'बेहद दमनकारी, प्रतिशोधी': राजस्थान हाईकोर्ट ने ICAI के CA छात्र द्वारा COVID-19 के समय परीक्षा पर सवाल उठाने पर उसके परीक्षा परिणाम को रद्द करने के फैसले को रद्द किया

LiveLaw News Network

19 May 2021 12:10 PM IST

  • बेहद दमनकारी, प्रतिशोधी: राजस्थान हाईकोर्ट ने ICAI के CA छात्र द्वारा COVID-19 के समय परीक्षा पर सवाल उठाने पर उसके परीक्षा परिणाम को रद्द करने के फैसले को रद्द किया

    राजस्थान हाईकोर्ट ने भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट्स संस्थान (आईसीएआई) के एक प्रतिशोधी और बेहद दमनकारी फैसले को रद्द किया, जिसमें एक 21 वर्षीय महिला पर ई-मेल के माध्यम से कथित अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाते हुए संस्थान ने उसके सीए इंटरमीडिएट परीक्षा परिणाम को रद्द कर दिया था।

    याचिकाकर्ता ऋष लोढ़ा ने नवंबर 2020 में आईसीएआई अध्यक्ष को एक ईमेल लिखा था जिसमें COVID-19 के प्रसार की स्थिति पर प्रकाश डाला गया था और कहा थ कि यदि परीक्षाएं 21 नवंबर से 14 दिसंबर, 2020 के बीच आयोजित की जाती हैं तो इससे COVID-19 मामलों में तेजी से वृद्धि होगी। याचिकाकर्ता ने लिखा था कि क्या आप स्थिति की गंभीरता को नहीं समझते हैं या आप सिर्फ अनजान बन रहे हैं?

    न्यायमूर्ति दिनेश मेहता की एकल पीठ ने कहा कि ई-मेल में शायद ही ऐसा कुछ है जिसके लिए इसे अपमानजनक माना जा सकता है।

    बेंच ने कहा कि,

    "भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट्स संस्थान (आईसीएआई) एक सांविधिक निकाय है। इसलिए इसके निर्णय, कार्य और अधिनिर्णय को राज्य या राज्य के साधन से अपेक्षित मानकों के अनुरूप माना जाता है। एक राज्य जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन करता है और किसी कार्य या आलोचना के प्रयास को मानते हुए सजा देता है और यदि वह सुधार के किसी भी सुझाव को अपने अधिकार या सर्वोच्चता के लिए एक चुनौती के रूप में मानता है, तो वह राज्य न केवल कानून की अवहेलना करता है बल्कि हमारे संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) द्वारा गारंटीकृत नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।"

    हालांकि बेंच इस बात से सहमत थी कि वह अपने भावनात्मक बयानों में कुछ वाक्यों का उपयोग करने से बच सकती थी। बेंच ने कहा कि लेकिन कोर्ट संस्थान के स्टैंड का समर्थन नहीं कर सकता है कि उसके मेल के कन्टेंट अपमानजनक थे।

    सिंगल बेंच ने कहा कि,

    "हालांकि याचिकाकर्ता ने कई भावनात्मक टिप्पणियां कीं, लेकिन उसके ई-मेल का जोर केवल यह सुझाव देना था कि ऑनलाइन बुनियादी ढांचे को विकसित किया जाए ताकि सीए परीक्षा के सभी स्तरों का आयोजन किया जा सके।"

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही की शुरुआत में आरोप लगाया गया कि ई-मेल में अपमानजनक टिप्पणी की गई है और यह अनुचित था। इसके विपरीत इस न्यायालय को लगता है कि प्रतिवादियों की कार्रवाई अत्याधिक कठोर थी।

    पीठ ने कहा कि रिशा के ईमेल के जवाब में संस्थान ने उसके परिणाम को रोक दिया और स्पष्टीकरण मांगा कि क्यों न उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जाए।

    ऋषा ने इसके बाद बिना शर्त माफी मांगते हुए एक त्वरित ई-मेल भेजा, जिसमें स्वीकार किया कि उसने अपना आपा खो दिया था और उसे अपने कृत्य पर शर्म महसूस हो रही है। बाद में वह परीक्षा समिति के समक्ष उपस्थित हुई, जिसने जयपुर में कार्रवाई शुरू की और स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के लिए कहा।

    याचिकाकर्ता ने हालांकि सुनवाई के परिणाम के बारे में सूचित नहीं किया गया और यह केवल तभी हुआ जब सीए इंटरमीडिएट परीक्षा परिणाम 26 मार्च, 2021 को घोषित किया गया। याचिकाकर्ता ने पाया कि उसका परिणाम रद्द कर दिया गया है और कैप्शन में लिखा था कि संस्थान को अनुचित तरीके से पत्र लिखा गया।

    याचिकाकर्ता को तब बताया गया कि परीक्षा समिति इस निष्कर्ष पर पहुंच गई है कि वह उक्त परीक्षा में अपमानजनक टिप्पणी करने की दोषी और इस प्रकार, जनवरी, 2021 में आयोजित सीए इंटरमीडिएट परीक्षा का उसका परिणाम रद्द कर दिया गया।

