गुजरात हाईकोर्ट का फैसला, कानून की डिग्री रखने वाले पूर्ण/अंशकालिक नौकरीपेशा और पेशेवर दे सकते हैं बार की नामांकन परीक्षा

LiveLaw News Network

8 Nov 2020 5:00 AM GMT

  • गुजरात हाईकोर्ट का फैसला, कानून की डिग्री रखने वाले पूर्ण/अंशकालिक नौकरीपेशा और पेशेवर दे सकते हैं बार की नामांकन परीक्षा

    Gujarat High Court

    गुजरात हाईकोर्ट ने शुक्रवार (06 अक्टूबर) को गुजरात बार काउंसिल (नामांकन) नियमों के नियम 1 और 2 को कमजोर किया, और एलएलबी डिग्री प्राप्त अन्य पेशेवरों के लिए बार में प्रवेश करने का रास्ता बनाया।

    चीफ जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ के निर्णय ने प्रभावी रूप से, पेशेवरों / नौकरीपेशा व्यक्तियों को वकील के रूप में नामंकित होने और वकील बनने की योग्यता प्राप्त करने के लिए ऑल इंडिया बार टेस्ट में शामिल होने का रास्ता साफ किया है।

    खंडपीठ ने आदेश दिया, "हम बार काउंसिल ऑफ गुजरात (एनरोलमेंट) रूल्स के रूल 1 और 2 को क्रमशः पढ़ते हैं, ताकि पढ़ें कि कोई व्यक्ति पूर्ण या अंशकालिक सेवा या रोजगार में हो सकता है या किसी व्यापार, व्यवसाय या पेशे में संलग्न हो सकता है, जो अन्यथा एक वकील के रूप में भर्ती होने के लिए योग्य है, एक वकील के रूप में भर्ती किया जाएगा, हालांकि, ऐसे व्यक्ति का नामांकन प्रमाण पत्र बार काउंसिल ही रखेगा, और काउंस‌िल के पास तब तक जमा रहेगा, जब तक संबंधित व्यक्ति यह घोषणा नहीं करता है कि नियम 2 में व्यक्‍त परिस्थितियां समाप्त हो गई हैं और उसने अभ्यास शुरू कर दिया है।"

    [नोट: बीसीजी नामांकन नियमों के नियम 1 के अनुसार, एक व्यक्ति जो अन्यथा एक वकील के रूप में भर्ती होने के लिए योग्य है, लेकिन या तो पूर्ण या अंशकालिक सेवा या रोजगार में है या किसी भी व्यापार, व्यवसाय या पेशे में है, एडवोकेट के रूप में भर्ती नहीं किया जाएगा।

    बीसीजी नामांकन नियम के नियम 2 के अनुसार, अधिवक्ता के रूप में भर्ती होने के लिए आवेदन करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने आवेदन में एक घोषणा करनी होगी कि वह पूर्ण या अंशकालिक सेवा या रोजगार में नहीं है और वह किसी भी व्यापार, व्यवसाय या पेशे में संलग्न नहीं है.....।]

    पृष्ठभूमि

    गुजरात हाईकोर्ट ने 06 अक्टूबर को एक अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसके तहत एक नौकरीपेशा महिला को अखिल भारतीय बार परीक्षा (एआईबीई) में शामिल होने होने की अनुमति दी गई थी।

    एलएलबी डिग्री धारक ट्विंकल मंगाओंकर किसी अन्य पेशे से जुड़ी हुई थीं। परिवार की एक मात्र कमाऊ सदस्य होने के नाते, उन्होंने अदालत से प्रार्थना की थी था कि वह अपना वर्तमान पेशा नहीं छोड़ सकती (जैसा कि बीसीजी नियमों के तहत आवश्यक था)।

    [नोट: उन्होंने हाईकोर्ट के समक्ष वचन दिया था कि वह एआईबीई पास करने के बाद अपनी वर्तमान नौकरी छोड़ देंगी।]

    इस पर, चीफ जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने बार काउंसिल ऑफ गुजरात से उनका आवेदन (एआईबीई के लिए) स्वीकार करने के लिए कहा था और परिषद को निर्देश दिया था कि वह रिट आवेदक को उसके वर्तमान रोजगार से इस्तीफा देने के लिए न कहे।

    न्यायालय ने अपने शुक्रवार के फैसले में कहा कि "बार काउंसिल ऑफ गुजरात ने बहुत चालाकी से काम किया ताकि इस न्यायालय द्वारा 06.10.2020 को पारित आदेश कमजोर हो जाए या उसे प्रभाव न दिया जाए।"

    न्यायालय ने पाया कि बार काउंसिल ऑफ गुजरात ने 14.10.2020 की शाम (06 अक्टूबर को कोर्ट के अंतरिम आदेश के अनुपालन में) रिट आवेदक (ट्विंकल मंगाओंकर) को अनंतिम नामांकन प्रमाण पत्र जारी किया।

