निष्कर्ष पर पहुंचना और उचित मुआवजा देना मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण का मौलिक कर्तव्य, पढ़िए बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

15 Oct 2019 3:33 AM GMT

  • निष्कर्ष पर पहुंचना और उचित मुआवजा देना मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण का मौलिक कर्तव्य, पढ़िए बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (एमएसीटी) का मौलिक कर्तव्य है कि वह उचित निष्कर्ष पर पहुंचे और सिर्फ मुआवजा प्रदान करे। हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि एमएसीटी द्वारा पारित एक 'गूढ़ निर्णय'को सुनवाई के लिए वापस भेजना ही सही होगा। इसी के साथ हाईकोर्ट ने ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया।

    औरंगाबाद पीठ की न्यायमूर्ति विभा कंकानवाड़ी ने एमएसीटी के एक फैसले को रद्द कर दिया। वहीं मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत और दावेदारों को 65,000 और रु 1,20,000 का मुआवजा देने के मामले में दायर अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया है।

    क्या था मामला

    दावेदारों के अनुसार वे 18 अक्टूबर, 2006 को एक टेंपो से लातूर जा रहे थे, जिसमें सोयाबीन की थैलियां भरी हुई थीं। उन्होंने बताया कि वे अपने सामान की सुरक्षा के लिए टेंपो में बैठे थे। उक्त टेंपो पलट गया और दावेदारों को गंभीर चोट आईं। दुर्घटना के समय इस टेंपो का बीमा ओरिएंटल इंश्योरेंस ने कर रखा था।

    बीमा कंपनी का तर्क

    ओरिएंटल इंश्योरेंस ने एमएसीटी के समक्ष तर्क दिया कि दोनों दावेदार उक्त टेंपो में अपने माल के साथ यात्रा नहीं कर रहे थे क्योंकि टेंपो केवल माल वाहक वाहन के रूप में पंजीकृत है। ऐसे में उक्त टेम्पो में अनाधिकृत रूप से यात्रा करने वाले यात्रियों के जोखिम को बीमा पॉलिसी के तहत कवर नहीं किया गया था। पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन किया गया है और इसलिए, मुआवजे की किसी भी राशि का भुगतान करने के लिए बीमा कंपनी जिम्मेदार नहीं है।

    इसके अलावा बीमा कंपनी ने अपनी अपील में यह भी दलील दी कि उक्त टेम्पो का चालक ही उसका मालिक था और एक दावेदार है। वह तेजी और लापरवाही से गाड़ी चला रहा था और जब वे मुरुद गांव पहुंचे तो एक रिक्शा को साइड देते समय टेम्पो नियंत्रण से बाहर हो गया और पलट गया। जिसके परिणामस्वरूप, दोनों दावेदारों को गंभीर चोट आईं। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था और उनके पैर में फ्रैक्चर हो गया था। दोनों दावेदारों का कहना था कि वे किसान हैं और दूध बेचकर मिलने वाला रुपया उनकी आय का अतिरिक्त स्रोत है। इस तरह वह दोनों प्रतिमाह तीन-तीन हजार रुपये कमा रहे थे। इसलिए उनको क्रमशः 1,00,000 रुपये और 2,00,000 रुपये का मुआवजा ब्याज सहित दिया जाए।

    दलीलें

    अधिवक्ता यू.एस मालसे बीमा कंपनी के लिए और अधिवक्ता एम.वी पाटिल दावेदारों की तरफ से पेश हुए। मालसे ने दलील दी कि ट्रिब्यूनल इस बात पर विचार करने में विफल रहा है कि दावेदारों द्वारा पेश किए गए विकलांगता प्रमाण पत्र को संबंधित चिकित्सा अधिकारी के बयान से साबित नहीं किया गया कि वह सही है या नहीं। ट्रिब्यूनल इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि दावेदार ऐच्छिक यात्री थे , जो माल वाहन में यात्रा कर रहे थे और उन्हें 'थर्ड पार्टी' नहीं कहा जा सकता था। ट्रिब्यूनल ने इस मामले में यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम के.एम. पूनम व अन्य के मामले में दिए गए निर्णय का हवाला दिया था।

