गाजा विरोध याचिका पर आदेश की निंदा करने वाले बयान के लिए माकपा के खिलाफ स्वतः संज्ञान अवमानना कार्रवाई करने से हाईकोर्ट का इनकार

Amir Ahmad

4 Aug 2025 5:14 PM IST

  • गाजा विरोध याचिका पर आदेश की निंदा करने वाले बयान के लिए माकपा के खिलाफ स्वतः संज्ञान अवमानना कार्रवाई करने से हाईकोर्ट का इनकार

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (माकपा) द्वारा जारी प्रेस नोट को नज़रअंदाज़ करना बेहतर होगा, जिसमें गाजा में इज़राइल के युद्ध के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने की पार्टी की याचिका खारिज करते हुए की गई टिप्पणियों के लिए हाईकोर्ट की निंदा की गई थी।

    गौरतलब है कि 25 जुलाई को जस्टिस रवींद्र घुगे और जस्टिस गौतम अंखड की खंडपीठ ने कहा था कि गाजा या फ़िलिस्तीन के लिए आवाज़ उठाना देशभक्ति नहीं है। इसके बजाय माकपा को ऐसे मुद्दे उठाने चाहिए, जो भारत के नागरिकों को प्रभावित करते हैं।

    जस्टिस घुगे ने टिप्पणी की थी,

    "हमारे देश को कई मुद्दों से निपटना है। हम ऐसा कुछ नहीं चाहते। मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है कि आप सभी अदूरदर्शी हैं। आप गाजा और फिलिस्तीन को देख रहे हैं। आप अपने देश के लिए कुछ क्यों नहीं करते। देशभक्त बनो। गाजा और फिलिस्तीन के लिए बोलना देशभक्ति नहीं है। अपने देश के हितों के लिए बोलो, जो कहते हो वही करो।”

    सोमवार को सीनियर एडवोकेट एसएम गोरवाडकर ने न्यायालय से माकपा के प्रेस नोट पर स्वतः संज्ञान लेने का आग्रह करते हुए कहा कि यह न्यायालय का अवमाननापूर्ण है।

    गोरवाडकर ने दलील दी,

    "कानून बिल्कुल स्पष्ट है, कोई भी जजों को नोटिस नहीं दे सकता। यह एक खतरनाक प्रथा है। आप जजों को ऐसा कोई नोटिस नहीं दे सकते, जिससे न्यायपालिका में जनता का विश्वास कम हो। प्रशांत भूषण के मामले में भी यही किया गया। यह आपराधिक अवमानना होगी। कम से कम एडवोकेट जनरल को नोटिस जारी किया जाना चाहिए, क्योंकि यह प्रवृत्ति व्यापक रूप से समाज को गलत संदेश देती है।"

    वकील ने जजों को प्रेस नोट की कॉपी भी सौंपीं, जिन्होंने उसे पढ़ा और कहा कि वे इसे अनदेखा करना पसंद करेंगे।

    जस्टिस घुगे ने मौखिक रूप से कहा,

    "हम इसे अनदेखा करना चाहेंगे वकील महोदय... वे कह रहे हैं कि उन्हें बोलने, आलोचना करने और हमारे आदेश की निंदा करने का अधिकार है। उन्हें ऐसा करने दें। हम इसे अनदेखा करना पसंद करेंगे।"

    इस पर गोरवाडकर ने जवाब दिया,

    "यह आपकी उदारता है माई लॉर्ड। लेकिन हम उन्हें नोटिस जारी करने के बाद औपचारिक याचिका दायर करेंगे।"

    जस्टिस घुगे ने गोरवाडकर से निंदा को नज़रअंदाज़ करने को कहा और स्पष्ट किया कि उन्होंने पार्टी से केवल भारत को प्रभावित करने वाले मुद्दों को उठाने के लिए कहा था।

    जस्टिस घुगे ने कहा,

    "हमारी भूमिका सीमित है। उस दिन हमने उनसे चर्चा की। हमने उनसे कहा कि पहले हमारी समस्याओं को देखें, क्या हमें कोई समस्या नहीं है। ठीक है, उन्होंने हमारे आदेश की निंदा की है। हमारा आदेश ठीक नहीं है। हम इसे भूल जाएंगे। हम इस पर कुछ नहीं कह सकते। बल्कि, हम कह सकते हैं कि आपको भी इसे नज़रअंदाज़ कर देना चाहिए।"

    इसके अलावा खंडपीठ ने बताया कि आजकल हर चीज़ सोशल मीडिया पर डाल दी जाती है, जिस पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आती हैं।

    जजों ने माकपा के उक्त नोट पर स्वतः संज्ञान लेने से इनकार करते हुए कहा,

    "हमने अपना कर्तव्य किया। वे अपना कर्तव्य कर रहे हैं। उन्हें करने दीजिए।"

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