स्कूल खुलने तक निजी स्कूलों को फीस वसूलने से रोकने के मामले में सरकारी आदेश को गुजरात हाईकोर्ट ने रद्द किया

LiveLaw News Network

6 Aug 2020 12:53 PM GMT

  • स्कूल खुलने तक निजी स्कूलों को फीस वसूलने से रोकने के मामले में सरकारी  आदेश को गुजरात हाईकोर्ट ने रद्द किया

    Gujarat High Court

    गुजरात हाईकोर्ट ने उस सरकारी आदेश को रद्द कर दिया है,जिसके तहत सरकार ने निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों से कहा था कि जब तक स्कूल फिर से नहीं खुल जाते हैं,तब तक वो ट्यूशन फीस नहीं वसूल सकते हैं। पीठ ने कहा कि इस तरह की निषेधाज्ञा छोटे संस्थानों को बंद करने के लिए मजबूर कर देगी।

    शुक्रवार को सुनाए गए फैसले में अदालत ने 16 जुलाई को जारी एक सरकारी प्रस्ताव (जीआर) के तीन खंडों को रद्द कर दिया है। जिसका पहला खंड यह था कि किसी भी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल द्वारा ट्यूशन फीस या किसी भी वैकल्पिक गतिविधि के संबंध कोई शुल्क तब तक नहीं वसूला जाएगा,जब तक स्कूलों द्वारा आॅनलाइन कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है। दूसरा, यह कि स्कूलों के शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के वेतन में किए गए खर्च पर उस समय विचार किया जाए,जब अगले वर्ष की फीस का निर्धारण किया जाएगा। तीसरा,यदि फीस का भगुतान पहले ही कर दिया गया है तो उसे उस फीस में समायोजित किया जाएगा जो स्कूलों के फिर से खुलने के बाद देय होगी।

    उक्त जीआर एक आदेश के तहत जारी किया गया है,जो गुजरात के राज्यपाल के नाम पर जारी है। इस सरकारी प्रस्ताव में दावा किया गया है कि ''शैक्षणिक संस्थान धर्मार्थ संस्थान हैं और इनकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य बिना मुनाफाखोरी के समाज को शिक्षा प्रदान करना है।'' यह भी कहा गया है कि ''इन संस्थानों को छात्रों/माता-पिता को अधिकतम सहयोग देना चाहिए, खासतौर पर जब वे वर्तमान परिस्थितियों में अनिश्चित आर्थिक परिस्थितियों से गुजर रहे हैं।''

    मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि महामारी ने बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य संकट को नहीं बल्कि आर्थिक अस्थिरता को भी जन्म दिया है। हजारों लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है और हजारों अन्य कम वेतन पर काम कर रहे हैं।

    पीठ ने कहा कि '

    'हम ऐसी स्थिति में हैं जहां किसी की भी अवस्था या संकट को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हम समझते हैं कि स्कूलों को अपने कर्मचारियों के वेतन और कार्य करने के लिए एक निश्चित राशि की आवश्यकता है, लेकिन यह भी याद रखना महत्वपूर्ण है कि इस समय सभी परिवार आर्थिक रूप से स्थिर नहीं हैं।''

    न्यायालय का विचार था कि

    '' एक तरफ बच्चों को उचित शिक्षा मिलना और उनके अभिभावकों के हित हैं और दूसरी ओर स्कूलों को जारी रहने की अनुमति देना भी जरूरी है। ऐसे में दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाना चाहिए।''

    दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि ''फिलहाल बच्चे हमारी पहली प्राथमिकता हैं''। इसी के साथ पीठ ने दक्षिण कोरिया पर किए गए एक बड़े अध्ययन का हवाला दिया। जिसे अमेरिका में रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र द्वारा प्रकाशित किया गया था। इस अध्ययन में पाया गया कि 10 से 19 वर्ष की आयु के बच्चों में वायरस उसी दर से फैलता है,जिस दर से वयस्कों में फैलता है।

    पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि

    ''विज्ञान पर भरोसा करते हुए और आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए, स्कूलों को फिर से खोलना और कक्षाओं को शुरू करना अभी दूर की बात है। हमारे बच्चों की सुरक्षा और भलाई के लिए, शिक्षा को दूरस्थ रूप से वितरित किया जाना चाहिए।''

    पीठ ने कहा कि ''व्यक्तियों के रूप में, उनके प्रयासों और हार्डवर्क को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। वहीं पेशेवरों के रूप में, उन्हें उनके समय और सेवा के लिए उचित भुगतान किया जाना चाहिए।'' इस प्रकार यह स्कूलों के लिए स्वीकार्य होगा कि वह आॅनलाइन कक्षाओं के लिए माता-पिता से एक उचित ट्यूशन शुल्क चार्ज कर सकें।''

    पीठ ने यह भी कहा कि ''शोधकर्ताओं और चिकित्सकों का मानना है कि स्कूल से लंबे समय तक गायब रहना बच्चों के संज्ञानात्मक और सामाजिक विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव ड़ाल सकता है।'' पीठ ने माता-पिता से आग्रह किया है कि उन्हें इस बात को स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनके बच्चे की ऑनलाइन शिक्षा स्कूलों की तरफ से किया जाने वाला एक व्यर्थ प्रयास नहीं है। वहीं स्कूलों को भी उनकी सेवा के लिए उचित भुगतान किया जाना चाहिए।''

