हाईकोर्ट ने 'मध्य प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की रोकथाम और वसूली अधिनियम' के खिलाफ दायर याचिका पर नोटिस जारी किया

Brij Nandan

26 Aug 2022 10:04 AM GMT

  • मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में राज्य को सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की रोकथाम और वसूली अधिनियम, 2021 को चुनौती देने वाली याचिका में नोटिस जारी किया।

    याचिका पर जस्टिस विवेक रूस और जस्टिस एएन केशरवानी की बेंच ने सुनवाई की।

    याचिकाकर्ता द्वारा बनाया गया मामला यह है कि वे 10.04.2022 को हुए खरगोन दंगों के बाद राज्य सरकार की मनमानी कार्रवाई का शिकार हुए हैं। राज्य द्वारा जारी गजट अधिसूचना के अनुसार तैयार किया गया दावा न्यायाधिकरण याचिकाकर्ता के पति के खिलाफ चला गया है और उसके खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की गई है। उसी के परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता और उनके पति अब 2021 के अधिनियम के दायरे में हैं।

    2021 के अधिनियम के प्रावधानों के बारे में विस्तार से बताते हुए, याचिकाकर्ता जोर देकर कहा है कि यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और भारत के संविधान के तहत निहित मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि 2021 के अधिनियम में व्यक्त की गई परिभाषाएं जैसे कि "व्यक्ति" अस्पष्ट हैं, जो इसे व्यापक दुरुपयोग के लिए खुला छोड़ देती है, जैसा कि उसके मामले में किया जा रहा है।

    उसने आगे कहा है कि अधिनियम की धारा 3(1) और 3(2) के तहत दावा दायर करने की प्रक्रिया मनमानी, अस्पष्ट और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के सिद्धांत के खिलाफ है।

    उसने यह भी दावा किया है कि 2021 के अधिनियम के कुछ प्रावधान एक दूसरे के विपरीत हैं। उदाहरण के लिए, जहां धारा 6(2) क्लेम ट्रिब्यूनल को 3 महीने के भीतर मामले का फैसला सुनाने के लिए कहती है, वहीं सेक्शन 3(1) ट्रिब्यूनल को 30 दिनों के भीतर दावों का निपटान करने के लिए कहता है।

    याचिकाकर्ता ने धारा 17 के तहत प्रावधान को भी इंगित किया है, जिसके तहत दावा याचिका की कार्यवाही को नुकसान पहुंचाने वाले अधिनियम से संबंधित आपराधिक कार्यवाही, यदि कोई हो, द्वारा बाधित नहीं किया जाएगा।

    उसने तर्क दिया है कि उक्त प्रावधान एक ही कार्रवाई के लिए कई कार्यवाही में एक आरोपी के आरोपित करने के लिए एक प्रणाली बनाकर संविधान के अनुच्छेद 20 (2) का उल्लंघन है।

    उसने तर्क दिया है कि 2021 के अधिनियम की धारा 11 के तहत उल्लिखित मुआवजे का दावा करने का प्रावधान धारा 357 सीआरपीसी के प्रावधान के अतिरिक्त है, जिससे एक ही अधिनियम के लिए एक व्यक्ति पर दोहरी देयता पैदा होती है। राज्य ने जानबूझकर एक अस्पष्ट और मनमानी प्रणाली बनाई है ताकि आरोपी व्यक्ति पर दायित्व का निर्धारण किया जा सके।

    याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका के माध्यम से अदालत से 2021 के अधिनियम को संविधान के विरुद्ध घोषित करने और 2021 के अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार गठित न्यायाधिकरणों को असंवैधानिक घोषित करने की प्रार्थना की है।

    याचिकाकर्ता ने पहले अदालत का दरवाजा खटखटाया था कि वह खरगोन दंगों के बाद राज्य द्वारा किए जा रहे विध्वंस अभियान का शिकार हो जाएगी।

    अदालत ने राज्य द्वारा दिए गए आश्वासन को ध्यान में रखते हुए उसकी पिछली याचिका का निपटारा किया कि कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।

    केस टाइटल: फरीदा बी बनाम मध्य प्रदेश राज्य एंड अन्य


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