'कुटिल साजिश रची गई': मद्रास हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार के खिलाफ झूठा मामला दायर करने के लिए दो वकीलों को अदालत की अवमानना ​​का दोषी ठहराया

LiveLaw News Network

31 Aug 2021 3:31 PM IST

  • God Does Not Recognize Any Community, Temple Shall Not Be A Place For Perpetuating Communal Separation Leading To Discrimination

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने दो वकीलों को अदालत की अवमानना का दोषी पाया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि वकीलों ने रजिस्ट्रार (सतर्कता) को पद से हटाने के लिए, उन पर एक 'चिढ़ाऊ मुकदमा' दायर किया। उन्होंने एक फर्जी हलफनामा दायर किया कि रजिस्ट्रार आवश्यक योग्यताओं के बिना पद पर बनी हुई हैं।

    जस्टिस पीएन प्रकाश और जस्टिस आरएन मंजुला की बेंच ने कहा,

    " रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्रियों की सावधानीपूर्वक जांच करने पर, हम पूरी तरह से संतुष्ट हैं कि कथित अवमाननाकर्ताओं ने मिलकर काम किया है और WPNo.14434 of 2020 के रूप में चिढ़ाऊ मुकदमे को खड़ा करने के लिए एक कुटिल साजिश रची, जिसका आधार झूठे हलफनामा ‌था, जिसमें न केवल तत्कालीन रजिस्ट्रार (सतर्कता) को पद से हटाने की योजना बनाई गई थी, बल्कि उच्च न्यायालय की प्रतिष्ठा को भी कम करने का इरादा था।"

    फैसले में आगे जोड़ा गया था, "दोनों ने इस न्यायालय के समक्ष मामले को स्वीकार किए जाने से पहले ही प्रेस में याचिका को व्यापक रूप से प्रसारित किया था और इस तरह न्याय के प्रशासन को जनता की नजरों में बदनाम कर दिया था, इस तथ्य को महसूस किए बिना कि न्यायालय के अधिकारियों के रूप में उनका आचरण लापरवाही से संस्था पर पत्थर फेंकने के समान होगा, जिससे न्याय प्रशासन की बदनाम होगी।"

    अदालत ने य‌ाचिका पर फैसला करने से पहले ही मीडिया में इसके प्रकाशन पर आपत्ति व्यक्त की। यह मानते हुए कि संबंधित वकीलों द्वारा इस तरह का आचरण जनता की नजर में न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को कम करता है, कोर्ट ने कहा, "अगर कथित अवमाननाकर्ता संस्थान की गरिमा की रक्षा में रुचि रखते तो कम से कम वे रजिस्ट्रार जनरल को एक अभ्यावेदन दे सकते थे कि सुश्री पूर्णिमा ने प्लस टू की परीक्षा पास नहीं की थी। जबकि ऐसा नहीं किया गया था। इसके बजाय, एक याचिका दायर की गई और तुरंत बाद उसे एक समाचार के रूप में प्रकाशित किया गया। यहां अवमानना ​​​​कार्यवाही का विषय सुश्री पूर्णिमा की प्रतिष्ठा नहीं है, बल्कि उच्च न्यायालय की जनता की निगाह में एक संस्था के रूप में छवि है।"

    पृष्ठभूमि

    मौजूदा याचिका 2020 में दायर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उच्च की तत्कालील रजिस्ट्रार (सतर्कता) सुश्र‌ी पूर्णिमा 12 वीं कक्षा पास नहीं हैं। मुख्य न्यायाधीश साही और न्यायमूर्ति सेथ‌िलकुमार की पीठ ने इस प्रकार के आरोपों को निराधार बताया था और अदालत की अवमानना ​​की कार्यवाही शुरू करने के अलावा याचिकाकर्ताओं पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।

    कोर्ट ने कहा,

    "एक असाधारण स्थिति तब पैदा हो गई, जब हमने पाया कि सतीश कुमार-वासुदेवन की जोड़ी इस दुस्साहस में अकेली नहीं थी और न्यायपालिका के कुछ अंदरूनी लोग भी थे, जिन्हें सुश्री पूर्णिमा से कुछ शिकायतें थीं। न्यायिक संस्थान को न केवल बाहरी लोगों के हमले से संरक्षित किया जाना चाहिए, बल्‍कि उन लोगों से भी बचाना चाहिए, जो इसे भीतर से नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं।"

    सतीश कुमार ने अदालत में दलील दी थी कि उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता वासुदेवन के आग्रह पर मौजूदा याचिका दायर की थी। अदालत ने सतीश कुमार की इस दलील पर भी गौर किया कि वह 'वरिष्ठ अधिवक्ता वासुदेवन के हाथों का मोहरा थे और वासुदेवन ने ही उन्हें क्वो याचिका दायर करने के लिए इस्तेमाल किया था।'