    पीठ ने यह भी कहा कि, ''दूसरी ओर स्कूलों को अपने छात्रों के परिवारों की आर्थिक अस्थिरता के बारे में भी सचेत होना चाहिए। कई माता-पिता की नौकरी छूट गई है या कई के वेतन में कटौती कर दी गई है। ऐसे में उनसे उन सेवाओं का पैसा लेना अनुचित होगा जो सेवाएं निलंबित कर दी गई हैं(जैसे बस, खेल, एक्टिविटी, स्टेशनेरी आदि)।''

    पीठ ने कहा है कि उन्हें अगले कुछ महीनों के लिए गैर-लाभकारी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। वहीं मासिक आधार पर या किस्तों में फीस का भुगतान करने की अनुमति दी जानी चाहिए ताकि अभिभावकों पर कम बोझ पड़े।

    पीठ ने स्पष्ट किया कि ''पिछले कुछ महीनों से जीवन पूरी तरह से ट्रैक से उतर गया है। इसलिए बच्चों को सबसे अधिक निरंतरता और दिनचर्या की आवश्यकता होती है ताकि उन्हें यह महसूस हो सके कि जीवन वापस पटरी पर आ गया है। बच्चों को सामान्य स्थिति का अहसास कराने के लिए स्कूल सबसे अच्छा विकल्प है, भले ही स्कूलिंग ऑनलाइन हो।''

    निर्णय में उन बिंदुओं को प्रस्तुत किया गया है जो एक सौहार्दपूर्ण समाधान लाने के उद्देश्य से राज्य सरकार के साथ-साथ गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों के महासंघ को भी अपने ध्यान में रखने चाहिए। जो इस प्रकार हैं-

    1-सभी हितधारकों के बीच संतुलन की आवश्यकता है। एक तरफ छात्रों और/ परिवारों के हित हैं और दूसरी तरफ शिक्षण समुदाय के हित हैं।

    2-महामारी द्वारा निर्मित स्थिति के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए सभी हितधारकों और पूरे समुदाय को मिलकर काम करने की जरूरत है। इससे लड़ने के लिए एकजुट होने की जरूरत है। जबकि सरकार के इस कार्य का प्रभाव यह पड़ेगा कि वह समाज को वर्गों में विभाजित कर देगा।

    3-स्कूलों को ट्यूशन फीस के अलावा किसी भी तरह का शुल्क नहीं लेना चाहिए। पाठ्येतर गतिविधियों के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाना चाहिए।

    4-ट्यूशन फीस वेतन, इस्टैब्लिश्मेंट और पाठयक्रम गतिविधियों और लाॅकडाउन के दौरान भी होने वाले रखरखाव के खर्चों को कवर करती है।

    5-गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को सरकार से कोई धन प्राप्त नहीं होता है। वह अपने दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से फीस पर निर्भर हैं।

    6-छोटे संस्थानों से यह अपेक्षा करना कि वह बिना ट्यूशन फीस के भी अपने स्वंय के खर्चों को वहन कर लेंगे,ठीक नहीं है। इससे कई संस्थान स्थायी रूप से बंद होने के लिए मजबूर हो जाएंगे। अगर ऐसे संस्थान बंद हो जाते हैं, तो ऐसे स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की किस्मत दांव पर लग जाएगी। ऐसे में जब स्कूल ओपन होंगे तो ऐसे छात्रों के माता-पिता के पास एक ही विकल्प होगा कि वह अपने बच्चों का दाखिला उन बड़े स्कूलों में कराएं,जो ज्यादा फीस वसूलते हैं।

    7-यदि शिक्षण एक महान और धर्मार्थ कारण है, जैसा कि कथित प्रस्ताव या जीआर में कहा गया है, तो क्यों नहीं राज्य को कॉलेजों की ट्यूशन फीस से भी छूट देने के लिए कदम उठाने चाहिए? फिर यह छूट सभी शैक्षणिक संस्थानों, स्कूलों और कॉलेजों, दोनों के लिए क्यों नहीं होनी चाहिए? उदाहरण के लिए, राज्य द्वारा स्थापित सोसायटी और ट्रस्ट द्वारा कई मेडिकल कॉलेज संचालित किए जा रहे हैं। राज्य को क्यों नहीं ऐसे मेडिकल कॉलेजों और अन्य निजी मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों की फीस में भी छूट देनी चाहिए?

    8-इन संस्थानों को चालू रखने के लिए अभिभावकों को ट्यूशन फीस का भुगतान करना होगा। किस्तों में या मासिक आधार पर फीस के भुगतान की व्यवस्था की जा सकती है। लेकिन ट्यूशन फीस का पूरा भुगतान न करने से शिक्षा का स्तर प्रभावित होगा।

    9-ऐसे परिवारों का क्या होगा, जहां छात्रों के माता-पिता, खुद शिक्षण बिरादरी से हैं। उक्त जीआर सभी के लिए अनिश्चितता पैदा करेगा।

    10-वर्तमान में, स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करना शुरू कर दिया है, लेकिन कब तक स्कूल इसे जारी रख पाएंगे, विशेष रूप से छोटे संस्थान।

    पीठ ने राज्य सरकार से अनुरोध किया है कि वह बिना सहायता प्राप्त निजी स्कूलों के संघ के पदाधिकारियों के साथ बैठक करे और कुछ ऐसा समाधान निकालने की कोशिश करें जो स्वभाव से न्यायसंगत हो।

    आदेश की काॅपी डाउनलोड करें।



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