गुजरात हाईकोर्ट ने उप-जातियों में अंतर के कारण पति को छोड़ने वाली पत्नी को पति को 10 हज़ार रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया

Sharafat

11 May 2022 8:47 AM GMT

  • गुजरात हाईकोर्ट ने उप-जातियों में अंतर के कारण पति को छोड़ने वाली पत्नी को पति को 10 हज़ार रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया

    गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महिला को अपने पति को 10 हज़ार रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसने अपने पति को अपने परिवार के प्रभाव में इस आधार पर छोड़ दिया कि वह एक अलग उप जाति से संबंधित है।

    जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस की खंडपीठ ने कहा, " हमें यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण लगता है कि शिक्षित जोड़े को इस तरह से रिश्ते को खत्म करना पड़ा क्योंकि माता-पिता ने इसका मज़बूती से विरोध किया और महिला इस तरह के प्रभाव में है।"

    पति ने बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) याचिका दायर करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी पत्नी अपने माता-पिता की अवैध कस्टडी में है और पति ने अपनी याचिका में उसे अदालत के समक्ष पेश करने की मांग की।

    अदालत के आदेश के अनुसार, वह 27 अप्रैल को अदालत के समक्ष पेश हुई और उसने याचिकाकर्ता के साथ अपनी शादी को स्वीकार किया, हालांकि, उसने स्पष्ट रूप से कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि वे दोनों पटेल समुदाय से हैं, उनकी उपजाति अलग है और इसलिए उसके लिए इस शादी को जारी रखना संभव नहीं होगा।

    यह देखते हुए कि पत्नी ने अपने पति को छोड़ने से पहले अपनी शादी में चार साल बिताए, अदालत ने इसे बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बताया कि जाति और उप-जाति के इस हठधर्मी रवैये और संकीर्ण दृष्टि ने युवाओं का जीवन बर्बाद कर दिया है।

    बेंच अपने द्वारा बार-बार उठाए गए प्रश्नों से कुछ भी समझ नहीं पा रही थी कि आखिर उसने (पत्नी) रिश्ते को जारी नहीं रखने का फैसला क्यों किया?

    बेंच ने यह माना कि याचिकाकर्ता ने अपनी सभी आशाओं, आकांक्षाओं और सपनों के साथ इस अदालत का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन उसे इस नियति को पूरा करना था। यह देखते हुए कि पत्नी ने अनुचित आधार और बिना किसी कारण अपने पति को छोड़ा है, अदालत ने महिला को अपने पति को 10,हज़ार रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि यह भुगतान चार सप्ताह के भीतर किया जाना है।

    इस मामले में पिछले आदेशों में से एक में कोर्ट ने यहां तक ​​​​कहा कि जो लोग खुद को बुजुर्ग कहते हैं, और युवा लोगों के जीवन का मार्गदर्शन करते हैं, वे सबसे गैर-जिम्मेदार तरीके से काम कर रहे हैं। कोर्ट ने इसे काफी दुर्भाग्यपूर्ण कहा है कि वे ऐसा करके युवा पीढ़ी के जीवन को प्रभावित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।

    इसी के साथ याचिका का निस्तारण कर दिया गया।

    केस का शीर्षक - पारेख जैसलकुमार विनोदभाई बनाम गुजरात राज्य

    साइटेशन :

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