हाईकोर्ट शस्त्र लाइसेंस के संबंध में तथ्यात्मक निष्कर्षों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
11 Dec 2023 7:28 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाला हाईकोर्ट शस्त्र अधिनियम, 1959 के तहत हथियार लाइसेंस देने के संबंध में लाइसेंसिंग प्राधिकरण द्वारा लौटाए गए तथ्यात्मक निष्कर्षों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
जस्टिस प्रकाश पाड़िया ने कहा, “हथियार लाइसेंस रखने का कोई अधिकार नहीं है, यह एक विशेषाधिकार है और यह तथ्य का सवाल है, जिसे संबंधित अधिकारियों को सुनिश्चित करना है कि कोई व्यक्ति उक्त विशेषाधिकार का हकदार है या नहीं और ऐसे तथ्यात्मक निष्कर्षों में रिट क्षेत्राधिकार में कोई हस्तक्षेप संभव नहीं है।"
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता ने आत्मरक्षा और सुरक्षा के लिए बंदूक लाइसेंस देने के लिए आवेदन किया था। याचिकाकर्ता ने मेडिकल फिटनेस और निवास प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया। सब डिविजनल मजिस्ट्रेट, झांसी और पुलिस अधीक्षक, झांसी ने याचिकाकर्ता के पक्ष में रिपोर्ट प्रस्तुत की। हालांकि, चूंकि याचिकाकर्ता को निर्धारित समय के भीतर लाइसेंस दिया गया था, इसलिए उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने प्राधिकरण को तीन महीने के भीतर आवेदन पर निर्णय लेने का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट के आदेश के क्रम में जिला मजिस्ट्रेट, झांसी ने बन्दूक लाइसेंस देने के आवेदन को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 18 के तहत अपीलीय प्राधिकारी से संपर्क किया, जिसे आयुक्त, झांसी क्षेत्र, झांसी ने खारिज कर दिया। अपील खारिज होने से क्षुब्ध होकर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता 2008 से जिला न्यायालय झांसी में प्रैक्टिसिंग वकील है और उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। यह आग्रह किया गया कि याचिकाकर्ता सार्वजनिक हित के लिए सामाजिक कार्यों में शामिल हो और उसे अपने जीवन और संपत्ति की सुरक्षा के लिए आग्नेयास्त्र लाइसेंस की तत्काल आवश्यकता है। मनोज कुमार यादव बनाम यूपी राज्य अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह लखनऊ के माध्यम से और अन्य में इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णयों पर भरोसा रखा गया।
दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने कहा था कि एसएसपी, झांसी ने याचिकाकर्ता को असलहा लाइसेंस दिए जाने पर आपत्ति जताई थी। चूंकि याचिकाकर्ता एक प्रैक्टिसिंग वकील है और उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, इसलिए जीवन को कोई खतरा नहीं है। तदनुसार, जिला मजिस्ट्रेट ने माना कि याचिकाकर्ता को किसी बन्दूक लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है।
फैसला
न्यायालय ने पाया कि जिला मजिस्ट्रेट, झांसी का आदेश याचिकाकर्ता द्वारा रिकॉर्ड पर रखे गए तथ्यों पर विचार करने के बाद पारित किया गया था। उचित विचार के बाद, लाइसेंसिंग प्राधिकारी, यानी, जिला मजिस्ट्रेट ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता ने आग्नेयास्त्र लाइसेंस दिए जाने के लिए पर्याप्त कारण नहीं बताए थे।
कैलाश नाथ और अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य और राम मिलन बनाम यूपी राज्य और अन्य में इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णयों पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने माना कि आग्नेयास्त्र लाइसेंस का कोई अधिकार नहीं है और इसे केवल तथ्यों के आधार पर लाइसेंसिंग प्राधिकारी द्वारा ही प्रदान किया जा सकता है। न्यायालय ने माना कि यह सवाल कि क्या कोई व्यक्ति आग्नेयास्त्र लाइसेंस का हकदार है, प्रकृति में तथ्यात्मक है और हाईकोर्ट रिट क्षेत्राधिकार में लाइसेंसिंग प्राधिकरण द्वारा लौटाए गए तथ्यात्मक निष्कर्षों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। इसके अलावा, राजेंद्र सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए, कोर्ट ने कहा कि "आग्नेयास्त्र रखने का अधिकार भारत में मौलिक अधिकार नहीं है।"
कोर्ट ने एडवोकेट शिव कुमार बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया और कहा, "हथियार लाइसेंस क़ानून का एक निर्माण है और लाइसेंसिंग प्राधिकारी को प्रत्येक मामले में तथ्यात्मक स्थिति के आधार पर, ऐसा लाइसेंस देने या न देने का विवेक निहित है।"
तदनुसार, रिट याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटलः ज्ञानेंद्र सिंह बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य [WRIT - C No. - 10887 of 2015]