नाबालिग हिन्दू लड़की का स्वाभाविक अभिभावक उसका पति है, जिससे उसने अपनी इच्छा से शादी की है : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पुरुष के खिलाफ अपहरण का आरोप निरस्त किया

LiveLaw News Network

8 Jun 2021 4:37 AM GMT

  • नाबालिग हिन्दू लड़की का स्वाभाविक अभिभावक उसका पति है, जिससे उसने अपनी इच्छा से शादी की है : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पुरुष के खिलाफ अपहरण का आरोप निरस्त किया

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अपनी इच्छा से एक पुरुष से शादी करने वाली नाबालिग लड़की से संबंधित मामले में व्यवस्था दी :

    "हिन्दू माइनॉरिटी एंड गार्डियनशिप एक्ट, 1956 की धाराएं 6, 10 एवं 13 के साथ पढ़े जाने योग्य गार्डियन एंड वार्ड्स एक्ट की धारा 19 एवं 21 के अनुसार, पति का उस लड़की से रिश्ता है और व्यक्ति (पति) उस नाबालिग लड़की का स्वाभाविक अभिभावक का अधिकार रखता है, क्योंकि वह सांविधिक तौर पर लड़की का पति है।"

    न्यायमूर्ति हरनरेश सिंह गिल की बेंच ने आगे कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि उसे भगा ले जाने या लुभाने का कोई तत्व मौजूद है।

    कोर्ट के समक्ष मामला

    कोर्ट भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 346 और बाद में जोड़ी गयी धाराएं 363 और 366 के तहत दर्ज प्राथमिकी को निरस्त करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत दायर याचिका की सुनवाई कर रहा था।

    पति की दलील दी थी कि उसने प्रतिवादी संख्या 3 - गुलिस्ता (पत्नी) के साथ मार्च 2020 में शादी रचाई थी, जिससे संबंधित विवाह प्रमाण पत्र संलग्न भी किया गया है तथा यह भी दलील दी गयी थी कि वह लड़की खुद ही याचिकाकर्ता के साथ घर से भागी थी तथा बाद में अपनी इच्छा से शादी रचाई थी।

    लड़की ने कोर्ट तथा अधिकारियों के समक्ष दर्ज कराये गये अपने बयान में भी कबूल किया था कि उसने अपनी मर्जी से उस व्यक्ति से शादी की थी तथा उसके बाद से वह अपने पति के साथ रह रही है।

    कोर्ट का आदेश

    कोर्ट ने कहा कि लड़की (गुलिस्ता) कथित तौर पर शादी के समय नाबालिग थी, लेकिन यहां तथ्य यह है कि उसने याचिकाकर्ता के साथ अपनी मर्जी से शादी की थी।

    कोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से यह कहा कि :

    "यद्यपि शादी के समय लड़की नाबालिग थी और गार्डियन एवं वार्ड्स एक्ट, 1890 के तहत माता-पिता कानूनी अभिभावक होते हैं, और चूंकि यह शादी हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत अवैध ठहराये जाने योग्य है, लेकिन चूंकि दम्पती ने अपने माता-पिता की मर्जी के विरुद्ध जाकर अपने पार्टनर का चयन किया है तथा दोनों साथ रहकर अपना रिश्ता निभा रहे हैं, यह कोर्ट गार्डियन्स एंड वार्ड्स एक्ट, 1890 की धारा 25 के तहत इन तथ्यों का संज्ञान ले सकता है, क्योंकि बच्ची का कल्याण सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि जीवन के संरक्षण एवं स्वतंत्रता का संवैधानिक अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त है।

    कोर्ट ने अंत में यह कहा कि चूंकि लड़की ने याचिकाकर्ता (पुरुष / पति) से अपनी मर्जी से शादी की थी और वह अपने ससुराल में खुशहाली से रह रही है, ऐसे में याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक मामला जारी रखने से किसी उद्देश्य का हल नहीं होगा।

    तदनुसार, कोर्ट ने याचिका मंजूर करते हुए (आईपीसी) की धारा 346 और बाद में जोड़ी गयी धाराएं 363 और 366 के तहत दर्ज मुकदमा और उसके परिणामस्वरूप सभी प्रकार की कार्रवाइयों को निरस्त कर दिया।

    केस का शीर्षक : विकास तोमर बनाम हरियाणा सरकार एवं अन्य

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