'जिस कैदी में भी बेचैनी के लक्षण दिखें, उसका तुरंत टेस्ट कराओ': बॉम्बे हाईकोर्ट ने किया जनहित याचिकाओं का निपटारा, राज्य ने जेलों में सुविधाएं बढ़ाने के सुझाव स्वीकार किए

LiveLaw News Network

4 July 2020 5:00 AM GMT

  • जिस कैदी में भी बेचैनी के लक्षण दिखें, उसका तुरंत टेस्ट कराओ: बॉम्बे हाईकोर्ट ने किया जनहित याचिकाओं का निपटारा, राज्य ने जेलों में सुविधाएं बढ़ाने के सुझाव स्वीकार किए

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को उन सभी जनहित याचिकाओं का निपटारा कर दिया है जो COVID 19 की वर्तमान महामारी के दौरान विभिन्न सुधारक घरों में बंद कैदियों के समुचित इलाज के लिए सुविधाओं की कमी के बारे में चिंता जताते हुए दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने इस मामले में निष्कर्ष निकालते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तावित अधिकांश सुझावों को राज्य ने स्वीकार कर लिया है।

    चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एम एस कर्णिक की खंडपीठ के समक्ष महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल एए कुंभकोनी ने बताया कि राज्य ने जेल/ सर्किल या बैरक में रखे कैदियों का रैंडम टेस्ट करने के सुझाव को स्वीकार कर लिया है। इस प्रकार, अदालत ने जेल अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह आकस्मिक या रैंडम टेस्ट के उपायों को लागू करें।

    याचिकाकर्ताओं की तरफ से एडवोकोट ईशा खंडलेवाल के साथ पेश होने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर देसाई ने भी कई महत्वपूर्ण सुझाव सामने रखे गए थे।

    राज्य द्वारा स्वीकार किए गए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव इस प्रकार हैं-

    -एसओपी के अनुसार सुधारक गृहों में तैनात कर्मचारियों का परीक्षण भी उसी तरह किया जाएगा जैसे कैदियों का होगा।

    -जहाँ तक संभव हो सुधारक गृहों/अस्थायी जेलों में तैनात कर्मचारियों को वर्तमान में वहीं तैनात रखा जाए,जहां इस समय उनकी पोस्टिंग हैं और उनको एक स्थान से दूसरे स्थान पर न भेजा जाए।

    -केंद्र सरकार, राज्य सरकार या इसके अधिकारियों द्वारा जारी उन दिशा-निर्देशों का अनुपालन किया जाएगा जो कैदियों की स्वच्छता और सुरक्षा उपायों के संबंध में जारी किए गए हैं।

    -सुधार गृह में अपने कैदी-मुविक्कलों के साथ नियुक्तियां लेने के लिए वकीलों के लिए एक विशेष ईमेल आईडी बनाकर जल्द से जल्द जेल प्राधिकरण की वेबसाइट पर अधिसूचित की जाएगी।

    -कैदियों को निवारक उपायों और स्वच्छता के महत्व पर शिक्षित किया जाएगा।

    -अस्थायी जेलों सहित सुधारक गृहों में वायरस के प्रसार को रोकने के लिए जेलर/सक्षम प्राधिकरण द्वारा जागरूकता कार्यक्रम नियमित आधार पर आयोजित किए जाएंगे।

    -महिला कैदियों को मुफ्त में अच्छी गुणवत्ता वाले सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराए जाएंगे और जेल अधिकारी हर समय सेनेटरी पैड के निपटान के लिए उचित स्वच्छता और उचित सुविधा सुनिश्चित करेंगे।

    -नियमित सुधार गृहों की तरह अस्थायी जेलों में रखे गए कैदियों को भी उनके परिवार के सदस्यों से संपर्क करने के लिए टेलीफोन कॉल की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।

    -जेल प्रशासन द्वारा कैदियों के परिवार के सदस्यों/ रिश्तेदारों को उनके अस्थायी जेलों और /या संगरोध केंद्रों और / या Covid देखभाल केंद्रों में स्थानांतरित करने की सूचना की जाएगी।

    इसके अलावा, देसाई ने सुझाव दिया था कि COVID 19 के मामलों के संपर्क में आए कैदियों की पहचान करने के लिए 'हाई रिस्क कैदियों' की परिभाषा राष्ट्रीय केंद्र रोग नियंत्रण (एनसीडीसी) द्वारा जारी मानक संचालन प्रक्रिया के अनुसार होनी चाहिए। चूंकि राज्य सभी उच्च जोखिम वाले कैदियों का परीक्षण करने के लिए सहमत हो गया है, लेकिन यह इंगित करने के लिए कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं रखा गया है कि ये उच्च जोखिम वाले कैदी कौन होंगे या किसे उच्च जोखिम वाला कैदी माना जाएगा।

    हालांकि, एजी कुंभकोनी ने कहा कि 'हाई रिस्क कैदियों' के संबंध में, आईसीएमआर, भारत सरकार और राज्य सरकार और इसके अधिकारियों द्वारा जारी विभिन्न दिशानिर्देशों का विधिवत अनुपालन किया जाएगा।