    वकील मालसे ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम छोलेटी भारतम्मा और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उक्त मामले में माना गया था कि, जब इस बात का कोई सबूत नहीं था कि मृतक अपने सामान के मालिक के तौर पर लॉरी में ड्राइवर या क्लीनर के साथ यात्रा कर रहा था और जब सामान के साथ यात्रा करने वालों को मोटर वाहन अधिनियम की धारा 147 के तहत कोई संरक्षण नहीं मिला है तो ऐसे में मृतक धारा 147 के तहत संरक्षण का हकदार नहीं हो सकता।

    दूसरी ओर, वकील पाटिल ने तर्क दिया कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 149 के मद्देनजर अपील सुनवाई योग्य नहीं है। ट्रिब्यूनल ने 'पे एंड रिकवरी 'के तहत अवार्ड सही तरीके से पारित किया है और यह बात रिकॉर्ड पर आई थी कि दावेदार सामान के मालिक के रूप में यात्रा कर रहे थे। यह भी दलील दी गई कि यदि विकलांगता प्रमाण-पत्र को बनाने वाले चिकित्सा अधिकारी के बयान के बिना ट्रिब्यूनल द्वारा उस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए था तो मामले को फिर से सुनवाई के लिए वापस भेजा जा सकता है।

    कोर्ट का फैसला

    कोर्ट ने कहा, ''शुरुआत में, यह पाया गया है कि दोनों दावेदारों ने विकलांगता प्रमाण पत्र को रिकॉर्ड पर पेश किया था, जो कि डॉक्टर अजय.के मेंडारकर, मेडिकल ऑफिसर, मेंडारकर आर्थोपेडिक और जनरल हॉस्पिटल द्वारा जारी किया गया था। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि उसकी सत्यता की जांच के लिए डॉक्टर के बयान नहीं लिए गए हैं।''

    न्यायमूर्ति कंकानवाड़ी ने कहा, "राजेश कुमार / राजू बनाम युधवीर सिंह व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मद्देनजर, जिसमें माना गया था कि,'' ट्रिब्यूनल संबंधित डॉक्टर के बयान की जांच के बिना विकलांगता प्रमाण पत्र स्वीकार नहीं कर सकता'',वर्तमान मामले में दावेदार को विकलांगता प्रमाण पत्र बनाने वाले डॉक्टर के बयान की जांच करवानी चाहिए थी। चूंकि मामले में डाक्टर की गवाही नहीं हुई है, इसलिए न्याय के हित में, मामले को वापस सुनवाई के लिए भेजना उचित है।"

    एमएसीटी के फैसले को रद्द करते हाईकोर्ट ने माना कि-

    '' मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण के अध्यक्ष ने मामले के सबूतों को ठीक से नहीं देखा, इसलिए एक बहुत ही गूढ़ निर्णय पारित किया गया है। जहां तक लापरवाही का संबंध है, यह अभी भी देखा जा सकता है कि सबूतों पर विचार किए बिना, सीधा निष्कर्ष निकाल दिया गया है, जबकि दावेदार यह मामला लेकर आए थे कि वे एक माल वाहक वाहन के मालिक के रूप में यात्रा कर रहे थे, परंतु इस तथ्य पर भी न तो विचार किया गया और न ही इसका ठीक से मूल्यांकन किया गया।

    इस बात को देखते हुए कि उक्त गूढ़ निर्णय सुनवाई के लिए वापस भेजने योग्य है, मामले के तथ्यों के मद्देनजर, मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण का यह मौलिक कर्तव्य है कि वह उचित निष्कर्ष पर पहुंचे और सिर्फ मुआवजा दे।''

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