'धार्मिक स्थलों के भीतर "मुहर्रम" से जुडी धार्मिक रस्में अदा करें', तेलंगाना उच्च न्यायालय ने "बीबीका आलम जूलुस" ले जाने की प्रार्थना वाली याचिका खारिज की

SPARSH UPADHYAY

31 Aug 2020 12:16 PM IST

  • धार्मिक स्थलों के भीतर मुहर्रम से जुडी धार्मिक रस्में अदा करें, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने बीबीका आलम जूलुस ले जाने की प्रार्थना वाली याचिका खारिज की

    तेलंगाना उच्च न्यायालय ने बुधवार (26 अगस्त) को एक रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें अल्वा बीबी से शुरू होने वाले जुलूस "बीबिका आलम जूलूस" को अनुमति देने की अनुमति मांगी गई थी।

    न्यायमूर्ति टी. विनोद कुमार की एकल पीठ ने देखा,

    "हालांकि धर्म का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, लेकिन यह एक पूर्ण अधिकार नहीं है, क्योंकि अनुच्छेद के शुरुआती शब्द ही यह स्पष्ट करते हैं कि इस तरह का अधिकार "सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य" प्रतिबंध के अधीन हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 (2) के तहत, किसी भी कानून का संचालन शामिल है।"

    मामले की पृष्ठभूमि

    वर्तमान रिट याचिकाकर्ता (एम/एस. फातिमा सेवा दल सोसाइटी) ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उत्तरदाताओं को यह निर्देश देने के लिए मैंडमस की एक रिट जारी करने के लिए याचिका दायर की थी, जिसमे विशेष रूप से दूसरी प्रतिवादी को "बिबिका आलम जूलूस" ले जाने की अनुमति जारी करने के निर्देश देने की मांग की गयी थी।

    [नोट: यह ध्यान दिया जा सकता है कि मुहर्रम के 10वें दिन, 681 ईस्वी में कर्बला की लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत को चिह्नित करने के लिए हजारों शिया इस जुलूस में भाग लेते हैं।]

    याचिकाकर्ता के लिए पेश वकील ने अदालत के सामने प्रस्तुत किया कि हज़रत अली असगर के झुला के साथ 10 ऊंटों, 1 घोड़े और 1 हाथी के साथ जुलूस का आयोजन, मुहर्रम के दसवें दिन अलमों द्वारा किया जाता है जोकि एक सदियों पुरानी धार्मिक परंपरा है जिसे पिछले 442 वर्ष से आयोजित किया जा रहा है और इस वर्ष यह 30.08.2020 को पड़ रहा है।

    इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया था कि याचिकाकर्ता इस तरह के धार्मिक अनुष्ठान करने का इरादा रखता है, और 19.08.2020 को एक आवेदन करके प्रतिवादी नंबर 2 से इस सम्बन्ध में अनुमति मांगी गयी थी।

    हालांकि, 26 अगस्त तक प्रतिवादी नंबर 2 प्राधिकारी द्वारा कोई अनुमति नहीं दी गई थी, इसलिए याचिकाकर्ता ने इस अदालत का दरवाजा खटखटाया जिसके अंतर्गत उनके द्वारा इस तरह की अनुमति देने के लिए प्रतिवादी अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की जा रही थी।

    याचिकाकर्ता का तर्क

    याचिकाकर्ता के लिए पेश वकील ने आगे कहा कि प्राचीन समय से प्रचलित धार्मिक परंपरा होने के नाते, प्रतिवादी अधिकारी इस परंपरा में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं और इस तरह की किसी भी बाधा से धर्म के अधिकार के स्वतंत्रता के साथ हस्तक्षेप होगा, जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 में निहित है।

    यह तर्क दिया गया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में ओडिशा में जगन्नाथ रथ यात्रा के संचालन पर पूर्ण रोक को हटाते हुए, पुरी में रथ यात्रा को शर्तों के तहत अनुमति दी थी।

    इस प्रकार, वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता को मार्ग के माध्यम से उपरोक्त जुलूस के साथ आगे बढ़ने की अनुमति देने के लिए प्रतिवादी नंबर 2 प्राधिकारी को एक निर्देश जारी किया जाना चाहिए।

    दूसरी ओर, विशेष सरकारी वकील ने उच्च न्यायालय का ध्यान भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 25 अगस्त को सुनाये एक आदेश की ओर दिलाया.

