अनुशासनात्मक कार्रवाई का मामला : बर्खास्तगी की गंभीर सजा देते समय सरकार को संवेदनशील होना चाहिएः इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

30 Oct 2020 10:56 AM GMT

  • Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (डिवीजन बेंच) ने बुधवार (21 अक्टूबर) को सिंगल बेंच जज के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि

    ''अनुशासनात्मक कार्रवाई के परिणामस्वरूप बर्खास्तगी की गंभीर सजा को लागू करते समय सरकारी अधिकारियों को थोड़ा संवेदनशील होना चाहिए।''

    मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ इस मामले में 25 अगस्त 2020 को पारित एक निर्णय के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। यह आदेश रिट-ए नंबर 5210/2020 में एकल पीठ द्वारा पारित किया गया था।

    मामले के तथ्य

    प्रतिवादी को 4 जनवरी, 2006 के एक आदेश के तहत अपीलार्थी (बोर्ड ऑफ बेसिक एजुकेशन) में सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था।

    सेवा में रहते हुए, उसे एक जूनियर हाई स्कूल के हेड मास्टर के पद पर भी पदोन्नत किया गया था। हालांकि, प्रतिवादी को 7 दिसंबर, 2019 के एक आदेश के तहत निलंबित कर दिया गया था और 13 जनवरी, 2020 की एक चार्जशीट के तहत उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई थी।

    उपरोक्त आरोप पत्र में, यह आरोप लगाया गया था कि वर्ष 1984 में यह कर्मचारी सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय, वाराणसी द्वारा आयोजित पुरवा मध्यमा की एक परीक्षा में उपस्थित हुए थे और इसी वर्ष उन्होंने यूपी बोर्ड आॅफ हाई स्कूल एंड इंटरमीडिएट शिक्षा बोर्ड से एक हाई स्कूल प्रमाणपत्र भी प्राप्त किया था।

    जांच कराने के बाद, 11 जून, 2020 के एक आदेश के तहत बेसिक शिक्षा अधिकारी ने प्रतिवादी को बर्खास्तगी की सजा दी। उसी से असहमत होकर, एक रिट याचिका दायर की गई थी जिसे जजमेंट (सिंगल बेंच जजमेंट में) के तहत स्वीकार किया गया था।

    सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ अपीलकर्ता-बोर्ड आॅफ बेसिक एजुकेशन ने अपील दायर की थी। अपीलकर्ता के वकील ने यह तर्क दिया था कि प्रतिवादी को दो शैक्षिक प्रमाणपत्रों का लाभ नहीं मिल सकता था, जबकि उसने यूपी बोर्ड आॅफ हाई स्कूल और इंटरमीडिएट शिक्षा बोर्ड द्वारा जारी किए गए हाई स्कूल के एक विशिष्ट प्रमाण पत्र के आधार पर उच्च शिक्षा प्राप्त कर ली थी।

    कोर्ट का विश्लेषण

    दो सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि,

    '' सिंगल बेंच ने यह भी कहा था कि कड़ी सजा देने से पहले प्रतिवादी को उसका पक्ष रखने का कोई भी अवसर नहीं दिया गया था और यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का प्रमुख उल्लंघन है।''

    इसके अलावा, अदालत ने कहा कि,

    ''हम इस तर्क में कोई योग्यता नहीं पाते हैं क्योंकि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि प्रासंगिक समय पर प्रतिवादी ने एक साथ दो योग्यता प्राप्त की थी और प्रतिवादी के पास सहायक शिक्षक के पद के साथ-साथ आगे की प्रमोशनल पोस्ट के लिए भी अपेक्षित योग्यता भी थी।''

    इस प्रकार, डिवीजन बेंच ने यह पाया कि सिंगल बेंच द्वारा कोई त्रुटि की गई थी। इसलिए अपीलीय अधिकार क्षेत्र में उस आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई जरूरत नहीं है।

    अंत में, अपील को खारिज करते हुए, न्यायालय ने कहा कि,

    ''यह अजीब बात है कि तत्काल मामले में संबंधित प्राधिकरण इस तथ्य को जानता था कि प्रतिवादी के पास पद को संभालने के लिए अपेक्षित योग्यता है,उसके बावजूद भी उसे बर्खास्तगी की सजा दे दी गई।''

    उपरोक्त टिप्पणियों के अनुसार, अपील को खारिज कर दिया गया।

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story