यदि परिवार के बुज़ुर्गों के विरोध के कारण वह विवाह करने का वादा नहीं निभा पाया तो उसे बलात्कार का दोषी ठहराना गलत होगा : कलकत्ता हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

8 Dec 2021 11:42 AM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट 

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार को बलात्कार के आरोप से एक व्यक्ति को यह कहते हुए बरी कर दिया कि बलात्कार के अपराध के लिए किसी को दंडित करना उस परिस्थिति में गलत होगा, जब यदि बाद के कुछ घटनाक्रम के कारण शादी करने का वादा पूरा नहीं हो पाया। जैसे परिवार के बुजुर्गों ने विवाह का विरोध किया, जिसके लिए आरोपी ज़िम्मेदार नहीं होगा।

    न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची और न्यायमूर्ति बिवास पटनायक की खंडपीठ ने कहा कि वह व्यक्ति/अपीलकर्ता एक युवा व्यक्ति है और शादी का प्रस्ताव उसके परिवार के बड़ों (बुजुर्गों) के विरोध के कारण सफल नहीं हुआ और इसलिए यह शादी का वादा झूठा वादा करके रेप करने जैसा मामला नहीं दिखता।

    संक्षेप में मामला

    कलकत्ता हाईकोर्ट निचली अदालत [अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, फास्ट ट्रैक फर्स्ट कोर्ट, इस्लामपुर, उत्तर दिनाजपुर] के 2015 के फैसले और आदेश के खिलाफ सद्दाम हुसैन द्वारा दायर एक आपराधिक अपील से निपट रहा था, जिसमें अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 376 के तहत दोषी ठहराया गया था। उसे 10 साल के कारावास की सजा सुनाई।

    अपीलकर्ता के खिलाफ अभियोजन का मामला इस आशय का था कि उसने पीड़ित लड़की के साथ शादी का झूठा वादा करके उसके साथ संबंध बनाए और परिणामस्वरूप लड़की गर्भवती हो गई। हालांकि जब उसने उससे शादी करने के लिए कहा तो उसने इस मुद्दे को टाल दिया और शादी करने से इनकार कर दिया।

    सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने अपना मामला साबित करने के लिए आठ गवाहों से पूछताछ की। अपीलकर्ता का बचाव निर्दोष और झूठे निहितार्थ में से एक था। मुकदमे के निष्कर्ष में अदालत ने अपीलकर्ता को दोषी ठहराया और सजा सुनाई।

    इसके बाद अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख करते हुए तर्क दिया कि पीड़ित की सहवास करने में सहमति थी और अपीलकर्ता के माता-पिता के प्रतिरोध के कारण उनका विवाह नहीं हो सका।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    कोर्ट ने पाया कि रिकॉर्ड के साक्ष्य ने स्पष्ट रूप से स्थापित किया कि अपीलकर्ता ने शादी के वादे पर उसके साथ सहवास किया था, हालांकि, कोर्ट ने कहा कि प्रारंभिक सहवास जबरदस्ती नहीं था क्योंकि इस तरह के आरोप प्राथमिकी में नहीं थे।

    इसके अलावा इस तर्क को ध्यान में रखते हुए कि अपीलकर्ता उससे शादी करने के लिए सहमत हो गया था, लेकिन उसके माता-पिता के प्रतिरोध के कारण विवाह सफल नहीं हो सका, अदालत ने इस प्रकार देखा,

    "यह नहीं कहा जा सकता कि अपीलकर्ता ने उस समय उससे शादी करने का इरादा नहीं किया था जब उन्होंने सहवास किया था ... बिना किसी और चीज के वादा निभाने में विफल रहने से यह अनूठा निष्कर्ष नहीं निकल सकता है कि वादा शुरू से ही बेईमानी से किया गया था।"

    इस पृष्ठभूमि के खिलाफ कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यह नहीं कहा जा सकता है कि अपीलकर्ता का उस समय पीड़िता से शादी करने का इरादा नहीं था जब वे सहवास करते थे लेकिन परिवार में बड़ों से रुकावट के कारण उनके बीच विवाह संभव नहीं हो पाया।

    अभियोजन पक्ष के तर्क के बारे में कि घटना के समय लड़की नाबालिग थी, अदालत ने पाया कि घटना के समय उसकी उम्र 16 साल से अधिक थी और इसलिए अदालत ने कहा, पीड़िता ने सहमति की उम्र पार कर ली थी।

    न्यायालय ने दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया और अपीलकर्ता को उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों से बरी कर दिया।

    केस का शीर्षक - सद्दाम हुसैन बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

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