दिल्ली हाईकोर्ट ने COVID-19 के कारण अनाथ हुए बच्चों की सुरक्षा के लिए याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा

LiveLaw News Network

9 Feb 2022 6:15 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने COVID-19 के कारण अनाथ हुए बच्चों की सुरक्षा के लिए याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा

    दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार से COVID-19 के कारण अनाथ हुए बच्चों के हितों की रक्षा के लिए उठाए गए कदमों के संबंध में जवाब मांगा। इन अनाथ बच्चों की रक्षा की मांग करते हुए दायर याचिका में कहा गया कि उक्त बच्चों पर मानव तस्करी का खतरा मंडरा रहा है।

    चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की खंडपीठ अधिवक्ता जितेंद्र गुप्ता द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में केंद्र और दिल्ली सरकार को निर्देश देने की मांग की गई कि वे उन बच्चों के हितों की रक्षा करें, जिन्होंने अपने माता-पिता को COVID-19 के कारण खो दिया। इन बच्चों के पास उनकी देखभाल करने और तस्करी के जोखिम का सामना करने के लिए अब कोई नहीं है।

    कोर्ट ने पिछले साल प्रतिवादियों से मामले में अपने जवाबी हलफनामे और स्थिति रिपोर्ट को रिकॉर्ड में लाने को कहा था।

    सुनवाई के दौरान गुप्ता ने अदालत को अवगत कराया कि केंद्र ने अपना जवाबी हलफनामा दायर किया, लेकिन दिल्ली सरकार ऐसा करने में विफल रही।

    इस पर, दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने देखभाल और सुरक्षा की जरूरत वाले बच्चों से संबंधित स्वत: संज्ञान मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चल रही कार्यवाही पर उल्लेख किया।

    वकील ने यह भी कहा कि इस मामले में पहले ही विभिन्न निर्देश जारी किए जा चुके हैं। साथ ही सरकार द्वारा एक नीति भी बनाई गई है। इसके तहत COVID-19 मौतों से प्रभावित परिवारों को 50,000 रुपये का मुआवजा दिया जा रहा है। साथ ही COVID-19 से घर के कमाने वाले सदस्य को खोने वाले परिवारों को 2,500 रूपये मासिक योगदान दिया जा रहा है।

    शुरुआत में गुप्ता ने मानव तस्करी के अपराध के खिलाफ अनाथ हुए बच्चों के हितों की रक्षा के लिए विशिष्ट प्रार्थना योग्यता का उल्लेख किया।

    इस पृष्ठभूमि में गुप्ता ने विशेष रूप से तस्करी किए गए बच्चों और ऐसे बच्चों की सुरक्षा के लिए दिल्ली सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर डेटा मांगा।

    कोर्ट ने दिल्ली सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।

    इससे पहले गुप्ता ने अदालत से कहा कि केवल इसलिए कि सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर एक सामान्य निर्देश जारी किया, यह हाईकोर्ट को अपने अधिकार क्षेत्र में स्थिति की समीक्षा करने से नहीं रोकता।

    महिला और बाल विकास मंत्रालय ने तब अदालत को सूचित किया कि उसने बच्चों के सर्वोत्तम हित में आवश्यक उपाय करते हुए किसी भी संसाधन की कमी को दूर करने के लिए चालू वित्तीय वर्ष के लिए बाल संरक्षण सेवाओं के तहत तदर्थ अनुदान जारी किया है।

    इसने यह भी प्रस्तुत किया कि केंद्र प्रभावित बच्चों के सर्वोत्तम हित को बचाने के लिए आवश्यक कदम उठा रहा है और याचिका को योग्यता से रहित होने के कारण खारिज कर दिया जाना चाहिए।

    दूसरी ओर याचिकाकर्ता ने दावा किया कि कई अनाथ बच्चों की तस्करी होने का खतरा है। याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की कि ऐसे बच्चों की इंटरनल कस्टडी उनके रिश्तेदारों या चाइल्ड केयर होम को दी जाए जबकि कानूनी रूप से गोद दिए जाने के विकल्प भी तलाशे जाएं।

    याचिका में कहा गया कि प्रतिवादी आम जनता के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने वैधानिक कर्तव्य का पालन करने में विफल रहे हैं और प्रभावित बच्चों के हितों की रक्षा के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

    इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने उन नागरिकों के परिवार के सदस्यों के लिए वित्तीय मुआवजे की भी मांग की, जिन्होंने अस्पताल में प्रवेश, ऑक्सीजन सिलेंडर, इंजेक्शन, दवाओं आदि के मामले में पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल से वंचित होने के बाद अपनी जान गंवाई।

    केस शीर्षक: जितेंद्र गुप्ता बनाम भारत संघ और अन्य।

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