    आदेश में कहा गया, "हालांकि, रिट आवेदक के लिए निराशाजनक रहा कि, वह अखिल भारतीय बार परीक्षा के लिए पंजीकृत करने में सक्षम नहीं ‌थी क्योंकि प्रमाण पत्र में उल्लेखित नामांकन संख्या ऑनलाइन पंजीकरण प्रणाली द्वारा स्वीकार नहीं की जा रही थी।"

    कोर्ट ने कहा कि बार काउंसिल द्वारा आम तौर पर जारी किया गया एनरोलमेंट नंबर G/ 123-2020 या G/ 1234-2020 की तरह होता है, अर्थात 'जी' को छोड़कर अंक शाामिल होते हैं।

    कोर्ट ने कहा, "बार काउंसिल ऑफ गुजरात ने जी / प्रोविजनल- I / 2020 एनरोलमेंट नंबर जारी किया, जिसे ऑनलाइन पंजीकरण प्रणाली द्वारा स्वीकार नहीं किया गया।"

    इसके अलावा, बार काउंसिल ऑफ इंडिया की ओर से कोर्ट में तर्क दिया गया था कि यदि रिट आवेदक को एडवोकेट के रूप में दाखिला लेने की अनुमति दी गई तो ऐसे मामलों की बाढ़ आ सकती है।

    न्यायालय का निर्णय

    मुख्य प्रश्न जो न्यायालय के समक्ष आया था कि क्या उसे बार काउंसिल ऑफ गुजरात (एनरोलमेंट) रूल्स के रूल 1 और 2 को रद्द करना चाहिए जो संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है या इसे 'नीचे पढ़ने' या 'में पढ़ने' के सिद्धांत को अपनाते हुए वैधता को बरकरार रखना चाहिए, ताकि नियम को प्रभावी और व्यावहारिक बनाया जा सके और नियम के उद्देश्यों की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सके।

    कोर्ट ने विचार किया कि स्टेट बार काउंसिल (एनरोलमेंट) रूल्स के रूल 1 और 2 और बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के रूल्स 49 के उद्देश्य क्या हैं? ऐसा प्रतिबंध क्यों लगाया जाना चाहिए? कानून क्यों किसी विशेष बार काउंसिल के साथ अधिवक्ता के रूप में नामांकित व्यक्ति को किसी अन्य व्यवसाय को करने अनुमति नहीं देता है?

    न्यायालय ने विशेष रूप से कहा, "यह कहना बहुत अधिक है कि राज्य बार काउंसिल के साथ वकील के रूप में को नामांकित होने के इच्छुक व्यक्ति से किसी अन्य व्यवसाय, व्यवसाय या नौकरी को छोड़ने के लिए शुरु में ही पूछा जाना चाहिए, उसके बाद ही उसे राज्य बार काउंसिल के रोल पर नामांकित किया जा सकता है।"

    कोर्ट ने आगे कहा, "हम एक ऐसे मामले से निपट रहे हैं, जिसमें, एक मां, जो की घर की एक मात्र कमाने वाली सदस्य है, हमारे सामने यह कहते हुए आती है कि बार काउंसिल प्रवेश परीक्षा को क्लियर करने के बाद जल्द ही एक वकील के रूप में वह नामांकित हो जाएगी, फिर वह शपथ पत्र पर घोषणा करेगी कि उसने नौकरी छोड़ दी है। महिला असहाय स्थिति में है। अगर उसने नौकरी छोड़ दी, जबकि वह एक मां और एकमात्र कमाऊ सदस्‍य है, और भगवान न करे, अगर वह ऑल इंडिया बार परीक्षा पास नहीं कर पाई तो उसके पास आजीविका का कोई भी साधन ही नहीं बचेगा।"

    इसी के अनुसार कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ गुजरात (एनरोलमेंट) रूल्स के रूल 1 और 2 को पढ़ते हुए गुजरात बार काउंसिल के साथ-साथ बार काउंसिल ऑफ इंडिया को निर्देश दिया कि न्यायालय द्वारा बताई गई बातों के अनुरूप नियमों को लागू करने के बाद उसी के अनुसार कार्य करें और रिट आवेदक को अनंतिम सनद जारी करें ताकि वह बार काउंसिल ऑफ इंडिया की परीक्षा में शामिल हो सके।

    यह भी निर्देशित किया गया कि बार काउंसिल ऑफ गुजरात रिट आवेदक को वैसा ही एनरोलमेंट नंबर जारी करेगे जैसा अन्य आवेदकों को दिया गया है।

    केस टाइटल- ट्विंकल राहुल मंगाओकर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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