क्या आपराधिक अवमानना कार्यवाही के लंबित होने का हवाला देकर पासपोर्ट के नवीनीकरण से इनकार किया जा सकता है? गुजरात हाईकोर्ट करेगा पड़ताल

LiveLaw News Network

22 July 2022 5:24 AM

  • क्या आपराधिक अवमानना कार्यवाही के लंबित होने का हवाला देकर पासपोर्ट के नवीनीकरण से इनकार किया जा सकता है? गुजरात हाईकोर्ट करेगा पड़ताल

    गुजरात हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति एएस सुपेहिया की पीठ ने एक आवेदक के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही के लंबित होने के कारण पासपोर्ट के नवीनीकरण से इनकार करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका के आलोक में अहमदाबाद में क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी को नोटिस जारी किया है।

    याचिकाकर्ता ने दावा किया कि प्रतिवादी ने पासपोर्ट के नवीनीकरण को अस्वीकार करने के लिए पासपोर्ट अधिनियम की धारा 6(2)(एफ) का उपयोग किया था, क्योंकि याचिकाकर्ता बॉम्बे हाईकोर्ट में आपराधिक अवमानना के आरोपों का सामना कर रहा था। इस प्रकार, हाईकोर्ट इस बात की पड़ताल करेगा कि यदि आवेदक अदालत की अवमानना के आरोपों का सामना करता है तो पासपोर्ट कार्यालय पासपोर्ट के नवीनीकरण से इनकार कर सकता है या नहीं।

    याचिकाकर्ता ने 'दोषी साबित होने तक निर्दोष' के सिद्धांत का जिक्र करते हुए कहा कि उक्त प्रावधान और संबंधित नियमों ने 'कानून के उक्त बुनियादी सिद्धांत का मजाक' उड़ाया है और यह भेदभावपूर्ण एवं मनमाना और (संविधान के) अनुच्छेद 14,16 और 21 के प्रावधानों का उल्लंघन है।

    अर्जी में कहा गया है कि याचिकाकर्ता का पासपोर्ट फरवरी 2020 तक वैध था और यह अवधि समाप्त हो गई थी। पासपोर्ट का नवीनीकरण लंबित था। हालांकि, अप्रैल 2017 से, याचिकाकर्ता के खिलाफ एक आपराधिक स्वत: संज्ञान अवमानना याचिका लंबित थी। आरोप है कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने चार साल से अधिक समय से सुनवाई की तारीख नहीं दी है। तब से याचिकाकर्ता ने देश से भागने के किसी भी प्रयास के बिना भारत के बाहर कई यात्राएं कीं। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने अक्टूबर 2019 में पासपोर्ट के नवीनीकरण के लिए आवेदन किया जिसे बिना किसी आधिकारिक पत्राचार के खारिज कर दिया गया। वर्ष 2022 में पुन: आवेदन करने पर याचिकाकर्ता के आवेदन को फिर से खारिज कर दिया गया।

    प्रतिवादी प्राधिकारी के निर्णय से व्यथित, याचिकाकर्ता ने मुख्य तर्क के साथ तत्काल याचिका दायर की कि प्राधिकरण ने अधिनियम की धारा 6(2)(एफ) का गलत इस्तेमाल किया था।

    याचिकाकर्ता का एक अन्य तर्क यह भी है कि आपराधिक अवमानना के लिए अधिकतम सजा छह महीने की साधारण कारावास या दो हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों है। इस प्रकार, याचिकाकर्ता पर एक छोटे से अपराध का आरोप लगाया गया है। यह भी दलील दी गयी है कि कोर्ट की आपराधिक अवमानना न तो आईपीसी के अनुसार एक आपराधिक अपराध था और न ही यह एक अकेली आपराधिक कार्यवाही है।

    याचिकाकर्ता ने 'दलेर सिंह बनाम भारत सरकार' पर भरोसा जताते हुए दोहराया कि पासपोर्ट को केवल इस आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। 'मेनका गांधी बनाम भारत सरकार 1978 (1) एससीसी 248' का भी संदर्भ दिया गया था, जहां सुप्रीम कोर्ट ने प्राकृतिक न्याय के एक पहलू के रूप में 'न्यायपूर्ण व्यवहार' पर जोर दिया था और यह माना था कि पासपोर्ट से इनकार या जब्त करना बुनियादी मानवाधिकारों में हस्तक्षेप करता है।

    मामले की सुनवाई 26 अगस्त के लिए सूचीबद्ध की गयी है।

    केस शीर्षक: विश्वास सुधांशु भांबुरकर बनाम क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी

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