" अगर कमजोर वर्ग गरीबी, अशिक्षा या कमजोरी के कारण अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकते तो समान न्याय की गारंटी का कोई मतलब नहीं है": जस्टिस एनवी रमना

LiveLaw News Network

23 March 2021 7:51 AM GMT

  •  अगर कमजोर वर्ग गरीबी, अशिक्षा या कमजोरी के कारण अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकते तो समान न्याय की गारंटी का कोई मतलब नहीं है: जस्टिस एनवी रमना

    न्यायमूर्ति एनवी रमना ने 'कानून का शासन' के आधार के रूप में 'न्याय तक पहुंच' के महत्व को रेखांकित किया।

    सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने दिल्ली में फ्रंट कार्यालयों और कानूनी सहायता रक्षा परामर्श कार्यालय के उद्घाटन के अवसर पर कहा कि,

    "न्याय तक पहुंच का विचार न्याय की संवैधानिक दृष्टि में गहराई से अंतर्निहित है और हमारे जैसे लोकतांत्रिक देश में न्याय तक पहुंच कानून के शासन का आधार है।"

    जस्टिस रमना ने कहा कि जब से भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बना है तब से हमारे देश के सामने दो मूल समस्याएं हैं- पहला 'गरीबी' और दूसरा 'न्याय तक पहुंच में कमी'। जबकि कोई लोगों को उम्मीद थी कि इस तेजी से भागती दुनिया में ऐसे विषय पुराने हो जाएंगे, लेकिन अफसोस की बात यह है कि आजादी के 74 साल बाद भी हम उसी मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं।

    जस्टिस रमना ने कहा कि,

    "दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के नाते हम एक ताकतवर देश हैं। भारतीयों ने सफलता पाने के लिए उनको धैर्य, दृढ़ संकल्प, बुद्धिमत्ता और विशेषज्ञता के साथ काम किया है। इसके दूसरी ओर कहानी कुछ अलग है, हमारे देश में अभी भी ऐसे लाखों लोग हैं जिन तक जीवन की मूलभूत सुविधाओं तक नहीं पहुंचती हैं, जिनमें न्याय तक पहुंच भी शामिल है। हालांकि वास्तविकता दु:खद है, लेकिन हमें डि मोटिवेट नहीं होना चाहिए। "

    उन्होंने आगे कहा कि, "जब तक हम एक राष्ट्र हैं तो हमें इस तरह की दोहरी वास्तविकता का सामना करना चाहिए, इस तरह की चर्चाओं को जारी रखना चाहिए।"

    भारत में कानूनी सहायता सेवाओं (Legal Aid Services) का महत्व

    राष्‍ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति रमना ने राष्‍ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण की स्थापना के 25 साल पूरे होने पर भारत में विशेष रूप से कानूनी सहायता के महत्व के बारे में बात की। उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान एक पुरानी घटना को याद किया जब अदालत परिसर में एक बूढ़ी महिला ने उनसे वकील की फीस के बारे में पूछा?

    न्यायाधीश ने जवाब दिया था कि, "मैडम, अदालत इन चीजों को नियंत्रित नहीं कर सकती है।" इसके बाद उसने कहा कि "हमारे जैसे लोग अदालतों में कैसे आ सकते हैं?"

    न्यायाधीश ने कहा कि यह वह जगह है जहां कानूनी सहायता विशेष महत्व रखती है। आगे कहा कि "जब लोग हम तक नहीं पहुंच सकते, तो हमें उन तक पहुंचना चाहिए।"

    जस्टिस रमना ने कहा कि,

    "मैं इस अवसर पर अपने सभी वकील मित्रों को याद दिलाना चाहता हूं कि आप हमारे संस्थापक पिता महात्मा गांधी, नेहरू और पटेल के उत्तराधिकारी हैं। अपने समाज के प्रति अपने कर्तव्य को कभी न भूलें। कृपया उन लोगों को सुनें जिनकी आवाज समाज में सबसे कमजोर है और उन लोगों की दुर्दशा को समझें जो कानूनी फीस नहीं दे सकते हैं। जब भी आप मदद कर सकते हैं, मदद करने के लिए आगे आएं। मेरा मानना है कि सभी वकीलों को समाज के लिए और लोगों की सेवा करने के लिए कुछ फ्री में काम करने का प्रयास करना चाहिए।"

