"यदि बालिग कपल ने स्वेच्छा से विवाह किया है तो उन्हें किसी के द्वारा केवल इसलिए प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि परिवार वालों को इस तरह की शादी पर आपत्ति है": मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कपल को सुरक्षा प्रदान की

LiveLaw News Network

15 July 2021 9:30 AM GMT

  • यदि बालिग कपल ने स्वेच्छा से विवाह किया है तो उन्हें किसी के द्वारा केवल इसलिए प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि परिवार वालों को इस तरह की शादी पर आपत्ति है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कपल को सुरक्षा प्रदान की

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने माता-पिता से धमकी प्राप्त करने वाले एक जोड़े को यह देखते हुए सुरक्षा प्रदान की है कि बालिग होने के कारण स्वेच्छा से एक-दूसरे से विवाह करने वाले व्यक्तियों को केवल इसलिए प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि परिवार वालों को इस तरह की शादी पर आपत्ति है।

    न्यायमूर्ति विवेक रूस की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि,

    "अगर याचिकाकर्ता बालिग हैं और स्वेच्छा से शादी किया है तो उन्हें किसी के द्वारा प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए, सिर्फ इसलिए कि उन्हें इस तरह की शादी से आपत्ति है।"

    न्यायालय एक ऐसे जोड़े द्वारा दायर की गई सुरक्षा याचिका पर विचार कर रहा था, जिन्होंने बालिग व्यक्तियों के रूप में एक-दूसरे से विवाह किया। इस शादी का इनके परिवार वाले विरोध कर रहे हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि खाप पंचायतों और ऑनर किलिंग सहित मुद्दों को बहुत गंभीरता से लिया है।

    कोर्ट ने इस प्रकार आदेश दिया कि,

    "भविष्य में अगर याचिकाकर्ताओं को किसी भी उत्पीड़न से बचने के आदेश से उनके जीवन के लिए कोई खतरा या भय उत्पन्न है तो याचिकाकर्ता निश्चित रूप से पुलिस सुरक्षा के हकदार हैं।"

    कोर्ट ने कहा कि अगर कपल को अपने माता-पिता या किसी से अपने जीवन के संबंध में कोई खतरा या भय है तो वे संबंधित पुलिस अधीक्षक से आयु प्रमाण और शादी से संबंधित अपने दस्तावेजों के साथ संपर्क कर सकते हैं और अपना बयान दर्ज करा सकते हैं।

    कोर्ट ने उन्हें धमकी देने वाले का नाम बताने का भी निर्देश दिया।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "अगर याचिकाकर्ता किसी कारण से पुलिस अधीक्षक से संपर्क नहीं कर सकते हैं और आपात स्थिति में उन्हें अपने बयान दर्ज करने के लिए निकटतम पुलिस स्टेशन जाने की अनुमति है।"

    कोर्ट ने इसके अलावा कहा कि,

    "अगर पुलिस अधीक्षक / एसएचओ को पता चलता है कि याचिकाकर्ताओं के जीवन को खतरा है तो वह शक्ति वाहिनी (सुप्रीम कोर्ट) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश के अनुसार तुरंत कार्रवाई करेंगे।"

    उपरोक्त के आलोक में याचिका का निस्तारण किया गया।

    केस का शीर्षक: शाइस्ता और अन्य बमान म.प्र. राज्य और अन्य

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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