हाईकोर्ट ने 'यारियां-2' फिल्म निर्माताओं के खिलाफ कथित रूप से भावनाएं आहत करने का आरोप लगाने वाली एफआईआर की कारवाई पर रोक लगाई

Shahadat

18 Nov 2023 5:50 AM GMT

  • हाईकोर्ट ने यारियां-2 फिल्म निर्माताओं के खिलाफ कथित रूप से भावनाएं आहत करने का आरोप लगाने वाली एफआईआर की कारवाई पर रोक लगाई

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सिख समुदाय के खिलाफ कथित तौर पर बेअदबी करने के आरोप में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 295-ए के तहत टी-सीरीज़ के निर्माता और एमडी भूषण कुमार और निर्देशकों राधिका राव, विनय सप्रू और एक्टर मिजान जाफरी के खिलाफ दर्ज एफआईआर से संबंधित कार्यवाही पर रोक लगा दी।

    यह मामला "यारियां 2" नामक फिल्म में "सौरे घर" नामक गीत में एक्टर को कृपाण पहने हुए चित्रित करने से संबंधित है।

    जस्टिस पंकज जैन ने मामले में नोटिस जारी करते हुए कहा,

    "मिस्टर तरूण अग्रवाल, सीनियर डीएजी, पंजाब उपस्थित होते हैं और प्रतिवादी नंबर 1 की ओर से नोटिस स्वीकार करते हैं और निर्देश लेने के लिए समय देने की प्रार्थना करते हैं। इस बीच, आगे की कार्यवाही पर रोक रहेगी।"

    कथित तौर पर सिख समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए जालंधर और अमृतसर में उपरोक्त याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दो याचिकाएं दायर की गई थीं, क्योंकि एक्टर ने 'यारियां 2' फिल्म के "सौरे घर" नामक गाने में कृपाण पहन रखी है।

    एफआईआर में यह आरोप लगाया गया कि यूट्यूब/सोशल मीडिया पर जारी "सौरे घर" नामक फिल्म के एक गाने में एक्टर, जो एक गैर-अमृतधारी एक्टर है, उसको कृपाण पहने हुए दिखाया गया है, जो सिख धर्म के पांच धार्मिक ककारों में से एक है। इसके परिणामस्वरूप सिख समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि एफआईआर को देखने से यह स्पष्ट है कि आईपीसी की धारा 295-ए के तहत कोई अपराध नहीं बनता है। इस प्रकार यह ऐसा मामला होगा जो हरियाणा राज्य एवं अन्य बनाम चौ. भजन लाल और अन्य, [1992 एआईआर (सुप्रीम कोर्ट) 604] मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मापदंडों के भीतर आएगा।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ताओं के पास सिख समुदाय की धार्मिक भावनाओं को अपमानित करने का कोई संभावित उद्देश्य नहीं है; इसके अलावा, उन्हें इस तरह का कथित अपमान करने से कुछ भी हासिल नहीं होगा, जिससे आरोप निराधार और तार्किक सारहीन हो जाएंगे।

    याचिका में कहा गया,

    "आईपीसी की धारा 295-ए का सार केवल धार्मिक प्रतीकों या प्रथाओं के चित्रण में नहीं है, बल्कि किसी धर्म या उसकी मान्यताओं का अपमान करने के उद्देश्यपूर्ण, दुर्भावनापूर्ण इरादे में निहित है।"

    वकील ने प्रस्तुत किया कि विचाराधीन चित्रण किसी भी अपमानजनक संदर्भ से रहित है और आईपीसी की धारा 295-ए के दायरे के तहत आवश्यक अपमान के कार्य के बराबर नहीं है।

    याचिका में कहा गया,

    "साहिब/कृपाण" के आसपास किसी भी स्पष्ट या अंतर्निहित अपमानजनक चित्रण या कथा के अभाव में आरोपों को आईपीसी की धारा 295-ए के तहत आवश्यक अपमान के प्रयास की उच्च सीमा तक नहीं कहा जा सकता।

    मामला अब 11 मार्च, 2024 के लिए सूचीबद्ध है।

    याचिकाकर्ताओं के वकील: तेजेश्वर सिंह और देवांगना छिल्लर।

    केस टाइटल: राधिका राव और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य

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