'दुनिया में मां के समान कोई जीवनदाता नहीं': गुजरात हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की को 17 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति देते समय 'स्कंद पुराण' का हवाला दिया

Sharafat

11 Sept 2023 2:13 PM IST

  • दुनिया में मां के समान कोई जीवनदाता नहीं: गुजरात हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की को 17 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति देते समय स्कंद पुराण का हवाला दिया

    गुजरात हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह एक नाबालिग लड़की की 17 सप्ताह की गर्भावस्था को मेडिकल रूप से समाप्त करने की अनुमति दी।

    जस्टिस समीर दवे ने अपने आदेश में हमारे समाज में माताओं के महत्व पर जोर देने के लिए हिंदू धार्मिक ग्रंथ स्कंद पुराण सबसे बड़े मुखपुराण के निम्नलिखित श्लोक का उल्लेख किया:

    "नास्ति मातृसमा छाया नास्ति मातृसमा गतिः। नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा॥"

    अनुवाद: मां के समान इस संसार में कोई छाया, आश्रय और सुरक्षा नहीं है, मां के समान इस संसार में कोई जीवन देने वाली नहीं है।

    महत्वपूर्ण बात यह है कि गर्भपात की याचिका को अनुमति देने से पहले, अदालत ने मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए मौखिक रूप से टिप्पणी की कि नाबालिग लड़की के माता-पिता को उस पर गर्भपात के लिए दबाव नहीं डालना चाहिए।

    लड़की के पिता द्वारा दायर याचिका में यह कहा गया था कि लड़की और आरोपी/लड़का (उम्र 22 वर्ष) ने शारीरिक संबंध बनाए, जिसके कारण वह गर्भवती (अब 16-17 सप्ताह की गर्भावस्था हो गई।)

    अदालत के समक्ष लड़की के पिता के वकील ने कहा कि आरोपी ने यह जानते हुए भी संबंध बनाए रखा कि वह गर्भवती है और पिता को गर्भावस्था के बारे में तब पता चला जब उसने लड़की के मोबाइल में प्रेगनेंसी किट की इमेज देखी।

    इसके अलावा वकील ने यह भी कहा कि यदि गर्भावस्था को समाप्त नहीं किया गया तो लड़की के परिवार की छवि खराब हो जाएगी और इससे परिवार की अन्य लड़कियों की शादी की संभावनाएं भी प्रभावित होंगी। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि माता-पिता अपनी बेटी की शादी आरोपी/लड़के से करने के इच्छुक नहीं हैं।

    दूसरी ओर, प्रतिवादी नंबर 6-मूल आरोपी (POCSO अधिनियम के तहत दर्ज) की ओर से पेश वकील ने कहा कि मूल आरोपी पीड़िता से शादी करने और पीड़िता के साथ-साथ होने वाले बच्चे की सभी जिम्मेदारियों को स्वीकार करने के लिए तैयार है।

    उनकी ओर से यह भी कहा गया कि दोनों पक्षों के बीच विवाद जाति से संबंधित है और पीड़िता कभी भी अपने मेडिकल गर्भपात के लिए सहमत नहीं हुई है और वर्तमान याचिका केवल उसके माता-पिता के दबाव के कारण दायर की गई है।

    सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए पीड़िता के बयान के साथ-साथ पुलिस और पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट पर विचार करते हुए न्यायालय की यह राय थी कि पीड़ित लड़की को अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी के वकील द्वारा उठाई गई आपत्ति का इस तथ्य के मद्देनजर कोई खास महत्व नहीं है कि आरोपी और पीड़िता के बीच संबंध को आज तक कोई कानूनी मान्यता नहीं है और पीड़िता नाबालिग है।

    न्यायालय ने केरल हाईकोर्ट के एक फैसले पर भी भरोसा किया जिसमें कोर्ट ने अपने पति से अलग होने का दावा करने वाली एक महिला को 20 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी।

    जस्टिस दवे ने कहा कि उस मामले में केरल हाईकोर्ट ने यहां तक ​​कहा था कि ऐसे मामले में पति की सहमति की आवश्यकता नहीं है जहां पत्नी अपनी गर्भावस्था को अपने सम्मान और महत्व, गरिमा के लिए समाप्त करना चाहती है।

    इसके अलावा इस बात पर जोर देते हुए कि यदि पीड़िता अपनी गर्भावस्था जारी नहीं रखना चाहती है तो यह अदालत उसे अपनी गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर नहीं कर सकती, अदालत ने गर्भपात के लिए अपनी मंजूरी दे दी।

    न्यायालय ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी/चिकित्सा अधीक्षक, सिविल अस्पताल, गांधीनगर को यथाशीघ्र आवेदक/पीड़ित लड़की की गर्भावस्था की मेडिकल टर्मिनेशन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया।


    केस टाइटल - XYZ बनाम गुजरात राज्य और अन्य

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