    हालांकि, वासुदेवन ने इस तरह के आरोपों से इनकार किया लेकिन अदालत उनकी बात इस तथ्य के आलोक में नहीं मानी कि वासुदेवन ने कुमार पर पहले की बेंच द्वारा लगाए गए जुर्माने का भुगतान किया था।

    "अगर वासुदेवन की रिट याचिका दायर करने में कोई भूमिका नहीं थी तो उन्होंने सतीश कुमार को 5 लाख रुपये की नकद राशि क्यों दी? वासुदेवन को सीधे उच्च न्यायालय रजिस्ट्री में जमा करने से किसने रोका था? यह ऐसा प्रश्न है, जिसका कोई उत्तर नहीं है। दिनांक 29.10.2020 की रसीद में कानूनी निरक्षरता की बू आ रही है, इसमें ऋणदाता का नाम नहीं है, बल्‍कि इसमें केवल ऋण लेने वाले का नाम है, यानी सतीश कुमार। दूसरे शब्दों में केवल सतीश कुमार का नाम है, वासुदेवन का नहीं। इससे सतीश कुमार के बचाव की संभावना होती है कि वासुदेवन ने अधीनस्थ न्यायपालिका में अपने आकाओं को पैसे इकट्ठा करने के लिए दिखाने के लिए रसीद प्राप्त की थी।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि विजिलेंस कमेटी के निर्देशों को क्रियान्वित करने कारण रजिस्ट्रार पूर्णिमा को संभवतः निशाना बनाया जा रहा था। इसके अलावा, वकीलों ने एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश के नाम पर यह दलील देने के लिए भरोसा किया था कि उन्होंने इस तरह के 'कुटिल साजिश' को अंजाम दिया था। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि पहली बार उनका नाम लिए जाने से बीस दिन पहले ही जिला जज का निधन हो गया था।

    जुर्माना

    अदालत ने फैसला सुनाया कि दोनों वकील सतीश कुमार और वासुदेवन अदालत की अवमानना ​​अधिनियम, 1971 की धारा 2 (सी) (iii), (2 counts) और धारा 2 (सी) (i), धारा 12 के साथ पठित (1) के तहत अदालत की अवमानना ​​के दोषी हैं।

    कुमार को प्रत्येक दोष के लिए 2,000 रुपये का जुर्माना (तीन आरोपों के लिए 6,000 रुपये) का भुगतान करने का आदेश दिया गया। भुगतान न करने पर उन्हें प्रत्येक आरोप के लिए एक सप्ताह के साधारण कारावास को भुगतना होग। हालांकि, उन्हें हाईकोर्ट में प्रैक्टिस फिर से शुरू करने की अनुमति दी गई थी।

    कुमार को सजा सुनाते हुए कोर्ट ने कहा,

    "वह एक दलित है; वह एक गरीब परिवार से आते हैं और उन्हें अपने माता-पिता, पत्नी और तीन नाबालिग बच्चों की देखभाल करनी पड़ती है; उन्हें प्रैक्टिस से निलंबित करने के पहली बेंच के आदेश से पर्याप्त कष्ट हुआ है और आगे सजा उन्हें पूरी तरह बर्बाद कर देगी। हम पाते हैं कि यद्यपि वह WP No 14434 of 2020 में कार्यवाही के दौरान अवज्ञाकारी थे, अब वह पूरी तरह शांत हो गए हैं और उनकी बिना शर्त माफी वास्तविक प्रतीत होती है।"

    वासुदेवन के मामले में अदालत ने कहा कि वह पूरे समय ' उग्र ' बना रहा, हालांकि अदालत ने पाया कि उसने और सतीश कुमार दोनों ने स्पष्ट रूप से "न्यायपालिका को नुकसान पहुंचाने के एकमात्र उद्देश्य के साथ एक झूठी मुकदमेबाजी को लापरवाही से अंजाम देने के लिए" मिलकर काम किया था।

    इसलिए, प्रत्येक आरोप के लिए 2,000 रुपये के जुर्माने (तीन आरोपों के लिए 6,000 रुपये) के अलावा, वासुदेवन को उनके खिलाफ तय किए गए तीन आरोपों में से प्रत्येक के लिए एक महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी। उन्हें एक वर्ष की अवधि के लिए हाईकोर्ट के समक्ष अभ्यास करने से भी रोक दिया गया था।

    इसी के तहत अवमानना ​​का मामला निस्तारित किया गया।

    केस शीर्षक: मद्रास उच्च न्यायालय बनाम बी सतीश कुमार

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story