ज्ञानवापी मामला- एएसआई डीजी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर किया व्यक्तिगत हलफनामा, मस्जिद कमेटी को रिज्वाइंडर दायर करने के लिए 10 दिन का समय दिया गया

Brij Nandan

1 Nov 2022 4:45 AM GMT

  • ज्ञानवापी मामला

    ज्ञानवापी मामला

    भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक ने ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपना व्यक्तिगत हलफनामा दायर कर मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण के संबंध में अदालत के निर्णय का पालन करने के लिए एएसआई की इच्छा व्यक्त की। अंजुमन मस्जिद कमेटी को एएसआई डीजी के हलफनामे पर 11 नवंबर तक जवाब दाखिल करने के लिए 10 दिन का समय दिया गया है।

    वाराणसी कोर्ट के अप्रैल 2021 के आदेश के बारे में जिसमें एएसआई को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का व्यापक सर्वेक्षण करने के लिए कहा गया था, एएसआई के डीजी ने कहा है कि अगर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ऐसा आदेश देता है तो एएसआई सर्वेक्षण करने के लिए सक्षम है।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी कोर्ट के अप्रैल 2021 के आदेश पर सितंबर 2021 में रोक लगा दी थी।

    बता दें, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 18 अक्टूबर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक को 10 दिनों में हाईकोर्ट की ओर से मांगी गई व्यक्तिगत हलफनामा दायर करने का अंतिम अवसर दिया था।

    दरअसल, हाईकोर्ट ने पिछले साल केंद्र सरकार और राज्य सरकार से हलफनामा मांगा था और उसने काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद में कार्यवाही पर रोक लगा दी थी, जिसने वाराणसी कोर्ट के एक विवादास्पद आदेश को प्रभावी ढंग से निलंबित कर दिया था। इस आदेश में वाराणसी कोर्ट ने परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था, जिससे यह यह निर्धारित किया जाए कि 17 वीं शताब्दी में ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण के लिए एक हिंदू मंदिर को आंशिक रूप से तोड़ा गया था या नहीं।

    पूरा मामला

    अंजुमन इंताज़ामिया मसाज़िद, वाराणसी ने वर्ष 1991 में स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की प्राचीन मूर्ति और 5 अन्य द्वारा वाराणसी कोर्ट के समक्ष दायर किए गए मुकदमे को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी है, जिसमें उस भूमि की बहाली का दावा किया गया है जिस पर ज्ञानवापी मस्जिद खड़ी है।

    अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद वाराणसी ने भी वाराणसी की अदालत के समक्ष कार्यवाही को चुनौती दी है जिसमें पिछले साल एएसआई सर्वेक्षण का आदेश दिया गया था। हाईकोर्ट ने पिछले साल सितंबर में उसी आदेश पर रोक लगा दी थी।

    इससे पहले, प्रतिवादी ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि याचिकाकर्ता [अंजुमन इंतज़ामिया मसाज़िद, वाराणसी] ने शुरू में आदेश VII नियम 11 (डी) सीपीसी के तहत वादी (स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की प्राचीन मूर्ति की) को खारिज करने के लिए एक आवेदन दायर किया था, हालांकि, उन्होंने काफी समय तक उस पर दबाव नहीं डाला और उपरोक्त आवेदन पर दबाव डालने के बजाय, उन्होंने लिखित बयान दाखिल करने का विकल्प चुना।

    प्रतिवादी के वकील द्वारा आगे यह तर्क दिया गया कि वाद में दलीलों के आधार पर, वाराणसी कोर्ट द्वारा मुद्दों को तय किया गया था। वकील ने यह भी प्रस्तुत किया कि विचाराधीन संपत्ति, यानी भगवान विश्वेश्वर का मंदिर प्राचीन काल से यानी सतयुग से अब तक अस्तित्व में है।

    उनका आगे यह निवेदन था कि स्वयंभू भगवान विशेश्वर विवादित ढांचे में स्थित है और इसलिए विवादित भूमि स्वयं भगवान विशेश्वर का एक अभिन्न अंग है।

    मस्जिद समिति द्वारा दिए गए इस तर्क पर कि चूंकि वाद को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के प्रावधानों द्वारा प्रतिबंधित किया गया था, इसलिए इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए। उत्तरदाताओं ने तर्क दिया कि पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र 15 अगस्त, 1947 के दिन के समान ही रहा, इसलिए पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के प्रावधान लागू नहीं किए जा सकते।

    याचिकाकर्ता के वकील:- ए.पी.सहाय, ए.के. राय, डी.के.सिंह, जी.के.सिंह, एम.ए. कादिर, एस.आई. सिद्दीकी, सैयद अहमद फैजान, ताहिरा काज़मी, वी.के. सिंह, विष्णु कुमार सिंह

    प्रतिवादी के लिए वकील: - सीएससी, एपी श्रीवास्तव, अजय कुमार सिंह, आशीष कृष्ण सिंह, बख्तियार यूसुफ, हरे राम, प्रभाष पांडे, आरएस मौर्य, राकेश कुमार सिंह, वीकेएस चौधरी, विनीत पांडे, विनीत संकल्प

    केस टाइटल - अंजुमन इंतज़ामिया मसाज़िद वाराणसी बनाम प्रथम ए.डी.जे. वाराणसी एंड अन्य [Matters Under Article 227 no. 3341 of 2017]



    Next Story