''कानून बनाने वालों की अंतरात्मा को झकझोरने के लिए और कितनी निर्भयाओं को बलिदान देना पड़ेगा?'': मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने रेप केस में 15 साल के लड़के को जमानत देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

26 Jun 2021 7:30 AM GMT

  • कानून बनाने वालों की अंतरात्मा को झकझोरने के लिए और कितनी निर्भयाओं को बलिदान देना पड़ेगा?: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने रेप केस में 15 साल के लड़के को जमानत देने से इनकार किया

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने उस 15 वर्षीय किशोर को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिस पर लगभग 10-11 वर्ष की आयु की नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया गया है और इस घटना के बाद नाबालिग को काफी लंबे समय तक रक्तस्राव हुआ था।

    न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर की खंडपीठ ने कहा कि बलात्कार का अपराध, दैहिक प्रकृति का होने के कारण, तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि किसी व्यक्ति को इसका विशिष्ट ज्ञान न हो। इसी के साथ पीठ ने परिवीक्षाधीन अधिकारी के उस अवलोकन से सहमत होने से इनकार कर दिया कि बलात्कार का अपराध अज्ञानता के कारण भी किया जा सकता है।

    कोर्ट ने पाया कि चूंकि किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 15 के तहत जघन्य अपराधों के मामले में बच्चे की उम्र अभी भी 16 साल से कम रखी गई है, इसलिए इस कानून के कारण जघन्य अपराध करने पर भी अपराधी को उसकी उम्र के कारण कानूनन छूट मिलती है।

    मौजूदा मामले का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि जघन्य अपराध करने के बावजूद याचिकाकर्ता पर केवल किशोर की तरह मुकदमा चलाया जाएगा, क्योंकि उसकी उम्र 16 साल से कम है, जैसा कि अधिनियम 2015 की धारा 15 के तहत प्रावधान किया गया है।

    गौरतलब है कि कोर्ट ने आगे कहा किः

    ''जाहिर है, ऐसे मामलों से निपटने के लिए वर्तमान कानून पूरी तरह से अपर्याप्त और अनुपयुक्त है और यह अदालत वास्तव में आश्चर्यचकित है कि इस देश के सांसदों/कानून बनाने वालों की चेतना को झकझोरने के लिए और कितने निर्भयाओं के बलिदान की आवश्यकता होगी।''

    कोर्ट के समक्ष मामला

    अदालत किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 102 के तहत एक 15 वर्षीय लड़के द्वारा दायर एक आपराधिक रिविजन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सत्र न्यायाधीश, झाबुआ, जिला झाबुआ (एमपी) के आदेश को चुनौती दी गई थी। अपीलीय न्यायालय ने किशोर की अपील को खारिज कर दिया था और प्रिंसीपल मजिस्ट्रेट, किशोर न्याय बोर्ड द्वारा अधिनियम 2015 की धारा 12 के तहत पारित उस आदेश की पुष्टि की थी,जिसमें किशोर को जमानत देने से इंकार कर दिया गया था।

    किशोर पर भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 342, 376 (2) (एन), 506 और 376 (ए) (बी) और साथ ही यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 5 (एम) रिड विद धारा 6 के तहत अपराध करने का आरोप लगाया गया था।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    अदालत ने संबंधित चिकित्सा दस्तावेजों को ध्यान में रखा और याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने के लिए अपने अधिकार का प्रयोग करने के लिए इसे उपयुक्त मामला नहीं पाया।

    अदालत ने कहा कि भले ही अभी याचिकाकर्ता की आयु 15 वर्ष है,परंतु उसने लगभग 10 वर्ष और 4 महीने की एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार करने का जघन्य अपराध किया है। जिस कारण उस नाबालिग को इतना अधिक रक्तस्राव हुआ कि उसे रक्त आधान (ब्लड ट्रैन्स्फ्यूश़न) की भी आवश्यकता हुई थी और पीड़िता के बयान के अनुसार याचिकाकर्ता ने करीब 3 दिन पहले भी यही हरकत की थी।

    अदालत ने कहा कि,''याचिकाकर्ता के आचरण से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि उसने उपरोक्त अपराध पूरी चेतना के साथ किया है और यह नहीं कहा जा सकता है कि यह अपराध अज्ञानता में किया गया था।''

    अंत में, कोर्ट ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता को फिर से उसके माता-पिता की देखभाल के लिए छोड़ दिया जाएगा, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि उसके आस-पास की कम उम्र की लड़कियां भय-रहित और सुरक्षित होंगी, खासकर इस तथ्य पर विचार करते हुए कि उसे किशोर न्याय अधिनियम के तहत संरक्षण प्राप्त है और उसके माता-पिता ने पूर्व में उसको नियंत्रित करने में लापरहवाही बरती है।

    कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि आदेश की प्रति विधि सचिव, कानूनी मामलों का विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली (भारत) को भेजी जाए।

    केस का शीर्षक - सुनील पुत्र बुदिया परमार (किशोर) अपने अभिभावक (पिता) बुदिया पुत्र किदिया परमार के जरिए बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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