    जस्टिस रमना ने कहा कि भारत संभवत: एकमात्र देश है, जहां कुछ श्रेणियों के लिए टेस्ट का मतलब लागू नहीं है।

    उन्होंने आगे कहा कि,

    "भारत में महिलाओं, बच्चों, हिरासत में रखे गए व्यक्ति, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, आपदा के शिकार और अन्य लोगों के अपनी आय / साधनों के बावजूद मुफ्त कानूनी सहायता के हकदार हैं।"

    न्यायमूर्ति रमना ने भारत में कानूनी सहायता प्रणालियों की सराहना की, जो लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता देने में प्रतिशत के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी कानूनी सहायता प्रणालियों में से एक है।

    जस्टिस रमना ने कहा कि,

    "कानूनी सेवा प्राधिकरण 70% से अधिक आबादी को कवर करता है, जो मुफ्त कानूनी सहायता के हकदार हैं। लगभग 48,227 पैनल वकील कानूनी सेवा प्राधिकरण के साथ मिलकर आवश्यक कानूनी सेवाएं प्रदान करने का काम किया है। कई वकीलों नि: शुल्क की सेवाएं प्रदान कीं हैं, जिसमें कई वरिष्ठ वकील शामिल हैं। अब तक 3175 समर्थक वकीलों को जिला स्तर पर, 437 को उच्च न्यायालय स्तर पर और 86 को सर्वोच्च न्यायालय के स्तर पर सूचीबद्ध किया गया है।"

    उन्होंने आगे कहा कि कोर्ट आधारित कानूनी सेवाओं में, नालसा ने हाल ही में एक लीगल एड डिफेंस काउंसिल सिस्टम पेश किया है जिसमें कानूनी सहायता देने वाले वकील विशेष रूप से कानूनी सहायता मामलों को निपटाते हैं।

    जस्टिस रमना ने कहा कि, "गुणवत्ता पूर्ण कानूनी सहायता सुनिश्चित करने के लिए रूपरेखा तैयार की गई है।"

    जस्टिस रमना ने आगे कहा कि कानूनी सेवाओं को मजबूत करने के लिए नालसा ने आपराधिक मामलों में आरोपियों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए एक योजना की परिकल्पना की है, जिसे कानूनी सहायता रक्षा प्रणाली कहा जाता है।

    जस्टिस रमना ने कहा कि,

    "यह कार्यालय दक्षिण पश्चिम जिले में दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा स्थापित किया गया है। द्वारिका कोर्ट सेशंस कोर्ट के आपराधिक मामलों में कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहा है। इस योजना के तहत वकील विशेष रूप से पूर्णकालिक रूप से काम पर लगे हुए हैं, जो सत्र न्यायालयों में कानूनी सहायता के मामले के लिए पेश होंगे। इस योजना को दो साल के लिए पायलट आधार पर देश भर के 17 जिलों में लागू किया जाना है। वर्ष 2020 के दौरान कानूनी सहायता रक्षा प्रणाली ने लगभग 1600 मामलों को देखा है।"

    जस्टिस रमना ने कानूनी सेवाओं की आउटरीच गतिविधियों के बारे में कहा कि नवंबर 2019 से फरवरी 2021 की अवधि के दौरान 2.35 लाख जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें 3.02 करोड़ से अधिक लोग शामिल हुए।

    वर्ष 2020 में लगभग 15.69 लाख महिलाओं ने आउटरीच कार्यक्रमों में भाग लिया; 2.71 लाख आदिवासी लोग कानूनी आउटरीच कार्यक्रम में शामिल हुए; लगभग 27.2 लाख बच्चों को कानूनी सेवाओं के माध्यम से आउटरीच टूल्स के माध्यम से पहुंचाया गया। उन्होंने आगे कहा कि विधिक सेवा प्राधिकरण कानूनी जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न उपकरणों का उपयोग कर रहा है। वर्ष 2020 में कानूनी जागरूकता फैलाने के लिए सोशल मीडिया सहित रेडियो, टीवी और डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग किया गया।

