गुवाहाटी हाईकोर्ट ने कथित अवैध संबंध को लेकर पत्नी से विवाद के चलते बेटी की हत्या करने वाले व्यक्ति की दोषसिद्धि को बरकरार रखा

Manisha Khatri

19 Nov 2022 7:00 AM GMT

  • गुवाहाटी हाईकोर्ट ने कथित अवैध संबंध को लेकर पत्नी से विवाद के चलते बेटी की हत्या करने वाले व्यक्ति की दोषसिद्धि को बरकरार रखा

    Gauhati High Court

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में उस व्यक्ति की दोषसिद्धि को बरकरार रखा है, जिसने पत्नी द्वारा अवैध संबंध बनाने के संदेह में हुए झगड़े के कारण अपनी 2.5 वर्ष की बच्ची की धारदार हथियार से 'क्रूरता' से हत्या कर दी थी।

    जस्टिस सुमन श्याम और जस्टिस मिताली ठाकुरिया की पीठ ने दोषी की पत्नी (और मृतक की मां) की गवाही पर भरोसा किया। पीठ ने कहा उसने न केवल घटना को देखा था, बल्कि अदालत के समक्ष घटना के बारे में सच्चा बयान दिया था।

    संक्षेप में मामला

    24 जुलाई 2016 को आसमा खातून (आरोपी/अपीलकर्ता की पत्नी और पीड़िता की मां) ने एफआईआर दर्ज कराई कि उसका पति/आरोपी उसकी बेटी सुहाना अख्तर (उम्र 2.5 वर्ष) को पास की दुकान पर ले गया और कहा कि वह उसे कुछ बिस्किट खरीदकर दे देगा और रास्ते में उसने बच्ची की छाती पर धारदार हथियार से वार करके उसे मार डाला। उसने इस घटना को देखा था।

    आरोप पत्र दायर किया गया, आरोप तय किए गए और मुकदमे के समापन के बाद, 28 सितंबर, 2018 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, बजली, पाठशाला ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया गया था और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। आक्षेपित निर्णय से व्यथित होकर अपीलार्थी ने वर्तमान अपील दायर की।

    दलीलें

    अभियुक्त का कहना था (एक एमिक्स क्यूरी एम. दत्ता द्वारा प्रतिनिधित्व) कि पीडब्ल्यू-2/आसमा खातून (आरोपी/अपीलकर्ता की पत्नी और पीड़िता की मां) की गवाही के अलावा, कोई अन्य ऐसा सबूत उपलब्ध नहीं है, जो इस मामले में अपीलकर्ता/अभियुक्त दोषी बताता हो।

    अदालत का ध्यान सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अपना बयान दर्ज कराते समय आरोपी/अपीलकर्ता द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण की ओर भी आकर्षित किया गया। अपने बयान में आरोपी ने कहा था कि उसकी पत्नी यानी पीडब्ल्यू-2 ने ही बच्ची की हत्या की थी और उस पर भी ''चाकू'' से हमला किया था और बाद में, उसने उस लड़के से शादी कर ली, जिसके साथ उसके अवैध संबंध थे।

    इस प्रकार, एमिक्स क्यूरी ने तर्क दिया कि यह एक उपयुक्त मामला था जहां अपीलकर्ता/अभियुक्त को संदेह का लाभ देकर बरी किया जा सकता था।

    दूसरी ओर, राज्य की ओर से पेश एपीपी ने तर्क दिया कि पीडब्ल्यू-2/आसमा खातून (आरोपी/अपीलकर्ता की पत्नी और पीड़िता की मां) ने खुद घटना देखी थी और इसलिए, वह इस घटना की एक चश्मदीद गवाह है। यह भी तर्क दिया गया था कि पीडब्ल्यू-2 की गवाही न केवल पुलिस द्वारा सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज किए गए उसके बयान के अनुरूप थी बल्कि वह किसी भी तरह के विरोधाभास से भी मुक्त थी और इसलिए, यह तर्क दिया गया कि उसे इस मामले में एक स्टर्लिंग गवाह के रूप में माना जा सकता है।

