धारा 138 एनआई एक्ट : यदि चेक देने वाले ने हस्ताक्षर को स्वीकार कर लिया है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि चेक पर एंट्री किसी अन्य व्यक्ति ने की है : केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

17 March 2020 4:45 AM GMT

  • धारा 138 एनआई एक्ट : यदि चेक देने वाले ने हस्ताक्षर को स्वीकार कर लिया है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि चेक पर एंट्री किसी अन्य व्यक्ति ने की है : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि ड्रॉअर (चेक काटने वाला) ने चेक पर अपने हस्ताक्षर को स्वीकार कर लिया है, तो यह महत्वहीन तथ्य है कि किसी अन्य व्यक्ति ने चेक में प्रविष्टियां की थी।

    न्यायमूर्ति नारायण पिशराडी की एकल पीठ ने कहा,

    ''भले ही किसी अन्य व्यक्ति ने चेक भरा था, यह किसी भी तरह से चेक की वैधता को प्रभावित नहीं करता है।''

    सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका दायर करते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी।

    ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता की उस मांग को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था जिसमें लिखावट की जाँच के लिए चेक को भेजने की मांग की गई थी।

    प्रतिवादी, मैसर्स एक्सओटो सेरामिक्स प्राइवेट लिमिटेड ने याचिकाकर्ता/आरोपी व सुश्री संध्या रानी के खिलाफ निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध की शिकायत की थी और यह याचिका उसी के संबंध में दायर की गई थी।

    बचाव के साक्ष्य के चरण में, याचिकाकर्ता/ अभियुक्त ने ट्रायल कोर्ट में एक अर्जी दाखिल कर चेक की प्रविष्टियों की लिखावट के बारे में एक राय प्राप्त करने के लिए चेक को फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी भेजने की मांग की थी।

    जब दूसरे प्रतिवादी / शिकायतकर्ता ने आपत्ति की कि याचिकाकर्ता /अभियुक्त का इरादा केवल मामले को लंबा खींचने का है, तो ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता के उस आवेदन को खारिज कर दिया जिसमें विशेषज्ञ की राय के लिए चेक भेजने की मांग की थी।

    इसके बाद याचिकाकर्ता/अभियुक्त ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत वर्तमान याचिका दायर कर दी।

    विवाद चेक में अन्य प्रविष्टियों के संबंध में था और हस्ताक्षर के संबंध में नहीं था क्योंकि इस पर याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर ही थे, इसलिए उसके संबंध में कोई विवाद नहीं था।

    अदालत ने इस मामले में बीर सिंह बनाम मुकेश कुमार के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया।

    इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि-

    ''अगर चेक पर ड्रॉअर या चेककर्ता द्वारा विधिवत रूप से हस्ताक्षर किए गए हैं तो यह महत्वहीन बात है कि हो सकता है कि चेककर्ता के अलावा किसी अन्य व्यक्ति ने भरा हो।''

    इस प्रकार, वर्तमान मामले में अदालत ने कहा, ''जब अभियुक्त चेक के हस्ताक्षर को स्वीकार करता है, तो यह महत्वहीन है कि क्या किसी अन्य व्यक्ति ने चेक में प्रविष्टियां की थी /चेक भरा था।

    भले ही किसी अन्य व्यक्ति ने चेक भरा हो। यह किसी भी तरह से चेक की वैधता को प्रभावित नहीं करता है।''

    इसके अलावा, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता/ अभियुक्त का उद्देश्य केवल मामले में कार्यवाही को लंबा खींचना था ,इसलिए ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश में कोई खामी नहीं है। इस प्रकार इस याचिका को खारिज किया जाता है।


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