श्रीलंका में नस्लीय संघर्ष के प्रमुख शिकार हिंदू तमिल थे; सीएए 2019 के सिद्धांत उन पर लागू: मद्रास हाईकोर्ट

Avanish Pathak

17 Oct 2022 10:21 AM GMT

  • God Does Not Recognize Any Community, Temple Shall Not Be A Place For Perpetuating Communal Separation Leading To Discrimination

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट (मदुरै बेंच) ने एक महत्वपूर्ण अवलोकन में कहा कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 के सिद्धांतों को बहुत अच्छी तरह से हिंदू तमिलों पर लागू किया जा सकता है, जो श्रीलंका में नस्लीय संघर्ष के प्रमुख शिकार थे।

    जस्टिस जीआर स्वामीनाथन की पीठ ने ऐसी टिप्पणी इसलिए कि उन्होंने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि श्रीलंका सीएए 2019 के दायरे में नहीं आता है। उल्लेखनीय है कि सीएए केवल पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की अनुमति देता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "संसद ने हाल ही में नागरिकता अधिनियम में संशोधन किया है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी मुल्कों से सताए गए अल्पसंख्यकों के पास अब भारतीय नागरिकता प्राप्त करने का अवसर है। हालांकि श्रीलंका उक्त संशोधन के अंतर्गत नहीं आता है, हालांकि वही सिद्धांत समान रूप यहां भी लागू है। कोई इस तथ्य का न्यायिक नोटिस ले सकता है कि श्रीलंका के हिंदू तमिल नस्लीय संघर्ष के प्रमुख शिकार थे।"

    पीठ एस अबिरामी नाम की एक 29 वर्षीय महिला के मामले की सुनवाई कर रही थी। उसके माता-पिता (श्रीलंकाई नागरिक) वहां फैले जातीय संघर्ष के कारण श्रीलंका से (उसके जन्म से पहले) भारत आए थे। याचिकाकर्ता / अबिरामी का जन्म दिसंबर 1993 में त्रिची के एक नर्सिंग होम में हुआ था और तब से वह भारत में रह रही है, उसकी स्कूली शिक्षा तमिलनाडु में हुई है और उसे आधार कार्ड जारी किया गया है।

    हालांकि, जब वह भारतीय नागरिकता प्राप्त नहीं कर सकी और उसके सभी प्रयास व्यर्थ हो गए, तब उसने जिला कलेक्टर तिरुचिरापल्ली को भारतीय नागरिकता की मांग करने वाले अपने आवेदन को सचिव, तमिलनाडु सरकार को अग्रेषित करने का निर्देश देने के लिए तत्काल याचिका दायर की, ताकि भारत सरकार अंतिम रूप से मामले पर विचार कर सके।

    उसकी दलीलों और मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने शुरुआत में कहा कि हालांकि याचिकाकर्ता प्रवासी माता-पिता की संतान है, वह भारत में पैदा हुई थी। कोर्ट ने कहा कि वह कभी भी श्रीलंकाई नागरिक नहीं रही है और इसलिए उसे छोड़ने का सवाल ही नहीं उठता। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि अगर उसके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया जाता है, तो वह स्टेटलेस हो जाएगी।

    इसलिए, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने प्रतिवादी 3 (जिला कलेक्टर तिरुचिरापल्ली) को उसका आवेदन दूसरे प्रतिवादी (तमिलनाडु राज्य) को अग्रेषित करने का निर्देश दिया और आगे राज्य सरकार को इसे पहले प्रतिवादी (यूनियन ऑफ इंडिया) को अग्रेषित करने का आदेश दिया।

    नतीजतन, रिट याचिका को स्वीकार करते हुए, कोर्ट ने यूओआई को सोलह सप्ताह में मामले पर फैसला लेने के लिए कहा।

    केस टाइटल- अबिरामी एस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य

    केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (Mad) 432

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