ज्ञानवापी मामला : अंजुमन कमेटी ने वाराणसी कोर्ट के समक्ष हिंदू भक्तों के मुकदमे के सुनवाई योग्य होने का विरोध करने वाली याचिका पर अपनी दलीलें पूरी कीं

Sharafat

12 July 2022 3:36 PM GMT

  • ज्ञानवापी मामला : अंजुमन कमेटी ने वाराणसी कोर्ट के समक्ष हिंदू भक्तों के मुकदमे के सुनवाई योग्य होने का विरोध करने वाली याचिका पर अपनी दलीलें पूरी कीं

    अंजुमन इस्लामिया मस्जिद कमेटी ने ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद पर पांच हिंदू महिलाओं (वादी) द्वारा दायर मुकदमे के सुनवाई योग्य होन पर सवाल उठाते हुए अपने आदेश 7 नियम 11 सीपीसी आवेदन पर वाराणसी जिला न्यायालय के समक्ष मंगलवार को अपनी दलीलें पूरी कीं।

    वाराणसी जिला अदालत में मंग्लवार की सुनवाई 2 घंटे से अधिक चली, जिसमें अंजुमन कमेटी ने अपने तर्क समाप्त किये और मूल वादी/5 हिंदू महिला उपासकों ने मूल प्रतिवादियों द्वारा दायर आदेश 7 नियम 11 सीपीसी आवेदन को चुनौती देते हुए अपनी दलीलें शुरू कीं।

    5 हिंदू उपासकों ने तर्क दिया कि केवल नमाज पढ़ने से कोई जगह मस्जिद नहीं बन जाती है, कभी-कभी कुछ परिस्थितियों में सार्वजनिक स्थान पर नमाज अदा की जाती है, लेकिन ऐसा करने से वह जगह मस्जिद नहीं बन जाती।

    जिला न्यायाधीश डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 13 जुलाई की तिथि निर्धारित की है। हिंदू उपासक/वादी इसी तरह की बहस कल भी जारी रखेंगे और उम्मीद की जाती है कि वे आदेश 7 नियम 11 सीपीसी की स्थिरता के मुद्दे पर अपनी दलीलें पेश करेंगे।

    अंजुमन कमेटी ने तर्क दिया कि हिंदू उपासकों द्वारा दायर याचिका जनहित की प्रकृति की है और इसलिए, ऐसी याचिका हाईकोर्ट में दायर की जानी चाहिए। यह भी तर्क दिया गया कि अगर यह मान भी लिया जाए कि मंदिर को हटाकर मस्जिद का निर्माण किया गया था तो भी इसे हटाने के लिए मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता है, बल्कि वर्तमान मामले में बेदखली का मुकदमा दायर किया जाना चाहिए।

    यह आगे प्रस्तुत किया गया था कि पूरी संपत्ति वक्फ बोर्ड की है और इसलिए वाराणसी अदालत के पास मामले की सुनवाई का अधिकार क्षेत्र नहीं है, लेकिन केवल वक्फ बोर्ड को ही इसे सुनने का अधिकार है।

    सुनवाई के दौरान अंजुमन कमेटी ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की मिसालों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि हिंदू उपासकों द्वारा दायर मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है।

    संक्षेप में मामला

    सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत ने अप्रैल 2022 में पांच हिंदू महिलाओं द्वारा वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की पश्चिमी दीवार के पीछे एक हिंदू मंदिर में प्रार्थना करने के लिए साल भर की पहुंच की मांग करने वाली याचिकाओं पर परिसर के निरीक्षण का आदेश दिया था। उनका दावा है कि वर्तमान मस्जिद परिसर कभी एक हिंदू मंदिर था और इसके बाद मुगल शासक औरंगजेब द्वारा इसे ध्वस्त कर दिया गया था, वहां वर्तमान मस्जिद संरचना का निर्माण किया गया था।

    दूसरी ओर अंजुमन मस्जिद समिति ने अपनी आपत्ति और आदेश 7 नियम 11 आवेदन में तर्क दिया है कि वाद विशेष रूप से पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 द्वारा प्रतिबंधित है।

    न्यायालय के समक्ष वादी ने तर्क दिया था कि आदेश 7 नियम 11 सीपीसी आवेदन को अलग से नहीं सुना जाना चाहिए और आयोग की रिपोर्ट के साथ विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने आदेश 26 नियम 10 सीपीसी पर भरोसा किया। वादी ने यह भी तर्क दिया कि उन्हें ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण की सीडी, रिपोर्ट और तस्वीरें उपलब्ध कराई जानी चाहिए। हालांकि, मस्जिद समिति ने तर्क दिया कि आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत उनके आवेदन को पहले सुना जाना चाहिए और वह भी अलग-अलग।

    सुप्रीम कोर्ट ने 20 मई को सिविल जज सीनियर डिवीजन के कोर्ट से जिला कोर्ट में यह कहते हुए मुकदमा ट्रांसफर कर दिया था कि एक अनुभवी और सीनियर जज को मामले की जटिलताओं और संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए इस मामले को संभालना चाहिए।

    अदालत ने पिछले महीने पांच हिंदू महिलाओं द्वारा वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की पश्चिमी दीवार के पीछे एक हिंदू मंदिर में साल भर प्रार्थना करने की अनुमति की मांग करने वाली याचिकाओं पर परिसर के निरीक्षण का आदेश दिया था। स्थानीय अदालत ने पहले अधिकारियों को 10 मई तक एक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था, हालांकि, सर्वेक्षण नहीं हो सका क्योंकि मस्जिद समिति ने मस्जिद के अंदर वीडियोग्राफी का विरोध किया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने 20 मई को ज्ञानवापी मस्जिद मुकदमा सिविल कोर्ट में स्थानांतरित किया था। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ,जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पी एस नरसिंह की पीठ ने यह भी आदेश दिया कि मस्जिद समिति द्वारा कानून में वर्जित होने के कारण मुकदमा खारिज करने के लिए आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत निचली अदालत के समक्ष दायर आवेदन पर जिला जज द्वारा प्राथमिकता के आधार पर निर्णय लिया जाएगा।

    इस बीच इसका 17 मई का अंतरिम आदेश आवेदन पर निर्णय होने तक और उसके बाद आठ सप्ताह की अवधि के लिए लागू रहेगा। साथ ही संबंधित जिलाधिकारी को वुजू के पालन की समुचित व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया है।

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