    हाईकोर्ट की टिप्पणियां

    शुरुआत में, कोर्ट ने पीडब्ल्यू-2 की गवाही का विश्लेषण किया और नोट किया कि उसने अपनी गवाही में घटना के तरीके के बारे में विस्तार से बताया था और इसलिए उसके सबूत न केवल सुसंगत और विरोधाभास से मुक्त प्रतीत हुए बल्कि यह भी सच है कि सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज कराए गए उसके बयान के अनुरूप हैं।

    कोर्ट ने पीडब्ल्यू-2 की गवाही को स्टर्लिंग गुणवत्ता की मानते हुए कहा कि,

    ''पीडब्ल्यू-2 के साक्ष्यों से, यह दृढ़ता से स्थापित होता है कि घटना की तारीख पर, यह आरोपी/अपीलकर्ता के अलावा और कोई नहीं था, जिसने पीड़ित लड़की को उसकी मां यानी पीडब्ल्यू-2 की गोद से उठाया था। उसके बाद उसने घर के बाहर सड़क पर धारदार हथियार से उसके शरीर पर गंभीर चोट पहुंचाकर बच्ची की हत्या कर दी। घटना को पीडब्ल्यू-2 ने खुद देखा था।

    आरोपी द्वारा अपने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत दिए गए बयान में जोड़े गए स्पष्टीकरण के बारे में, अदालत ने कहा कि उसका प्रयास केवल बेटी की हत्या के आरोप को अपनी पत्नी पर स्थानांतरित करने का था, जो रिकॉर्ड पर उपलब्ध किसी भी सामग्री द्वारा समर्थित नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि अपने बयान में, आरोपी ने स्वीकार किया था कि घटना से कुछ समय पहले, उसका अपनी पत्नी के साथ झगड़ा हुआ था क्योंकि उसकी पत्नी के एक व्यक्ति के साथ कथित तौर पर अवैध संबंध चल रहे थे।

    अदालत ने आगे कहा,

    ''आरोपी ने इस बारे में कोई विवरण नहीं दिया है कि किस तरीके से या किस स्थान पर, पत्नी (पीडब्ल्यू -2) ने कथित तौर पर बच्ची को मार डाला या उस पर हमला किया। यह भी समझ में नहीं आता है कि एक मां केवल बच्ची को इस बात के लिए क्यों मार डालेगी क्योंकि उसके पति को उस पर किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संबंध बनाने का संदेह है। बल्कि, किसी भी कोण से देखा जो तो इसकी सबसे अधिक संभावना है कि अपनी पत्नी के किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संबंध होने का संदेह करते हुए, यह पति ही है जो बच्ची को मार डालेगा क्योंकि वह उसे पत्नी द्वारा बनाए गए अवैध संबंध का परिणाम मानता होगा। ऐसी परिस्थितियों में, आरोपी द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण अत्यधिक असंभव प्रतीत होता है और इसलिए निचली अदालत ने इसे खारिज करके सही किया है।''

    नतीजतन, न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यह अपीलकर्ता/आरोपी के अलावा और कोई नहीं था,जिसने पत्नी द्वारा अवैध संबंध बनाने के संदेह में हुए झगड़े के कारण अपनी 2.5 वर्ष की बच्ची की धारदार हथियार से बेरहमी से हत्या कर दी थी।

    इस प्रकार, न्यायालय निचली अदालत द्वारा निकाले गए इस निष्कर्ष से सहमत हुआ कि अभियुक्त/अपीलकर्ता के विरुद्ध आईपीसी की धारा 302 के तहत लगाए गए आरोप एक उचित संदेह से परे स्थापित हुए हैं। इसे देखते हुए अपील खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल- अयूब हुसैन उर्फ अयूब अली बनाम असम राज्य,मामला संख्या- सीआरएल.ए(जे)/1/2019

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