'सिर्फ व्हाट्सएप ग्रुप चैट से अवैध काम करने की सहमति का अनुमान कैसे लगाया जा सकता है?': कोर्ट ने दिल्ली दंगों में 12 आरोपियों को साजिश रचने के आरोप से मुक्त किया

LiveLaw News Network

17 March 2022 1:21 PM GMT

  • सिर्फ व्हाट्सएप ग्रुप चैट से अवैध काम करने की सहमति का अनुमान कैसे लगाया जा सकता है?: कोर्ट ने दिल्ली दंगों में 12 आरोपियों को साजिश रचने के आरोप से मुक्त किया

    दिल्ली की एक अदालत ने यह देखते हुए कि अवैध कार्य के लिए आरोपियों के बीच आपसी सहमति का अनुमान केवल व्हाट्सएप ग्रुप चैट में पोस्ट किए गए संदेशों से कैसे लगाया जा सकता है, 12 लोगों को आपराधिक साजिश के आरोप से मुक्त किया।

    आरोपियों ने 2020 के उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान मुस्लिम समुदाय के विभिन्न लोगों की कथित तौर पर हत्या कर दी थी। अदालत ने उनके खिलाफ दर्ज अलग-अलग एफआईआर में अन्य आरोप तय किए, लेकिन उन पर आपराधिक साजिश के आरोप लगाने से इनकार कर दिया।

    अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र भट ने कहा कि आरोपी व्यक्तियों द्वारा साजिश रचने के संबंध में एकमात्र सबूत "कट्टर हिंदू एकता" नाम के व्हाट्सएप ग्रुप पर चैट है। इससे यह संकेत नहीं मिलता कि ग्रुप किसी विशेष अवैध गतिविधि के लिए बनाया गया, जो मुस्लिम समुदाय के लोगों को मारना और उनकी संपत्तियों को तोड़ना या जलाने से संबंधित थी।

    न्यायाधीश ने कहा,

    "इन चैट के सावधानीपूर्वक विश्लेषण से पता चलता है कि मेंबर्स अन्य समुदाय के किसी भी हमले के लिए खुद को तैयार रख रहे थे।"

    कोर्ट ने कहा,

    "इन व्हाट्सएप चैट में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इस कोर्ट को किसी भी निर्णायक या अप्रतिरोध्य निष्कर्ष तक ले जाए कि ग्रुप के मेंबर्स किसी विशेष गैरकानूनी गतिविधि के लिए सहमत थे। यह व्हाट्सएप चैट से पता चलता है कि मेंबर अपने खिलाफ होने वाले हमले के खिलाफ अपनी रक्षा के लिए खुद को तैयार कर रहे थे और वे एक दूसरे से मदद मांग रहे थे।"

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "ग्रुप में पोस्ट किए गए मैसेज कहीं भी यह संकेत नहीं देते कि मेंबर्स ने दूसरे समुदाय के सदस्यों के खिलाफ आक्रामक अभियान शुरू करने और उनकी संपत्तियों की तोड़फोड़/आगजनी करने और उन्हें मारने के लिए आवश्यक मानसिक स्थिति का गठन किया। यह कहना पूरी तरह से गलत होगा कि ये व्हाट्सएप चैट ग्रुप के मेंबर्स के बीच किसी भी गैरकानूनी गतिविधि या साजिश की सिद्धि का संकेत हैं।"

    गोकुलपुरी थाने में दर्ज छह अलग-अलग एफआईआर में समान आदेश पारित करते हुए अदालत ने आरोपी व्यक्तियों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120बी के तहत आपराधिक साजिश के अपराध से मुक्त कर दिया।

    छह एफआईआर में आरोपी लोकेश सोलंकी, पंकज शर्मा, सुमित चौधरी, अंकित चौधरी, प्रिंस, ऋषभ चौधरी, जतिन शर्मा, विवेक पांचाल, हिमांशु ठाकुर, साहिल, संदीप और टिंकू अरोड़ा है।

    अमीन की हत्या के संबंध में एफआईआर नंबर 103/2020 दर्ज की गई। आस मोहम्मद की हत्या से संबंधित एफआईआर नंबर 149/2020 है। मुरसलीन की हत्या से संबंधित एफआईआर नंबर 156/2020 है। मुशर्रफ की हत्या से संबंधित एफआईआर नंबर 38/2020। एफआईआर नंबर 35/2020 हाशिम अली की हत्या से संबंधित और एफआईआर नंबर 37/2020 आमिर खान की हत्या से संबंधित है।

    उपरोक्त सभी आरोपी व्यक्तियों पर आईपीसी की धारा 144, 147, 148, 302 और धारा 149 के तहत आरोप लगाए गए हैं।

    अभियोजन पक्ष का यह मामला है कि आरोपी एक गैरकानूनी सभा (विधि विरुद्ध जमाव) के सदस्य हैं, जिसका उद्देश्य दंगों के दौरान हिंदुओं की मौत का बदला लेना और मुसलमानों को सबक सिखाना था।