    कोर्ट ने कहा कि-

    ''हमारे लिए यह संभव नहीं होगा कि श्री देसाई की उस दलील को स्वीकार कर लिया जाए,जिसमें कहा गया है कि COVID 19 मामलों के संपर्क में कैदियों की पहचान करने के लिए 'हाई रिस्क कैदियों' को राष्ट्रीय केंद्र रोग नियंत्रण (एनसीडीसी) द्वारा जारी एसओपी के अनुसार तय किया जाए।

    हम इस क्षेत्र के विशेषज्ञों के लिए अपनी राय नहीं रख सकते हैं और न ही राज्य सरकार को यह निर्देश दे सकते हैं कि वह एनसीडीसी द्वारा जारी एसओपी के अनुसार 'हाई रिस्क कैदियों' की परिभाषा को स्वीकार करे। जब एक बार महाधिवक्ता ने बयान दे दिया है कि राज्य 'हाई रिस्क कैदियों' के मामलों में आईसीएमआर,केंद्र सरकार,राज्य सरकार और अधिकारियों की तरफ से जारी किए दिशानिर्देशों का पालन करेगा, तो फिर हमारे लिए यह संभव नहीं है कि राज्य के उन मामलों में हम अपनी राय रखें,जो विशेषज्ञों की राय के आधार पर लिए गए हैं और नीति के दायरे में आते हैं।''

    एजी कुम्भकोनी ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार और जेल अधिकारियों का एक ही उद्देश्य है कि हर एक कैदी का परीक्षण किया जाए। लेकिन इस अभूतपूर्व स्थिति और राज्य के सामने चिकित्सा सहायता पहुंचाने में आने वाली चुनौतियों के चलते तुरंत ऐसा करना संभव नहीं हो पा रहा है। इस समय सबसे पहले वायरस से प्रभावितों को मदद पहुंचाई जा रही है और उपलब्ध संसाधनों को समाज के सभी संबंधितों पक्षों में समान रूप से वितरित किया जा रहा है।

    जस्टिस कर्णिक ने कहा कि-

    ''हम श्री कुम्भकोनी की इन दलीलों को उचित समझ रहे हैं। किसी भी स्थिति में, हम वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा उठाए गए उपायों से संतुष्ट हैं। इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्य ने याचिकाकर्ताओं के अधिकांश सुझावों को स्वीकार कर लिया है। इसलिए श्री देसाई की इस दलील पर कोई निर्देश जारी नहीं किया जा रहा है। हालांकि, हम यह जरूर कहना चाहते हैं कि जब भी किसी कैदी में किसी भी तरह की शारीरिक परेशानी का संकेत दिखें या ऐसी परेशानी जैसे खांसी, जुकाम आदि की शिकायत हो तो ऐसे कैदी का तुरंत परीक्षण किया जाना चाहिए।''

    अंत में, अदालत ने स्पष्ट किया कि यह न्यायालयों का नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के लिए गठित हाई पाॅवर कमेटी का काम है कि कैदियों के उस वर्ग का निर्धारण करें,जिनको COVID 19 महामारी के मद्देनजर अस्थायी जमानत पर रिहा किया जा सकता है। चूंकि राज्य की भीड़भाड़ वाली जेलों में यह महामारी इस समय घुस चुकी है।

    कोर्ट ने कहा-

    ''याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि एचपीसी द्वारा किया गया वर्गीकरण उनके अधिकारों को प्रभावित करता है। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, वर्तमान महामारी के प्रकोप को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एचपीसी का गठन किया है ताकि एक विशेष अवधि के लिए जेलों में भीड़ को कम किया जा सकें। इसलिए यह एचपीसी का काम है कि वह सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों के आलोक में श्रेणियों का निर्धारण करें। हमारा मानना है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा पेश किया गया मामला किसी संवैधानिक अधिकार या वैधानिक निर्देश को भंग करने की प्रकृति का नहीं है।''

    न्यायालय ने राज्य को निर्देश दिया है कि इस मामले में अंतरिम आदेशों के तहत पारित सभी निर्देशों का पूरी तरह से पालन किया जाए। साथ ही कहा है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए सुझावों को राज्य द्वारा स्वीकार कर लिया गया है और उनका अनुपालन राज्य की ओर से महाधिवक्ता द्वारा सुनिश्चित किया गया है। ऐसे में कोर्ट इस मामले में दायर जनहित याचिकाओं का निपटारा कर रही है। वहीं अधिवक्ता देवमणि शुक्ला और निकिता अभ्यंकर की तरफ से दायर एक जनहित याचिका को खारिज कर रही है।

    केस नंबर- पीआईएल-सीजे-एलडी-वीसी -2/2020 व 3 अन्य

    केस का नाम- पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य (मुख्य जनहित याचिका)

    कोरम- चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एम एस कार्णिक

    वकील-सीनियर एडवोकेट मिहिर देसाई दो याचिकाकर्ताओं के लिए, एडवोकेट सनी पुनमिया और एडवोकेट भावेश पारमर अन्य दो याचिकाकर्ताओं के लिए, एजी एए कुंभकोनी राज्य के लिए।


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