"संविधान की अपने तरीके से व्याख्या करने के लिए आवाज उठाना देशद्रोह नहीं": गुजरात हाईकोर्ट ने पत्थलगड़ी आंदोलन की नेता बबीता कच्छप को जमानत दी
LiveLaw News Network
4 Aug 2021 3:30 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने मंगलवार को पत्थलगड़ी आंदोलन की नेता बबीता कच्छप (कश्यप) को जमानत दी, जिन्हें पिछले साल जुलाई में गुजरात आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने गिरफ्तार किया था।
न्यायमूर्ति एस एच वोरा की खंडपीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह दिखाने के लिए एक भी घटना को इंगित नहीं कर सका कि बबीता के आंदोलन में शामिल होने के कारण सामान्य गतिविधियों में कोई गड़बड़ी हुई या आम जनता प्रभावित हुई।
बेंच ने महत्वपूर्ण रूप से कहा कि ऐसा कोई संकेत नहीं है कि भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची की व्याख्या में आवाज उठाने के कारण सार्वजनिक रूप से किसी की ओर से कोई प्रतिक्रिया आई हो या कुछ अनुचित कृत्य किया गया हो।
न्यायालय ने कहा कि,
"व्यक्ति की उपस्थिति, जो कि आईपीसी की धारा 124 (ए) और 153 (ए) के तहत अपराध बनाने के लिए एक आवश्यक तत्व है, रिकॉर्ड पर उपलब्ध नहीं है।"
संक्षेप में मामला
बबीता के साथ 2 अन्य आरोपियों पर धारा 124 ए (देशद्रोह), 153 ए (समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 120 बी (आपराधिक साजिश) और 121 ए (अपराध करने की साजिश) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
यह आरोप लगाया गया कि बबीता और अन्य सह-आरोपियों ने गुजरात के आदिवासी क्षेत्र में उनकी गतिविधियों में प्रवेश किया और इस प्रकार आदिवासी के सती-पति पंथ के अनुयायियों को भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची की गलत व्याख्या और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए हिंसक तरीके अपनाने के लिए उकसाया।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि वे झारखंड राज्य के विभिन्न पुलिस स्टेशनों में भारत विरोधी गतिविधियों, अपहरण, हत्या, बलात्कार, भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने से संबंधित मामलों में कई आरोपों का सामना कर रहे हैं।
अभियोजन पक्ष का यह मामला है कि सह-अभियुक्तों ने लोगों को भड़काकर जाति और वर्ग के आधार पर लड़ने के लिए मजबूर किया और उनके कब्जे में आपत्तिजनक सामग्री वाले दस्तावेज और मोबाइल फोन के साथ पकड़ा गया और इस तरह उपरोक्त अपराध को अंजाम दिया।
[नोट: झारखंड सरकार ने अब बबीता के खिलाफ पत्थलगड़ी आंदोलन के संबंध में दर्ज सभी मामलों को वापस लेने का आदेश दिया है और उक्त निर्णय के अनुसार, झारखंड राज्य के सचिव द्वारा दिनांक 28/01/2020 की अधिसूचना जारी की गई है। इस स्टैंड को एपीपी ने चुनौती नहीं दी है।]
अंत में यह आरोप लगाया गया कि वह सरकार के खिलाफ आदिवासी समुदाय को भड़का रही थी और साथ ही यह भी घोषित किया कि आदिवासी क्षेत्रों के जिलों/क्षेत्रों पर कोई भी भारतीय कानून लागू नहीं होगा।
प्रस्तुतियां
यह तर्क दिया गया कि शब्दों के द्वारा उकसाने से वास्तविक हिंसा होना चाहिए और इसलिए केवल पत्तलगड़ी आंदोलन में शामिल होने से देशद्रोह का अपराध नहीं हो सकता।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि उन्होंने पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों के लिए जनजाति सलाहकार परिषद की सलाह के अनुसार राज्यपाल को कार्य करने के लिए उचित रिट जारी करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
कोर्ट का आदेश
यह देखते हुए कि गुजरात राज्य में उनकी उपस्थिति के दौरान किसी भी समय कोई वास्तविक हिंसा या शांति भंग नहीं हुई, अदालत ने कहा कि विचाराधीन प्राथमिकी केवल झारखंड राज्य में दर्ज इसी तरह के अन्य अपराधों के कारण दर्ज की गई है।
कोर्ट ने इसके अलावा यह भी कहा कि जब्त सामग्री/साहित्य इंटरनेट पर उपलब्ध है और उसके खिलाफ कोई आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिली है।
नतीजतन, अदालत ने उसे जमानत दी और कहा कि याचिकाकर्ता को 20,000 रूपये का निजी बॉन्ड भरने और इतनी ही राशि का एक जमानतादार पेश करने और ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि जमानत दी जाए।
पत्थलगड़ी आंदोलन के बारे में
पत्थलगड़ी आंदोलन 2016 के उस आंदोलन को संदर्भित करता है जो मुख्य रूप से झारखंड के खूंटी और आसपास के जिलों के माओवादी बेल्ट में शुरू हुआ था। जहां आदिवासी आबादी ने अपने-अपने गांवों के बाहर विशाल पत्थर की पट्टिकाएं लगाई थीं, जिसमें बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध की घोषणा की गई थी।
झारखंड की जनजातीय संस्कृति में पत्थलगड़ी शब्द का शाब्दिक अर्थ "पत्थर तराशना" है। स्व-शासन की वकालत करने वाले पत्थलगड़ी आंदोलन के परिणामस्वरूप झारखंड में 2016 और 2017 में राज्य सरकार और आदिवासी लोगों के बीच हिंसा हुई।
केस का शीर्षक - बबीता सुकर कश्यप बनाम गुजरात राज्य