मोहम्मद जुबैर की हिरासत को चुनौती देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया

Sharafat

1 July 2022 11:25 AM GMT

  • मोहम्मद जुबैर की हिरासत को चुनौती देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें एक ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई उनकी चार दिन की पुलिस हिरासत को चुनौती दी गई थी। उन्हें इस सप्ताह की शुरुआत में दिल्ली पुलिस ने 2018 में किए गए एक ट्वीट पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने और दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में गिरफ्तार किया था।

    जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि रिमांड आदेश चार दिनों की के लिए था, जो जिसकी अवधि शनिवार को समाप्त हो रही है और उसे 2 जुलाई को संबंधित अदालत के समक्ष पेश किया जाएगा। सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि मामले में बहुत सीमित समय है, क्योंकि रिमांड की अवधि कल खत्म हो रही है।

    कोर्ट ने कहा,

    " मुझे नहीं पता है कि वे रिमांड अवधि के विस्तार की मांग कर रहे हैं, लेकिन ... अभियुक्त को रिहा किया जा सकता है, न्यायिक हिरासत में भेजा जा सकता है। आप ट्रायल कोर्ट के समक्ष इन बिंदुओं का आग्रह क्यों नहीं करते? ... अगर वैधता के बारे में बात कर रहे हैं तो नोटिस जारी करना होगा, दूसरे पक्ष को तामिल करवानी होगी। "

    कोर्ट ने दो हफ्ते के अंदर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का समय दिया है। यदि कोई प्रत्युत्तर हो तो एक सप्ताह के भीतर दाखिल किया जाना चाहिए। 27 जुलाई को मामले की सुनवाई होगी।

    इस बीच कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही पक्षकारों द्वारा उठाए गए तर्कों और हाईकोर्ट के समक्ष मामले की पेंडेंसी पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना होगी।

    जुबैर की ओर से पेश एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने तर्क दिया कि इस मामले में सवाल खुद रिमांड की अवधि नहीं है, बल्कि क्या मामले की प्रकृति ऐसी है जिसमें पहली बार रिमांड की जरूरत होगी। उन्होंने तर्क दिया कि जुबैर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी अर्नेश कुमार के दिशानिर्देशों के उल्लंघन में गिरफ्तार किया गया है और यह उनके मोबाइल फोन और लैपटॉप को जब्त करके उनकी पत्रकारिता की स्वतंत्रता को भंग करने का एक प्रयास है।

    दिल्ली पुलिस की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भरोसा करते हुए कहा कि विचाराधीन आदेश एक अंतर्वर्ती आदेश है और केवल असाधारण मामले में ही न्यायालय अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकता है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि मामले की अभी भी जांच चल रही है और आश्वासन दिया कि एजेंसी गैर-पक्षपातपूर्ण तरीके से कार्य कर रही है।

    उन्होंने कहा कि भले ही कोर्ट यह निष्कर्ष निकालता है कि रिमांड आदेश गलत है, इसका परिणाम यह होगा कि जुबैर को न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाएगा। उन्होंने पूछा कि क्या असाधारण क्षेत्राधिकार में हाईकोर्ट किसी ऐसी चीज की जांच कर सकता है जिसकी जांच कल सक्षम क्षेत्राधिकार वाले मजिस्ट्रेट द्वारा की जानी है?

    कोर्ट रूम एक्सचेंज

    ग्रोवर ने जुबैर के लैपटॉप और मोबाइल को जब्त करने की अथॉरिटी की लगातार मांग का विरोध किया।

    गौरतलब है कि ट्रायल जज ने यह देखते हुए रिमांड मंजूर कर लिया था कि जुबैर मामले में "असहयोगी" बने हुए हैं और ट्वीट पोस्ट करने के लिए इस्तेमाल किए गए डिवाइस की बरामदगी बैंगलोर में उनके आवास से की जानी बाकी है।

    इन निष्कर्षों का उल्लेख करते हुए, ग्रोवर ने प्रस्तुत किया,

    " अगर वे चाहते हैं कि मेरा 2018 का फोन चाहते हैं तो 41ए के तहत भी कोई नोटिस था, तो क्या आपने मुझे इसे बैंगलोर से लाने के लिए कहा था? कोई धारा 91 नोटिस जारी नहीं किया गया था। 41ए नोटिस जारी किया गया था और आधे घंटे के भीतर गिरफ्तारी की गई थी। अर्नेश कुमार गाइडलाइन्स का मजाक उड़ाया गया और अगर कोर्ट ने इसे नहीं रोका तो इस देश में कोई भी सुरक्षित नहीं है। "

    उन्होंने कहा कि सामान्य मामलों में गिरफ्तारी के लिए मोबाइल फोन और लैपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जब्त करना एक "पैटर्न" बन गया है। पेगासस मामले में पत्रकारों के स्रोतों की सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर भी भरोसा किया था।

    " रिमांड आदेश न केवल यांत्रिक है, बल्कि यह उन्हें मेरे अधिकारों पर आक्रमण करने की अनुमति दे रहा है। यह मेरी निजता में एक खंजर डाल रहा है ... रिमांड ने जो कुछ भी पूछा है उसका समर्थन किया है, यह विचार किए बिना कि यह क्या कर रहा और यह जांच की संरचना को बदलने और फ़िशिंग की सुविधा के लिए है। "

    उन्होंने दावा किया कि कई ट्विटर यूज़र ने वही तस्वीर साझा की थी, हालांकि, केवल जुबैर को उनके पेशे (पत्रकारिता) और धार्मिक समुदाय के आधार पर "टारगेट" किया गया।

    ग्रोवर ने आगे तर्क दिया कि सॉलिसिटर जनरल एक ऐसे मामले में पेश हो रहे हैं जहां अपराध कथित रूप से अधिकतम दो साल की सजा का प्रावधान है, यह पूरी "कहानी" दर्शाता है।

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