"वह हाथ जोड़कर और आंसुओं में हमारे सामने खड़े हैं", इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न्यायिक अधिकारी के खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणी को आदेश से हटाया

Sparsh Upadhyay

25 March 2021 4:00 AM GMT

  • Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस महीने की शुरुआत में एक न्यायिक अधिकारी द्वारा बिना शर्त माफी मांगने और एक साल से अधिक समय तक निलंबित रहने के तथ्य के मद्देनजर, उनके खिलाफ अदालत द्वारा की गई प्रतिकूल टिप्पणी को नवंबर 2019 के आदेश से मिटा दिया/रिकार्ड से हटा दिया गया (expunged)।

    न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ 18 जुलाई, 2018 के अपने आदेश में उच्च न्यायालय द्वारा अधिकारी खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने के लिए तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय, सुल्तानपुर की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    न्यायालय के समक्ष मामला

    न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की पीठ द्वारा न्यायिक अधिकारी मनोज कुमार शुक्ला के खिलाफ कुछ प्रतिकूल टिप्पणी कोर्ट का आदेश दिनांक 18 नवंबर, 2019 को की गई थी जब वे हाई कोर्ट में पेश हुए थे।

    जैसा कि आवेदक/न्यायिक अधिकारी द्वारा स्वीकार किया गया, वह थोड़ा पीड़ा में थे, क्योंकि पहली अपील में मौजूद आदेश को उनके द्वारा पारित नहीं किया था, फिर भी उन्हे उच्च न्यायालय के सामने पेश होना पड़ा और जिसके पश्चयात उन्होंने अपना आप खो दिया।

    उनके आचरण के परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट के आदेश में उनके खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी की गई और जिसके चलते उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की गई और उन्हें निलंबित कर दिया गया।

    न्यायालय के समक्ष पेश होकर उन्होंने प्रस्तुत किया कि प्रतिकूल टिप्पणी के कारण उनका जीवन और करियर दोनों कलंकित हो गया है और उन्होंने अदालत के आगे "हाथ जोड़कर" निवेदन किया कि वह कभी वह गलती नहीं करेंगे।

    कोर्ट का अवलोकन

    अदालत ने देखा कि आवेदक, अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के रैंक का न्यायिक अधिकारी है और उसने अपने आचरण के बारे में गंभीर खेद प्रस्तुत किया और पश्चाताप व्यक्त किया, जिसके चलते इस तरह की प्रतिकूल टिप्पणी की गई थी।

    साथ ही, न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा कि आवेदक / न्यायिक अधिकारी हाथ जोड़कर और आंसुओं के साथ दया और क्षमा मांगने के लिए खड़े थे।

    इसके अलावा, उनके आश्वासन और बिना शर्त माफी पर विचार करते हुए, न्यायालय ने आवेदक / न्यायिक अधिकारी से संबंधित 18 नवंबर 2019 के आदेश में निहित प्रतिकूल टिप्पणियों को मिटाने का निर्णय लिया।

    गौरतलब है कि कोर्ट ने कहा,

    "आवेदक एक वर्ष से अधिक समय से निलंबित है। उन्हे अपनी गलती का एहसास हो गया है; इसलिए, हम इस बात का कोई कारण नहीं देखते हैं कि जो टिप्पणी की गई है उसे आगे भी जारी रखा जाए। टिप्पणी को हटाया हुआ माना जाएगा और उसे आवेदक/मनोज कुमार शुक्ला के खिलाफ उनके करियर में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।"

    उनके विरूद्ध लंबित अनुशासनात्मक कार्यवाही के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि परिणाम कानून के अनुसार होंगे।

    इसके अलावा, न्यायिक अधिकारी की काउंसलिंग करते हुए कि वह कोर्ट के सामने क्या करे, कोर्ट ने टिप्पणी की,

    "हम आशा करते हैं और यह विश्वास करते हैं कि वह न केवल परिश्रम और ईमानदारी के साथ अपने न्यायिक कर्तव्यों का पालन करेंगे, बल्कि उस सज्जा और शिष्टाचार का भी पालन करेगा, जिसे अपने जूनियर्स, अपने सहयोगियों, जैसे कि बेहतर अधिकारियों के साथ-साथ मनाया जाना आवश्यक है।"

    तदनुसार, न्यायालय ने आवेदन को अनुमति दी।

    केस का शीर्षक – मो. इरशाद बनाम अंजुम बानो

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

    आदेश पढ़ें

    Next Story