'अगर किसी की मृत्यु होती है तो क्या दाह संस्कार करना राज्य की जिम्मेदारी है?': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा के पास दफन शवों के निपटान की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार किया

LiveLaw News Network

18 Jun 2021 11:36 AM GMT

  • अगर किसी की मृत्यु होती है तो क्या दाह संस्कार करना राज्य की जिम्मेदारी है?: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा के पास दफन शवों के निपटान की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को प्रयागराज में गंगा नदी के विभिन्न घाटों के पास दफन शवों के निपटान की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार किया और याचिकाकर्ता से सवाल किया कि अगर किसी की मृत्यु होती है तो क्या दाह संस्कार करना राज्य की जिम्मेदारी है।

    मुख्य न्यायाधीश संजय यादव और न्यायमूर्ति प्रकाश पाड़िया की खंडपीठ ने एडवोकेट प्रणवेश से पूछा कि इसमें उनका व्यक्तिगत योगदान क्या रहा है और क्या उन्होंने खुद खोदकर शवों का अंतिम संस्कार किया है।

    एडवोकेट ने प्रार्थना की कि उत्तर प्रदेश सरकार को धार्मिक संस्कारों के अनुसार अंतिम संस्कार करने और इलाहाबाद के विभिन्न घाटों पर गंगा नदी के पास दफन शवों को जल्द से जल्द निपटाने और गंगा नदी के पास शवों को दफनाने से रोकने के लिए निर्देशित किया जाए।

    मुख्य न्यायाधीश संजय यादव ने आगे एडवोकेट से यह दिखाने के लिए कहा कि इस मामले में उन्होंने व्यक्तिगत रूप से क्या किया है।

    कोर्ट ने पूछा,

    "आप अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के समक्ष कैसे आ सकते हैं?"

    मुख्य न्यायाधीश संजय यादव ने एडवोकेट से कहा कि,

    "यदि आप एक लोकहितैषी व्यक्ति हैं, तो हमें बताएं कि आप कितने शवों की पहचान किए हैं और क्या उन शवों का सम्मानजनक दाह संस्कार किए हैं?"

    एडवोकेट प्रणवेश ने केंद्र और राज्यों को मृतकों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी की गई एडवाइजरी को रिकॉर्ड पर रखा।

    एडवोकेट प्रणवेश ने इसके अलावा तर्क दिया कि धार्मिक संस्कारों के अनुसार दाह संस्कार करना और गंगा नदी के किनारे दफन किए गए शवों का निपटान करना राज्य की जिम्मेदारी है।

    मुख्य न्यायाधीश ने इस पर कहा कि,

    "राज्य ऐसा क्यों करे? अगर किसी की मृत्यु होती है तो क्या दाह संस्कार करना राज्य की जिम्मेदारी है?"

    मुख्य न्यायाधीश ने इसके अलावा मौखिक रूप से टिप्पणी की कि हम इस याचिका को अनुमति नहीं देंगे। इसके लिए आपको कुछ व्यक्तिगत योगदान दिखाना होगा, अन्यथा हम भारी जुर्माना लगा सकते हैं।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "यह जनहित याचिका नहीं, बल्कि प्रचार हित याचिका है।"

    कोर्ट ने इसके अलावा एडवोकेट से कहा कि,

    "बिना किसी शोध के आप पूरी तरह से राहत पाने की तलाश कर रहे हैं। जो हम समझते हैं उसके मुताबिक विभिन्न समुदायों द्वारा गंगा के तट पर विभिन्न प्रथाएं अपनाया जाता है जो एक अलग प्रारूप में अंतिम संस्कार करते हैं और इसके लिए आपको बहुत अधिक शोध की आवश्यकता है।"

    कोर्ट ने अंत में याचिका खारिज करते हुए कहा कि,

    "याचिकाकर्ता ने गंगा के किनारे रहने वाले विभिन्न समुदायों के बीच प्रचलित संस्कारों और रीति-रिवाजों के बारे में कोई शोध नहीं किया है। याचिकाकर्ता कुछ शोध करके फिर से याचिका दायर कर सकता है।"

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