दैनिक जीवन के खर्च में बढ़ोतरी और समय बीतने के आधार पर विशेष विवाह अधिनियम के तहत भरण-पोषण बढ़ाया जा सकता है : कर्नाटक हाईकोर्ट

Manisha Khatri

9 Dec 2022 4:30 PM IST

  • दैनिक जीवन के खर्च में बढ़ोतरी और समय बीतने के आधार पर विशेष विवाह अधिनियम के तहत भरण-पोषण बढ़ाया जा सकता है : कर्नाटक हाईकोर्ट

    Karnataka High Court

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत पत्नी को दी जाने वाली भरण-पोषण राशि को बढ़ाने के लिए बदली हुई परिस्थितियों के रूप में 'समय बीतना' और 'दैनिक जीवन के खर्च में बढ़ोतरी' वैध आधार हैं।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने विनीता थॉमस द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और वर्ष 2016 में उसे भरण-पोषण के तौर पर दी गई 10,000 रुपये की राशि को बढ़ाकर 20,000 रुपये कर दिया है।

    पीठ ने कहा,''बदली हुई परिस्थिति यह नहीं होनी चाहिए कि पत्नी अपने रहन-सहन की हर परिस्थिति, रहन-सहन के तौर-तरीके या बढ़े हुए भरण-पोषण के लिए स्पष्ट विवरण बताए। न्यायालय के पास बदली हुई परिस्थितियों में भरण-पोषण बढ़ाने की अनुमति है। इस मामले में बदली हुई परिस्थितियों में अन्य बातों के साथ-साथ समय बीतना और दैनिक जीवन के खर्च में बढ़ोतरी भी शामिल होगी।''

    अदालत ने इस तरह फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें भरण-पोषण बढ़ाने के लिए विशेष विवाह अधिनियम की धारा 37 के तहत दायर उसके आवेदन को खारिज कर दिया था। फैमिली कोर्ट ने कहा था कि सिर्फ इसलिए कि पति अच्छा कमाता है, पत्नी को अधिक भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार नहीं है।

    हाईकोर्ट ने कहा कि प्रति माह 10,000 रुपये का भरण-पोषण करीब छह साल पहले दिया गया था। रीमा सलकन बनाम सुमेर सिंह सलकन के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख करते हुए, हाईकोर्ट ने कहा,''सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि सीआरपीसी की धारा 125 की कल्पना एक महिला की पीड़ा, वेदना, वित्तीय पीड़ा को कम करने के लिए की गई थी और इसलिए, भरण-पोषण को तर्कसंगत आधार पर दिया जाना चाहिए ... समय की इस दूरी पर, बढ़ती मुद्रास्फीति दर और दैनिक जीवन के खर्च में बढ़ोतरी को ध्यान में रखते हुए, इस तरह के भरण-पोषण का आदेश पारित किया जाना चाहिए।''

    इसके बाद हाईकोर्ट ने कहा,''सुप्रीम कोर्ट (सुप्रा) द्वारा दिए गए फैसले के आलोक में, यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता भरण-पोषण में वृद्धि की हकदार नहीं है। पति की कमाई पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन जैसा कि निचली अदालत ने कहा है कि केवल इसलिए कि पति 1.5 लाख रुपये से 2.00 लाख रुपये प्रति माह कमाता है, भरण-पोषण में वृद्धि की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इसलिए संबंधित न्यायालय द्वारा प्रदान किया गया यह कारण उसके सामने गलत है।''

    केस टाइटल- विनीता थॉमस बनाम एसक्यूडी एलडीआर डॉ प्रवीण कुमार बोरुशेट्टी

    केस नंबर-डब्ल्यूपी-16949/ 2021

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (केएआर) 508

    आदेश की तिथि- 06 दिसंबर 2022

    प्रतिनिधित्व- विनीता थॉमस-पार्टी इन पर्सन

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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