    बेंच ने कहा कि,

    "किसी को निश्चित रूप से आश्चर्य होगा कि याचिकाकर्ता के परीक्षा परिणाम को रद्द कर दिया गया। केवल याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही शुरू करना, बल्कि जिस तरीके से कार्यवाही की गई है, वैसे ही याचिकाकर्ता के परिणाम को रद्द करने में इसकी परिणति अधिकार क्षेत्र के बिना और एक तरफ प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है और मनमानी है।

    कोर्ट ने कहा कि यह काफी परेशान करने वाला है कि याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत रूप से सुना गया और फिर भी उसे कभी कोई आदेश नहीं दिया गया। उसे पता चला कि अनुचित तरीका अपनाने का हवाला देते हुए उसका परिणाम भी रद्द कर दिया गया था।

    कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादियों की इस तरह की जानकारी को अपनी आधिकारिक वेबसाइट में गलत सूचना दिखाने की कार्रवाई वास्तविक तथ्यों के विपरीत स्पष्ट रूप से स्वीकार्य सीमा से परे है। पीठ ने याचिकाकर्ता की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त की।

    कोर्ट ने आगे कहा कि,

    "परीक्षा समिति को यह महसूस करना चाहिए कि प्रतिष्ठा पर लांछन लगाने वाले इस तरह के आकस्मिक बल्कि लापरवाह दृष्टिकोण से छात्र के भावनात्मक या मानसिक संतुलन पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।"

    पीठ ने आगे कहा कि चूंकि न तो परिणाम को रद्द करने का कोई संकेत था और न ही याचिकाकर्ता के साथ संस्थान के संचार में था। परिणाम को रद्द करने का आक्षेपित आदेश स्वाभाविक रूप से अवैध है जो कि भारत का संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत गलत है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि कथित रूप से अपमानजनक ई-मेल संस्थान के अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों को संबोधित किया गया था न कि परीक्षा समिति को। इसलिए जब तक अध्यक्ष ने ऐसा करने का निर्देश नहीं दिया था तब तक परीक्षा समिति को संस्थान के अध्यक्ष को भेजे गए ई-मेल का संज्ञान नहीं लेना चाहिए था।

    कोर्ट ने कहा कि मामले के तथ्य अनुचित तरीका अपनाने के आधार पर परीक्षा रद्द करना अधिनियम 1988 के विनियम 41 और 176 में सूचीबद्ध परीक्षा समिति की शक्तियों के दायरे में नहीं आता है। कोर्ट ने कहा कि नियमों के अनुसार समिति केवल परीक्षा हॉल में कार्रवाई के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है।

    कोर्ट ने कहा कि इसलिए समिति द्वारा की गई कार्यवाही शुरुआत से ही शून्य थी।

    अदालत ने कहा, "याचिकाकर्ता के परिणाम को रद्द करने का निर्णय शक्तियों के तहत नहीं है। यह प्रतिवादी समिति की प्रतिशोध को भी प्रदर्शित करता है।"

    कोर्ट ने अंत में संस्थान को की जिम्मेदारी को याद दिलाते हुए टिप्पणी की कि संस्थान जो कमजोर और संघर्षरत छात्रों के जीवन को ऊपर उठाने या उत्थान करने के लिए अत्यधिक शक्ति से सुशोभित है, को विशेष रूप से छात्रों के खिलाफ अपनी शक्तियों को लागू करने में अधिक संयम बरतना चाहिए। वर्तमान मामले में न केवल संयम बल्कि किसी भी कार्रवाई को शुरू करने से पहले पूर्ण संयम का आह्वान किया गया है। याचिकाकर्ता के खिलाफ विशेष रूप से जब उसने एक आग्रहपूर्ण प्रतिक्रिया प्रस्तुत की थी। लेकिन परीक्षा समिति प्रतिशोध करते हुए याचिकाकर्ता को नोटिस जारी कर दिया।

    न्यायालय ने संस्थान पर अनुकरणीय लागत लगाने से रोक दिया लेकिन उसे याचिकाकर्ता को 20,000 रूपये मुकदमेबाजी लागत का भुगतान करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही कोर्ट परिणाम घोषित किया जैसा कि संस्थान द्वारा एक सीलबंद लिफाफे में जमा किया गया था।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "प्रतिवादी-संस्थान को निर्देश दिया जाता है कि वह याचिकाकर्ता को मूल मार्कशीट और सीए इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण करने का प्रमाण पत्र तुरंत भेजे। प्रतिवादी-संस्थान अपने आधिकारिक पोर्टल पर याचिकाकर्ता के परिणाम को उचित तरीके से पर्दशित करें।"

    केस का शीर्षक: रिशा लोढ़ा बनाम भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट्स संस्थान और अन्य।

    आदेश कॉपी यहां पढ़ें:



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