    आरोप लगाया गया कि उक्त उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने एक साजिश रची, जिसे आगे बढ़ाते हुए उन्होंने मुस्लिम समुदाय के निर्दोष व्यक्तियों की हत्या की।

    जांच के दौरान आरोपी लोकेश सोलंकी ने स्वीकार किया कि वह उक्त व्हाट्सएप ग्रुप "कट्टार हिंदू एकता" का सदस्य है और ग्रुप में मैसेज करता था।

    आरोप है कि उसके फोन की जांच से पता चला कि उसने उक्त ग्रुप के सभी मैसेज हटा दिया और 02.03.2020 को ग्रुप छोड़ भी दिया। उसने अन्य सह-आरोपियों के नामों का भी खुलासा किया जिन्हें बाद में गिरफ्तार किया गया।

    इस प्रकार अभियोजन पक्ष द्वारा यह तर्क दिया गया कि उक्त मैसेज से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि उन्होंने हिंदू समुदाय के सदस्यों पर की गई हिंसा का मुस्लिम समुदाय के सदस्यों से बदला लेने की साजिश रची थी।

    दूसरी ओर, आरोपी व्यक्तियों की ओर से यह तर्क दिया गया कि भले ही व्हाट्सएप चैट को सही मान लिया गया हो, आपराधिक साजिश के आरोप के लिए कोई मामला नहीं बनता क्योंकि व्हाट्सएप चैट में किसी भी समझौते का संकेत नहीं है।

    यह भी बताया गया कि अभियोजन का मामला यह है कि केवल एक आरोपी लोकेश सोलंकी ग्रुप का मेंबर है और ग्रुप में मैसेज भेज रहा था। शेष अभियुक्तों में से कोई भी ग्रुप का सदस्य नहीं था, इसलिए अभियोजन यह दावा नहीं कर सकता कि आरोपी लोकेश सोलंकी और बाकी आरोपियों के बीच व्हाट्सएप ग्रुप पर किसी भी तरह की गैरकानूनी गतिविधि करने की साजिश रची गई।

    न्यायालय का विचार था कि इस अपराध के आवश्यक तत्व यह हैं कि उन व्यक्तियों के बीच एक सहमति होनी चाहिए जिन पर साजिश करने का आरोप लगाया गया। उक्त सहमति कोई अवैध कार्य करने के लिए या अवैध तरीके से एक कार्य करने के लिए होना चाहिए।

    अदालत ने कहा,

    "किसी साजिश के दायरे को निर्धारित करने में एक आपसी सहमति की आवश्यकता के संबंध में एक बड़ी समस्या उत्पन्न होती है कि कौन से पक्ष हैं और उनके उद्देश्य क्या हैं। यह निर्धारण महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्रत्येक आरोपी की संभावित जिम्मेदारी परिभाषित करता है।"

    इसमें कहा गया,

    "कुछ अंश हैं जिन पर अभियोजन निर्भर, लेकिन इन्हें आरोपी को आपराधिक साजिश के अपराध से जोड़ने के लिए पर्याप्त नहीं माना जा सकता। यह दिखाना होगा कि सभी साधनों को अपनाया गया और रची गई साजिश के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए अवैध कार्य किए गए थे।"

    कोर्ट का विचार था कि यह समझ से बाहर है कि कैसे सभी आरोपियों के बीच कोई अवैध कार्य करने के लिए सहमति का अनुमान केवल उक्त व्हाट्सएप ग्रुप में पोस्ट किए गए मैसेज से लगाया जा सकता है।

    न्यायाधीश ने कहा कि रिकॉर्ड पर कोई अन्य सामग्री नहीं है, जो यह संकेत दे कि आरोपी व्यक्तियों ने साजिश रची और साजिश के उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक-दूसरे से सहमत है।

    कोर्ट ने कहा,

    "विशेष लोक अभियोजक रिकॉर्ड पर किसी भी सबूत को इंगित करने में विफल रहे हैं कि आरोपी लोकेश सोलंकी के अलावा अन्य आरोपी सदस्यों द्वारा पोस्ट किए गए मैसेज के बारे में व्हाट्सएप ग्रुप "कट्टर हिंदू एकता" के गठन के बारे में जानते थे। रिकॉर्ड में ऐसी किसी भी सामग्री के अभाव में इन अभियुक्तों को उक्त व्हाट्सएप ग्रुप से बिल्कुल भी नहीं जोड़ा जा सकता है। इसलिए, साजिश का आरोप विफल होना चाहिए।"

    तद्नुसार, आपराधिक साजिश से मुक्त होने के दौरान आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ प्रासंगिक आरोप तय किए गए।

    केस शीर्षक: राज्य बनाम लोकेश कुमार सोलंकी @ राजपूत और अन्य।

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