    जस्टिस रमना ने कानूनी सेवा क्लीनिक के माध्यम से प्रदान की जाने वाली कानूनी सेवाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 10 लाख से अधिक लोगों को कानूनी सेवा क्लीनिक के माध्यम से नवंबर 2019 से फरवरी 2021 की अवधि के दौरान कानूनी सहायता प्रदान की गई।

    नालसा ने वन स्टॉप सेंटर्स के रूप में काम करने के लिए फ्रंट ऑफिस को अपग्रेड करने पर ध्यान केंद्रित किया है। कई सेवाओं के लिए एकल बिंदु की स्थापना की जाए ताकि फ्रंट ऑफिस के माध्यम से ही कानूनी सहायता के जरूरतमंदों को सभी सुविधाएं एक ही स्थान पर प्रदान की जा सके।

    जस्टिस रमना ने कहा कि पूरे भारत में लगभग 1170 फ्रंट ऑफिस चालू हैं, जिनके माध्यम से वर्ष 2020 के दौरान 1,46,000 से अधिक व्यक्तियों को कानूनी सहायता प्रदान की गई।

    जस्टिस रमना ने विशेष रूप से लोक अदालतों द्वारा एडीआर के मोर्चे पर किए जा रहे कार्यों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने आगे कहा कि, "विधि सेवा प्राधिकरण ने अखिल भारतीय राष्ट्रीय लोक अदालतों के आयोजन की क्षमता विकसित की है। नवंबर 2019 से फरवरी 2021 तक लगभग 49,04,089 मामलों का निपटारा किया गया, जिसमें 26,89,659 लंबित मामले थे।"

    जस्टिस रमना ने पीड़ित मुआवजा योजना के कार्यान्वयन के बारे में कहा कि नवंबर 2019 से फरवरी 2021 तक पीड़ितों को मुआवजे के रूप में 218.81 करोड़ रूपए दिए गए।

    जस्टिस रमना ने महामारी के दौरान अथक काम करने के लिए कानूनी सहायता संस्थानों की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि स्थिति को सुधारने के लिए जरूरतमंदों को एक व्यापक श्रेणी की कानूनी सेवाएं प्रदान की जानी चाहिए, जिसमें घरेलू हिंसा, दैनिक वेतनभोगी, किराएदार, काम करने वाले, अपराधी और प्रवासी शामिल हैं। उन्होंने आगे कहा कि, "विधिक सेवा प्राधिकारण द्वारा प्रवासियों की दुर्दशा पर ध्यान दिया है, जिला प्रशासन के समन्वय में 57,79,546 प्रवासियों को सहायता प्रदान की गई है।"

    जस्टिस रमना ने संदिग्ध और गिरफ्तार किए गए लोगों को प्रदान की जा रही कानूनी सेवाओं के बारे में भी विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2020 में गिरफ्तार किए गए 76,087 लोगों को रिमांड स्टेज पर कानूनी सहायता प्रदान की गई थी।

    जस्टिस रमना ने आगे कहा कि भविष्य के लिए एक रोडमैप के रूप में विधि सेवा प्राधिकरणों द्वारा लोगों के अधिकारों के उल्लंघन होने पर कानूनी सेवाएं देकर और कानूनी जागरूकता के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिए एक सुलभ तंत्र विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

    इस आयोजन में दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और डीएसएलएसए के संरक्षक-मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीएन पटेल और न्यायमूर्ति विपिन सांघी (कार्यकारी अध्यक्ष, डीएसएलएसए) के साथ-साथ दिल्ली हाईकोर्ट के अन्य न्यायाधीशों, प्रधान जिला और दिल्ली के सभी 11 जिलों के सत्र न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालयों के प्रधान न्यायाधीश, जिला न्यायाधीश (वाणिज्यिक न्यायालय) और अन्य न्यायिक अधिकारी शामिल हैं।

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