जीवन के अधिकार के तहत मेडिकल प्रतिपूर्ति की गारंटी: गुजरात हाईकोर्ट ने सेवानिवृत्त प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक को राहत दी

Shahadat

4 Aug 2022 10:27 AM IST

  • गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य के अधिकारियों को सेवानिवृत्त प्राथमिक स्कूल शिक्षक (याचिकाकर्ता) द्वारा किए गए पेसमेकर प्रत्यारोपण के लिए मेडिकल खर्चों की प्रतिपूर्ति (Medical Reimbursement) करने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने उक्त निर्देश यह देखते हुए दिया कि मेडिकल प्रतिपूर्ति जीवन के अधिकार के रूप में गारंटीकृत अधिकार है।

    जस्टिस बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता गुजरात सिविल सेवा (चिकित्सा उपचार) नियम, 2015 के तहत प्रतिपूर्ति का हकदार होगा।

    बेंच ने कहा,

    "याचिकाकर्ता के अनुदान सहायता प्राप्त स्कूल में प्राथमिक शिक्षक के रूप में सेवा करने के बावजूद अब उसे इस आधार पर मेडिकल प्रतिपूर्ति से इनकार नहीं किया जा सकता कि अनुदान में काम करने वाले प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक के लिए कोई नीति नहीं है।"

    प्रतिवादियों के याचिकाकर्ता के 4,17,385 रुपये के मेडिकल खर्च की प्रतिपूर्ति करने से इनकार करने पर उक्त याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ता का सिम्स अस्पताल में पेसमेकर लगाया गया था। हालांकि, जिला प्राथमिक शिक्षा अधिकारी ने इस आधार पर प्रतिपूर्ति को खारिज कर दिया कि अनुदान प्राप्त प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों के मामले में प्रतिपूर्ति की कोई नीति नहीं है।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि मेडिकल प्रतिपूर्ति से इनकार करने वाले प्रतिवादी अवैध हैं, क्योंकि याचिकाकर्ता सेवानिवृत्त कर्मचारी है, जो राज्य से पेंशन प्राप्त कर रहा है। इसलिए, वह गुजरात सिविल सेवा (मेडिकल ट्रीटमेंट) नियम, 2015 के तहत सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी है। इसके अलावा, इस न्यायालय की डिवीजन बेंच के अनुसार, राज्य पेंशन प्राप्त करने वाले प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षकों के बीच भेदभाव नहीं कर सकता।

    हाईकोर्ट ने कहा कि अनुदान सहायता स्कूल में प्राथमिक शिक्षक के रूप में याचिकाकर्ता के कद के बावजूद, इस आधार पर सहायता से इनकार नहीं किया जा सकता।

    हाईकोर्ट ने एलपीए नंबर 32/1998 मामले में डिवीजन बेंच के आदेश पर व्यापक रूप से भरोसा किया। इस मामले में डिवीजन बेंच ने कहा था,

    "चाहे प्राथमिक विद्यालयों में या महाविद्यालयों/उच्च माध्यमिक विद्यालयों/माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों के कार्य का मेडिकल भत्ते के भुगतान की आवश्यकता और उद्देश्य के साथ कोई संबंध नहीं है। मेडिकल सहायता की आवश्यकता सभी के लिए समान है। संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत भारत में न तो किसी के साथ असमान व्यवहार किया जा सकता है, न ही असमानों के साथ समान व्यवहार किया जा सकता है, न ही राज्य मनमाने ढंग से अनुमेय वर्गीकरण के तहत कार्य कर सकता है। हमें प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों को समान रूप से स्थित सरकारी मान्यता प्राप्त और सरकारी सहायता प्राप्त कॉलेजों/उच्च माध्यमिक विद्यालयों/माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों की तुलना में अलग-अलग वर्गीकृत करने के लिए वर्गीकरण के लिए कोई आधार नहीं मिलता है।

    इसके अतिरिक्त, हाईकोर्ट ने बताया कि राज्य ने याचिकाकर्ता को प्रतिपूर्ति प्रदान की थी, जब वह 2007 में अलग अस्पताल में ऐसी ही प्रक्रिया से गुजरी थी। राज्य ने इस तथ्य से इनकार नहीं किया, इसलिए यह तर्क नहीं दिया जा सकता कि प्राथमिक शिक्षकों को मेडिकल प्रतिपूर्ति नीति द्वारा कवर नहीं किया गया था।

    पंजाब राज्य बनाम राम लुभया बग्गा (1998) 4 एससीसी 117 का संदर्भ दिया गया ताकि यह पुष्टि हो सके कि मेडिकल प्रतिपूर्ति जीवन के अधिकार के रूप में गारंटीकृत अधिकार है। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने समझाया कि नागरिकों के स्वास्थ्य को बनाए रखना कल्याणकारी राज्य के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि इससे राज्य को अपने सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में लाभ होगा।

    तदनुसार, याचिका की अनुमति दे दी गई।

    केस नंबर: सी/एससीए/17320/2021

    केस टाइटल: उषाबेन दयाशंकर शुक्ला बनाम गुजरात राज्य

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