जमानत आदेश में व्यक्ति के नाम से 'मिडिल नेम' गायब होने के चलते उसे 8-महीने की अवैध कैद में रखा गया, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रिहाई का आदेश दिया

SPARSH UPADHYAY

21 Dec 2020 6:41 AM GMT

  • जमानत आदेश में व्यक्ति के नाम से मिडिल नेम गायब होने के चलते उसे 8-महीने की अवैध कैद में रखा गया, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रिहाई का आदेश दिया

    हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उस जेलर/जेल अधीक्षक के आचरण को निंदनीय करार दिया, जिसने एक जमानत आवेदक, 'विनोद बरुआर' को जेल से रिहा करने से केवल इसलिए इनकार कर दिया, क्योंकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जमानत आदेश में उसके नाम से 'कुमार' गायब था।

    न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर की पीठ ने जेल अधीक्षक/जेलर को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया और यह बताने को भी कहा कि क्यों न उसके खिलाफ उचित विभागीय जांच की सिफारिश की जाए।

    न्यायालय के समक्ष मामला

    न्यायालय के समक्ष यह प्रार्थना की गई कि जमानत अर्जी के शीर्षक में आवेदक का नाम 'विनोद बरुआर' के बजाय 'विनोद कुमार बरुआर' कर दिया जाए।

    आवेदक के लिए पेश वकील द्वारा यह प्रस्तुत किया गया था कि हाईकोर्ट के 09.04.2020 के आदेश के बावजूद, जिसमे उसे जमानत दे दी गई थी, आवेदक को जेल से रिहा नहीं किया गया।

    वास्तव में, जेल अधिकारियों ने मामले में पारित रिहाई के आदेश का पालन करने से केवल इसलिए इनकार कर दिया, क्योंकि रिहाई के आदेश में उल्लिखित नाम "विनोद बरुआर" था, जबकि रिमांड शीट में उसका नाम "विनोद कुमार बरुआर" है।

    इस आधार पर, जेल अधीक्षक/जेलर ने आवेदक को रिहा करने से इनकार करके उच्च न्यायालय के जमानत आदेश को एक प्रकार से रद्द कर दिया।

    इन परिस्थितियों में, आवेदक ने ट्रायल जज के समक्ष अपने नाम में सुधार के लिए एक आवेदन किया, हालाँकि उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश में उसके नाम को सही करने से इनकार कर दिया।

    कोर्ट का अवलोकन

    जेल अधीक्षक / जेलर के आचरण पर फटकार लगाते हुए कोर्ट ने कहा,

    "यह न्यायालय यह समझने में विफल है कि जब आवेदक का नाम जमानत अस्वीकृति आदेश में उल्लिखित है, अर्थात 'विनोद बरुआर' है, तो जमानत में उल्लिखित नाम में 'कुमार' क्यों जोड़ा जाना चाहिए।"

    इसके अलावा, अदालत ने कहा,

    "इन आठ महीनों के दौरान जमानत के आदेशों का पालन नहीं करने का एकमात्र कारण न्यायालय के आदेशों को पूरा करने में जेल प्रशासन का अड़ियल रवैया है। इस प्रक्रिया में, उसने एक नागरिक को उसकी स्वतंत्रता से, बिना किसी उचित या वाजिब कारण के, अप्रैल, 2020 से आज तक वंचित किया है।"

    अंत में, उच्च न्यायालय द्वारा सुधार के आवेदन को इस आदेश के साथ खारिज कर दिया गया कि आवेदक, विनोद बरुआर को, इसी नाम के साथ, विशेष न्यायाधीश (बलात्कार और POCSO अधिनियम मामले), सिद्धार्थनगर द्वारा 24 घंटे की अवधि के भीतर पारित होने वाले एक रिहाई के आदेश के साथ रिहा किया जाएगा।

    जेलर/जेल अधीक्षक को विशेष न्यायाधीश (बलात्कार और POCSO अधिनियम मामले), सिद्धार्थनगर द्वारा जारी रिहाई के आदेश का पालन करने के लिए निर्देशित किया गया और आवेदक को उसके नाम में "कुमार" की अनुपस्थिति पर कोई आपत्ति नहीं जताते हुए आवेदक को रिहा करने का आदेश दिया गया।

    [अपडेट - 08 दिसंबर को राकेश सिंह, अधीक्षक, जिला जेल, सिद्धार्थ नगर द्वारा अनुपालन का एक हलफनामा दायर किया गया और वह व्यक्तिगत रूप से भी पेश हुए। उन्होंने न्यायालय के आदेश के अनुपालन के लिए स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया।

    उन्होंने अपने हलफनामे में कहा कि,

    "आवेदक को जेल से 08.12.2020 को 12:22 बजे रिहा कर दिया गया है।"

    परिणामस्वरुप, अदालत ने आवेदक की रिहाई में देरी को "अनिच्छा से स्वीकार किया"। उन्हें "भविष्य में सावधान रहने के लिए चेतावनी दी गई।"]

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