बार काउंसिल के अधिकारों को चुनौती, गुजरात हाईकोर्ट ने रद्द की याचिका
LiveLaw News Network
26 March 2020 3:13 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने एक रिट याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें एडवोकेट्स एक्ट, 1961और बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स, 1975 के तहत वकीलों के नामांकन और प्रैक्टिस सर्टिफिकेट जारी करने के लिए निर्धारित शुल्क वसूल करने और बढ़ाने के बार काउंसिल ऑफ इंडिया और बार काउंसिल ऑफ गुजरात के अधिकार को चुनौती दी गई थी।
गुजरात हाईकोर्ट ने हालांकि बार काउंसिल ऑफ इंडिया की नामांकन फीस वसूलने की शक्ति पर रोक लगा दिया है, लेकिन याचिका में पूछे गए एक अन्य सवाल कि क्या ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन आयोजित किया जा सकता है, का जवाब देने से इनकार कर दिया है, क्योंकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश किया चुका है।
वैधानिक प्रावधान
बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स (इसके बाद, 'रूल्स') का भाग VI वकीलों के कामकाज से संबंधित है; अध्याय- III विशेष रूप से राइट टू प्रैक्टिस की शर्तों को नियंत्रित करता है और ये नियम एडवाकेट्स अधिनियम (इसके बाद, 'अधिनियम') की धारा 49 (1) (ah) के अनुसार बनाए गए हैं।
अधिनियम की धारा 24 उन शर्तों को सामने रखती है, जो किसी व्यक्ति को राज्य के रोल पर वकील के रूप में भर्ती होने की अनुमति देती है और अधिनियम की धारा 30 में कहा गया है कि प्रत्येक वकील, जिसका नाम स्टेट रोल में दर्ज किया गया है, वह उसे पूरे क्षेत्र में प्रैक्टिस करने का हकदार है, जहां तक अधिनियम लागू होता है।
भाग- VI के नियम 9 से 11, नियमों के अध्याय- III को बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने संकल्प संख्या 73/2010 के जरिए डाला था। इस प्रस्ताव ने ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन के संचालन का निर्धारण किया गया, जिसमें सभी वकीलों को प्रैक्टिस सर्टीफिकेट प्राप्त करने के लिए, शामिल होना अनिवार्य था।
नियम 9 में कहा गया है कि कोई भी वकील को ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन (एआईबीई) सफलतापूर्वक पास किए बिना प्रैक्टिस का हकदार नहीं होगा और यह शैक्षणिक वर्ष 2009-2010 से स्नातक करने वाले सभी छात्रों के लिए अनिवार्य होना चाहिए। जबकि नियम 10 एआईबीई के कार्यान्वयन के बारे में विवरण देता है, नियम 11 प्रैक्टिस के प्रमाण पत्र पर चर्चा करता है, जिसे एआईबीई पास करने पर एक वकील को जारी किया जाना है।
मामले के तथ्य
याचिका में मूलतः बार काउंसिल ऑफ गुजरात को एक रिट ऑफ मैंडमस जारी करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने पंजीकरण और नामांकन के लिए आवेदन दिया था, जिसके लिए उसे 750 रुपए के नामांकन शुल्क जमा किया था, उसकी मांग की थी आवेदन को उसी शुल्क पर संसाधित किया जाए।
उसकी दूसरी मांग यह थी कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया और बार काउंसिल ऑफ गुजरात को रिट जारी किया जाए कि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 30 के तहत बिना किसी देरी के नामांकन के बाद प्रमाण पत्र जारी किया जाए।
भाग- VI में नियम 9 से 11 के लिए तीसरा निवेदन, नियमों के अध्याय-III को गैर-कानून घोषित किया जाए। अधिनियम सेक्शन 24 और 30 के साथ-साथ संविधान के अनुच्छेट 14, 19 (1) (जी) और 21 को संशोधन के जरिए जोड़ा गया है।
याचिकाकर्ता, जिसके नामांकन को आवेदन शुल्क जमा न करने के कारण बार काउंसिल ऑफ गुजरात द्वारा संसाधित नहीं किया गया है, ने कहा है कि नियमों की नियम 9 से 11 की वैधता को चुनौती दी जानी चाहिए, क्योंकि बीसीआई और बीसीजी अधिनियम में तया मानदंडों से परे जाकर पात्रता नियाम नहीं बना सकती हैं।
निर्णय
गुजरात उच्च न्यायालय की खंडपीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति आशुतोष जे शास्त्री शामिल थे, याचिका को खारिज कर दिया है और याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता की अनुभवहीनता पर तीखी टिप्पणी की है।
1. अखिल भारतीय बार परीक्षा के लिए चुनौती।
बेंच ने उल्लेख किया कि माननीय एआईबीई को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई है। 18 मार्च, 2016 के आदेश के अनुसार संविधान पीठ को मामले पर विचार करना, जिस सबंध में आदेश स्पेशल लीव पिटीशन (सिविल) 22337/2008 के तहत जारी किया गया था।
उक्त आदेश के आलोक में, हाईकोर्ट की बेंच ने एआईबीई सवाल में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया।
2. 750 रुपए से ज्यादा नामांकन शुल्क की मांग को चुनौती देने पर
खंडपीठ ने उल्लेख किया कि अधिनियम की धारा 24 (1) (एफ) के तहत स्टांप शुल्क और नामांकन शुल्क की शर्तें दी गई हैं। साथ ही राज्य बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को अधिनियम की धारा 49 के साथ पठनीय धारा 28 के तहत नियम बनाने का अधिकार है।
इसलिए, शुल्क की दर में की गई वृद्धि का आदेश में उचित है और सामंजस्यपूर्ण निर्माण के सिद्धांतों के अनुप्रयोग से यह विचार किया गया कि अधिनियम और नियमों में कोई टकराव नहीं है।
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