निचली अदालत के फ़ैसले की पुष्टि करते हुए प्रथम अपीलीय अदालत को सीपीसी के आदेश XLI नियम 31 की शर्तों का पालन करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

15 Feb 2020 4:45 AM GMT

  • निचली अदालत के फ़ैसले की पुष्टि करते हुए प्रथम अपीलीय अदालत को सीपीसी के आदेश XLI नियम 31 की शर्तों का पालन करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रथम अपीलीय अदालत को अपने निर्णय के बारे में अपने कारण बताने होंगे।

    जब प्रथम अपीलीय अदालत निचली अदालत के फ़ैसले को सही ठहराती है, तो उसे उम्मीद की जाती है कि वह सीपीसी के आदेश XLI नियम 31 की शर्तों का पालन करेगी और अगर इसका पालन नहीं किया जाता है तो इससे प्रथम अपीलीय अदालत के फ़ैसले में अस्थिरता आएगी। यह बात न्यायमूर्ति एए नज़ीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की बेंच ने कही।

    पीठ ने हाईकोर्ट के एक फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया जिसने प्रथम अपीलय को संक्षिप्त कारण देते हुए ख़ारिज कर दिया था।

    क्या है सीपीसी का आदेश XLI नियम 31

    सीपीसी का आदेश XLI नियम 31 में मामलों के निपटारे को लेकर अपीलीय अदालत के लिए कुछ दिशा-निर्देश हैं। इसमें कहा गया है -

    "अपीलीय अदालत का फ़ैसला लिखित में होगा और उसमें— (a) निर्धारण के बिंदु; (b) इसके आधार पर क्या है फ़ैसला; (c) इस फ़ैसले का कारण; और (d) यह कि राहत, जिसे अपीलकर्ता को प्राप्त करने का अधिकार है, के तहत जिस आदेश के ख़िलाफ़ अपील की गई है उसे पलटा गया है या बदला गया है; और आदेश सुनाने के समय इस पर आदेश देने वाले जज या जजों का हस्ताक्षर होगा और तिथि अंकित होगी।"

    पीठ ने कहा कि जब कोई अपीलीय अदालत किसी निचली अदालत के फ़ैसले को सही ठहराता है तो उसे साक्ष्य के प्रभाव के बारे में या निचली अदालत के कारणों को दुहराने की ज़रूरत नहीं है। निचली अदालत के कारणों से सहमति जताना भर ही पर्याप्त होगा।

    पीठ ने कहा,

    सीपीसी की धारा 96 में किसी भी अदालत के आदेश के ख़िलाफ़ अपील का प्रावधान है। वर्तमान मामले में निचली अदालत के ख़िलाफ़ अपील हाईकोर्ट में लंबित है।

    "अपील" को सीपीसी में परिभाषित नहीं किया गया है। ब्लैक्स लॉ डिक्शनरी (7वां संस्करण) इसे परिभाषित करते हुए कहता है : यह किसी निर्णय को उच्च अधिकारी के समक्ष पुनर्विचार के लिए लाना है।

    यह किसी निचली अदालत के फ़ैसले की उच्च्तर न्यायालय द्वारा न्यायिक जाँच है ताकि किसी भी तरह की संभावित ग़लती को अपील के तहत दूर किया जा सके। यह प्रावधान इसलिए बनाया गया है क्योंकि इस बात को माना गया है कि न्यायिक व्यवस्था में बैठे लोग भी ग़लती कर सकते हैं।

    क़ानून में यह पूरी तरह स्थापित बात है कि अपील मूल अदालत की प्रक्रिया का ही अगला क़दम है। अपीली अधिकार का मतलब है पीड़ित द्वारा क़ानून और तथ्यों की दुबारा सुनवाई का आग्रह। प्रथम अपील अपीलकर्ता का एक बहुमूल्य अधिकार है और इसलिए निचली अदालत ने जिन सबूतों और तथ्यों पर ग़ौर किया है उन सब पर पुनर्विचार किया जा सकता है। इसलिए प्रथम अपीलीय अदालत को हर मामलों पर ग़ौर करने की ज़रूरत होती है और उसको कारण देते हुए मामले का निर्णय करना होता है।

    प्रथम अपीलीय अदालत को को क़ानून के सभी मुद्दों और मौखिक एवं दस्तावेज़ी सबूतों पर ग़ौर करने के बाद अपना फ़ैसला बताना होता है। प्रथम अपीली अदालत के फ़ैसले सभी मुद्दों को लेकर तर्कों पर आधारित होने चाहिए।

    सीपीसी की धारा 96 के तहत प्रथम अपील धारा 100 के तहत दूसरी अपील से पूरी तरह अलग होती है। धारा 100 में दूसरी अपील की तब तक के लिए मनाही है जब तक कि इसमें क़ानून का मामला नहीं फंसा है और क़ानून के इस मामले की प्रकृति बहुत व्यापक होनी चाहिए।



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