पूर्व चीफ जस्टिस की पेंशन याचिका खारिज, हाईकोर्ट ने कहा-दोहरी पेंशन का कोई कानूनी आधार नहीं

LiveLaw Network

30 Sept 2025 10:30 PM IST

  • पूर्व चीफ जस्टिस की पेंशन याचिका खारिज, हाईकोर्ट ने कहा-दोहरी पेंशन का कोई कानूनी आधार नहीं

    राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस फरजंद अली के नेतृत्व वाली खण्डपीठ ने झारखण्ड हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस प्रकाश टाटिया द्वारा राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद की पेंशन के लिए दायर याचिका खारिज की।

    जस्टिस फरजंद अली और जस्टिस सिंघी की खण्डपीठ ने रिपोर्टेबल जजमेंट में स्पष्ट किया कि राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष को अलग से पेंशन का अधिकार नहीं है, यदि वह पहले से उच्च संवैधानिक पद से पेंशन प्राप्त कर रहे हों।

    जस्टिस टाटिया ने राज्य सरकार द्वारा पेंशन लाभ से वंचित करने के आदेशों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि 2012 में संशोधित नियम 4, राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग (वेतन, भत्ते एवं सेवा शर्तें) नियम, 2002 के तहत उन्हें आयोग के चेयरपर्सन के कार्यकाल के लिए भी पेंशन मिलनी चाहिए। उन्होंने लोकायुक्त मामले (न्यायमूर्ति महेंद्र भूषण शर्मा केस) का हवाला दिया।

    राज्य सरकार ने यह तर्क रखा कि याचिकाकर्ता पहले से ही सुप्रीम कोर्ट जजेज (सैलरी एंड कंडीशंस ऑफ सर्विसेज) अधिनियम, 1958 के तहत 1,25,000 प्रतिमाह की पेंशन प्राप्त कर रहे हैं। नियम 4 का उद्देश्य केवल वेतन और पेंशन को पैरिटी (समानता) पर तय करना है, न कि अतिरिक्त पेंशन देना।

    कोर्ट ने कहा-

    अदालत ने माना कि पेंशन अनुग्रह नहीं, बल्कि अधिकार है, लेकिन एक ही व्यक्ति को अलग-अलग संवैधानिक पदों पर सेवाएं देने के बावजूद दोहरी पेंशन का अधिकार तभी होगा, जब कानून स्पष्ट रूप से इसकी अनुमति दे। कोर्ट ने यह भी कहा कि नियम 4 में पेंशन शब्द जोडऩे का उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना था कि पूर्व पेंशन प्राप्त करने वाले को आयोग के पद पर नियुक्त होने से नुकसान न हो। फैसले के अनुसार, एक करियर, एक पेंशन सिद्धांत लागू रहेगा। एक ही व्यक्ति को अलग-अलग संवैधानिक/वैधानिक पदों पर सेवाएं देने के बावजूद, एक से अधिक पेंशन का अधिकार नहीं होगा, जब तक कि कानून स्पष्ट रूप से इसकी अनुमति न दे।

    राजस्थान हाईकोर्ट में जज रहे जस्टिस टाटिया झारखण्ड हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वर्ष 2015 से 2019 तक राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष रहे। उन्होंने नियम 4, राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग (वेतन, भत्ते एवं सेवा शर्तें) नियम, 2002 (2012 में संशोधित) का हवाला देकर कहा कि उन्हें आयोग के अध्यक्ष के कार्यकाल के लिए भी पेंशन मिलनी चाहिए। उनका तर्क था कि लोकायुक्त को अलग से पेंशन देने का पूर्व में निर्णय हो चुका है, इसलिए उनके साथ भी समानता होनी चाहिए।

    राज्य सरकार ने उनकी मांग यह कहते हुए ठुकरा दी कि वे पहले से ही उच्चतम अनुमन्य पेंशन 1,25,000 प्रतिमाह सुप्रीम कोर्ट जजेज (सैलरी एवं सेवा शर्तें) अधिनियम, 1958 के तहत प्राप्त कर रहे हैं और दूसरी पेंशन देना कानूनन संभव नहीं है।

    केस टाइटल: जस्टिस प्रकाश टाटिया (रिटायर्ड) बनाम राजस्थान राज्य व अन्य

    लेखक- एडवोकेट रज़्ज़ाक अली हैदर

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