तहत एक आवेदन दिया। फरवरी 2016 में पत्नी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ उत्पीड़न और प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए 40,000 रुपये प्रति माह के भरण-पोषण का दावा किया।

    हालांकि, फैमिली कोर्ट ने मार्च 2019 में याचिकाकर्ता को आदेश की तारीख से पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 1500 रुपये प्रति माह की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया।

    अंतरिम भरण-पोषण का भुगतान न करने पर पत्नी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ जुलाई 2021 में एक आवेदन दायर कर निष्पादन कार्यवाही शुरू की, जिसमें फैमिली कोर्ट द्वारा याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।

    कारण बताओ नोटिस और 2019 के अंतरिम भरण-पोषण आदेश को चुनौती देते हुए पति ने कोर्ट का रुख किया।

    प्रारंभ में, याचिकाकर्ता / पति ने तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट ने 1500 रुपये का प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण देने में कानूनी त्रुटि की है। तथापि, बाद में, उन्होंने भरण-पोषण आदेश के खिलाफ अपनी चुनौती छोड़ दी और केवल कुछ उचित समय के लिए प्रार्थना की ताकि वह किश्तों में भरण-पोषण राशि का पूरा बकाया जमा कर सके।

    कोर्ट का आदेश

    याचिकाकर्ता ने मैरिट के आधार पर अंतरिम भरण-पोषण आदेश को चुनौती नहीं दी, हालांकि, कोर्ट ने इस प्रकार राय दी,

    "प्रदान की गई अंतरिम भरण-पोषण की राशि न केवल कम है, बल्कि प्रतिवादी संख्या 2 के लिए भी अपर्याप्त है। यह पति का कर्तव्य और जिम्मेदारी है कि वह अपनी पत्नी को पूरी गरिमा के साथ बनाए रखे। आजकल यह कल्पना करना बेहद मुश्किल है कि एक महिला 1500 रुपए प्रति माह की राशि के साथ खुद का भरण-पोषण करने की स्थिति में होगी। सीआरपीसी की धारा 125 के पीछे अंतर्निहित और मौलिक सिद्धांत वित्तीय स्थिति के साथ-साथ मानसिक पीड़ा को दूर करना है। जब महिलाओं को अपना ससुराल छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है तो उन्हें परेशानी होती है।"

    रजनेश बनाम नेहा और एक अन्य, (2021) 2 एससीसी 324 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर कोर्ट ने माना कि अंतरिम भरण-पोषण सही तरीके से प्रतिवादी संख्या 2 को दिया गया था और इसलिए, न्यायालय ने कहा कि अंतरिम भरण-पोषण आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

    अंत में, अदालत ने याचिकाकर्ता को अंतरिम भरण-पोषण की पूरी राशि का भुगतान तीन समान किश्तों में करने के लिए तीन महीने का समय दिया। पहली, दूसरी और तीसरी किस्त का भुगतान 12.02.2022, 12.03.2022 और 12.04.2022 को या उससे पहले किया जाएगा।

    कोर्ट ने कहा,

    "इसके अलावा, जनवरी, 2022 से लेकर अब तक के अंतरिम भरण-पोषण की वर्तमान राशि का भुगतान याचिकाकर्ता द्वारा दिनांक 27.03.2019 के आदेश के अनुसार किया जाएगा।"

    केस का शीर्षक - संजीव राय बनाम यू.पी. राज्य एंड अन्य

    केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एबी) 14


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