    विशेष सरकारी वकील ने कहा कि इस आदेश में, मुहर्रम का सार्वजनिक जुलूस निकालने के लिए शीर्ष अदालत की अनुमति लेने की याचिका पर सुनवाई की गयी थी, जिसमे COVID-19 के मद्देनजर, मुहर्रम के अवसर पर जुलूस के संचालन के लिए अंतरिम राहत देने में अदालत ने रूचि नहीं दिखाई थी।

    गौरतलब है कि इसके पश्च्यात, गुरुवार (27 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट ने COVID महामारी के बीच मुहर्रम जुलूस को अनुमति देने से इनकार कर दिया था।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने कहा कि देश भर में जुलूस निकालने के लिए सामान्य निर्देश देने से अराजकता पैदा होगी और एक विशेष समुदाय को फिर वायरस फैलाने के लिए टारगेट किया जा सकता है।

    न्यायालय का अवलोकन

    अदालत का विचार था कि स्वास्थ्य के साथ महामारी COVID -19 के रूप में और सरकार ने महामारी रोग अधिनियम, 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के प्रावधानों को लागू किया है, और कुछ गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसमें जुलूस शामिल हैं।

    इस प्रकार, अदालत ने यह माना कि याचिकाकर्ता यह नहीं कह सकते कि प्रतिवादी अधिकारी जुलूस निकालने सहित धार्मिक गतिविधियों को लेकर याचिकाकर्ता के धार्मिक अधिकार के संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं लगा सकते।

    हालांकि, पीठ ने देखा कि मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर्स के दिशानिर्देश "धार्मिक परिसर/पूजा स्थल के भीतर" धार्मिक गतिविधियों के संचालन की अनुमति देते हैं।

    इस संदर्भ में पीठ ने कहा,

    "याचिकाकर्ता को ज़ियारत आशूरा, लटियामा, स्व-ध्वजा और "मोहर्रम" से जुड़े अन्य धार्मिक समारोहों को धार्मिक परिसर में करने की अनुमति है, हालाँकि उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर आने और प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"

    अदालत ने आगे कहा,

    "यदि याचिकाकर्ता संबंधित प्राधिकारी को इस तरह का वचन देते हैं कि वे मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर्स के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए, धार्मिक परिसरों / पूजा स्थल के भीतर धार्मिक गतिविधियों को करेंगे तो संबंधित प्रतिवादी अधिकारियों का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।"

    2020 के WRIT PETITION No.14037 में आदेश यह ध्यान दिया जा सकता है कि शुक्रवार (28 अगस्त) को जस्टिस अभिनन्द कुमार शाविली की पीठ ने WRIT PETITION No.14037 ऑफ़ 2020 का निस्तारण किया,

    "पार्टियों द्वारा प्रस्तुतियों पर विचार करने के बाद, अदालत का विचार है कि चूंकि उत्तरदाता नंबर 2 ने 22.08.2020 को याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत प्रतिनिधित्व पर कोई आदेश पारित नहीं किया है, इसलिए न्याय के हित में यह उचित होगा कि यह रिट याचिका को 22.08.2020 को याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत प्रतिनिधित्व पर विचार करने और जगन्नाथ रथ यात्रा के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार भारत सरकार द्वारा जारी एमएचए दिशानिर्देश का कड़ाई से पालन करते हुए 30.08.2020 से पहले उचित आदेश पारित करने के लिए प्रतिवादी को निर्देशित करते हुए निस्तारित किया जाये।"

    फिर सदस्यों ने हैदराबाद के पुलिस आयुक्त अंजनी कुमार को एक प्रतिनिधित्व प्रस्तुत किया, लेकिन 'न्यू इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक वह प्रतिनिधित्व भी बिना अनुमति दिए गए निपटा दिया गया है।

    इस मामले में, यह याचिकाकर्ता (अंजुमन इलवली शिया इमामिया इत्ना अहारी अखबारी) द्वारा तेलंगाना उच्च न्यायालय के समक्ष दलील दी गई थी कि वे शांतिपूर्ण तरीके से बीबी का अलवा, डाबिरपुरा से चदरघाट तक आलमों को ले जाने के लिए मोहर्रम की रस्में निभाने का इरादा रखते हैं।

    28 अगस्त का आदेश पढ़ें

    26 अगस्त का आदेश पढ़ें






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