'देश/राज्य के नेताओं से संबंधित मामलों को प्रकाशित करते समय उन्हें सम्मान दें': मद्रास हाईकोर्ट ने तमिल समाचार पत्र को निर्देश दिए

LiveLaw News Network

26 July 2021 11:53 AM GMT

  • God Does Not Recognize Any Community, Temple Shall Not Be A Place For Perpetuating Communal Separation Leading To Discrimination

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में एक तमिल पत्रिका के प्रकाशक को निर्देश दिया कि,

    "देश या राज्य के नेताओं से संबंधित मामलों को छापते और प्रकाशित करते समय उन्हें ( याचिकाकर्ताओं) को सम्मान देना चाहिए और उसी के अनुसार संबोधित करना चाहिए।"

    दरअसल, तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता से संबंधित एक मामले की रिपोर्ट करते समय एक तमिल पत्रिका/समाचार पत्र 'दिनमलर' ने उन्हें 'जे' के रूप में संदर्भित किया था।

    न्यायमूर्ति वी. भवानी सुब्बारायन की पीठ संपादक (मृत होने के बाद) और तमिल अखबार के प्रकाशक द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आईपीसी की धारा 500, 501 के तहत दंडनीय अपराध की कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी।

    संक्षेप में मामला

    संपादक के खिलाफ मामला यह है कि उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री के सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन में उनके कृत्य या आचरण के संबंध में मानहानि के आरोप प्रकाशित किए थे।

    यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाए और इस तरह आम जनता की नजर में उनका नाम बदनाम किया।

    आवेदकों ने तर्क दिया कि भले ही शिकायत में लगाए गए आरोपों को उसी रूप में लिया गया हो, लेकिन यह तत्कालीन मुख्यमंत्री के सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन में और उनके सर्वोत्तम आचरण के संबंध में मानहानि के आरोपों का गठन नहीं करता है। इसे केवल व्यक्तिगत मानहानि के रूप में माना जा सकता है।

    इस प्रकार यह तर्क दिया गया कि इस तरह की शिकायत को सिटी पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के माध्यम से नहीं रखा जा सकता है और यह सीआरपीसी की धारा 199 (2) के तहत आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि सीआरपीसी की धारा 199 (2), एक लोक सेवक की मानहानि के लिए मुकदमा चलाने के लिए कार्यवाही शुरू करने के संबंध में एक विशेष प्रक्रिया प्रदान करती है।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    कोर्ट ने कहा कि किसी लोक सेवक की मानहानि के लिए मुकदमा चलाने की कार्यवाही शुरू करने के लिए आरोपों को सीधे संबंधित सेवक के कार्यों या उसके सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन से संबंधित होना चाहिए।

    अदालत ने कहा कि,

    "यदि मानहानि का बयान प्रकृति में व्यक्तिगत है, तो यह विशेष प्रक्रिया लागू नहीं होगी और केवल संबंधित व्यक्ति को ही अपनी व्यक्तिगत क्षमता में शिकायत दर्ज करनी होगी।"

    न्यायालय ने समाचार रिपोर्ट का अवलोकन करते हुए कहा कि जिन आरोपों के आधार पर आपराधिक शिकायत दर्ज की गई थी, वे किसी भी तरह से पीड़ित व्यक्ति के सार्वजनिक कार्य के निर्वहन में उसके आचरण को नहीं छूते हैं।

    कोर्ट ने कहा कि सिटी पब्लिक प्रॉसिक्यूटर द्वारा दायर की गई शिकायत को सीआरपीसी की धारा 199 (2) की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करने के कारण यह सुनवाई योग्य नहीं है। इसे रद्द किया जाता है।

    न्यायालय ने इसके अलावा अख़बार को अपमानजनक तरीके से मामले को छापने से परहेज करने का निर्देश देते हुए कहा कि,

    "जिसे 'जे' के रूप में संबोधित किया गया था वो तत्काल तमिलनाडु की मुख्यमंत्री थीं और उन्हें मुख्यमंत्री जे जयललिता के रूप में संबोधित किया जाना चाहिए था, न कि 'जे' के रूप में। समाचार पत्रों द्वारा प्रकाशन के संबंध में देश या राज्य के नेताओं को सम्मान देना चाहिए और उसी के अनुसार उन्हें संबोधित करना चाहिए।"

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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